मोहम्मद अहसन हिन्द-युग्म के सक्रियतम पाठकों में से एक हैं। हमारे प्रत्येक आयोजन में भाग भी लेते हैं। पिछले माह की यूनकवि प्रतियोगिता में भी भाग लिया। इनकी कविता ने छठवाँ स्थान भी बनाया।
पुरस्कृत कविता- बाबू जी मैं जा रही हूँ
बाबू जी मैं जा रही हूँ,
अनजाने सफ़र, अनजान मंजिलों की तरफ;
न जाने कौन होगा मेरे साथ,
कौन लोग होंगे!
कौन जाने किस्मतों में सिर्फ अँधेरे हों,
सन्नाटा हो, गहरे काले साए हों, आंधियां हों,
या कि हलचल हो तूफानों की,
पर मेरी फ़िक्र आप ज़रा न करना;
मुझे यक़ीनन आप की फ़िक्र रहेगी ,
अनजाने सफ़र, अनजानी मंजिलें शायद मेरा मुक़द्दर हैं
मगर तुम्हारी फ़िक्र, तुम्हारा ख़याल मेरा फर्ज़ है,
मैं सिर्फ आप की दुआओं की तालिब हूँ
कि अनजान रास्तों पर मेरे क़दम न लड़खडाएं,
अगर अँधेरे ही मेरा मुक़द्दर हैं
तो उन्हें भी हिम्मत से बढ़ के थाम लूँ
बाबू जी तुम मुझ से व'अदा करो,
कि तुम अपना ख़याल रखोगे,
डाक्टर ने जो कहा है एहतियात बरतोगे;
मेरी गैर मौजूदगी में उदासी को मत फटकने देना
बेवजह मेरी फ़िक्र मत करना;
मैं कोशिश करूंगी
कि पहली फुर्सत में,
'उन से' इजाज़त ले के घर आ जाऊं
और हफ्ता दस रोज़ तुम्हारी खिदमत में गुजार दूँ
बाबू जी, देखो मेरी फ़िक्र मत करना
मुझे तो जाना ही था एक दिन अनजान मंजिलों की तरफ,
बस मेरी हिम्मत बढ़ाइये कि मेरे कदम साकित रहें;
अगर रस्म ए दुनिया का तकाजा न होता
ता जिंदगी तुम्हारा घर न छोड़ती,
तुम्हारा घर छोड़ कर देवताओं के घर भी न जाती,
बस तुम्हारे क़दमों में रह के
तुम्हारी खिदमत में जिंदगी गुजार देती, और
और तुम्हारे चेहरे का सुकून ही अपना मुक़द्दर जानती
प्रथम चरण मिला स्थान- तीसवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- छठवाँ
पुरस्कार- राकेश खंडेलवाल के कविता-संग्रह 'अंधेरी रात का सूरज' की एक प्रति।
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8 कविताप्रेमियों का कहना है :
मार्मिक रचना लडकी होना कितना सालता है कभी कभी बडिया रचना के लिये आभर और बधाई
बाबू जी, देखो मेरी फ़िक्र मत करना
मुझे तो जाना ही था एक दिन अनजान मंजिलों की तरफ,
बस मेरी हिम्मत बढ़ाइये कि मेरे कदम साकित रहें;
अगर रस्म ए दुनिया का तकाजा न होता
तो जिंदगी तुम्हारा घर न छोड़ती,
तुम्हारा घर छोड़ कर देवताओं के घर भी न जाती,
अहसान साहब एक लड़की की फिक्र को बयां करती हुई एक खुबसूरत कविता हैं आपनी मुबारकबाद कुबूल करें.
शामिख साहेब,
'तो जिंदगी' को 'ता जिंदगी' पढ़ लीजिये. नज़्म एडिट करवा दी है.
-अहसन
बाबू जी मैं जा रही हूँ,
अनजाने सफ़र, अनजान मंजिलों की तरफ;
न जाने कौन होगा मेरे साथ,
कौन लोग होंगे!
कौन जाने किस्मतों में सिर्फ अँधेरे हों,
सन्नाटा हो, गहरे काले साए हों, आंधियां हों,
या कि हलचल हो तूफानों की,
पर मेरी फ़िक्र आप ज़रा न करना;
अहसान साहब Apni bat kahne mein safal hai.Sansar ka rivaj ki her ladki ko jana hi padta hai.
Manju Gupta.
शादी के बाद विदा होती दुल्हन के भावों को पकड़ती
दिल को झकझोर देने वाली कविता
कविता में उर्दू के शब्दों का बड़े हीं मनोरम तरीके से प्रयोग किया गया है और यही बात मुझे इस कविता की अच्छी लगी। बाकी में कुछ नयापन ढूँढ रहा हूँ। "अहसन" साहब आपसे इससे भी कई गुणा अच्छी कविता की उम्मीद है और वह भी छंद-बद्ध।
-विश्व दीपक
सुन्दर भाव |
न जाने कौन होगा मेरे साथ,
कौन लोग होंगे!
कौन जाने किस्मतों में सिर्फ अँधेरे हों,
सन्नाटा हो, गहरे काले साए हों, आंधियां हों,
या कि हलचल हो तूफानों की,
पर मेरी फ़िक्र आप ज़रा न करना;
मुझे यक़ीनन आप की फ़िक्र रहेगी ,
लिखते रहें !
तनहा साहेब,
यह मेरी पसंदीदा नज्मों में नहीं है.
एक दिन एक ऑटो के पीछे लिखा देखा ' बाबू जी मैं जा रही हूँ' और फिर बस ऐसे ही चुनौती के तौर पर लिखता चला गया.
दिक्क़त यह है कि हिन्दयुग्म पर अगर अपनी पसंद की नज्में भेजूँ गा तो ' यूनी कवी प्रतियोगिता' में कभी अपना स्थान नहीं बना पाएं गी भले आप को या मुझे पसंद हो . कई बार हिन्दयुग्म के मिजाज को देखना पड़ता है
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