ग्रह-उपग्रह बने रहें
दिन-रात से सजे रहें
पृथ्वी अपनी श्रेष्ठता संग
सदियों तक बनी रहे
और इसके जीवों में
संवेदना बची रहे
जीवन-पर्यन्त
श्रद्धा-विश्वास-आस्था का
संगम रहे धरा
भावनाएं पूजी जाएं
और सुन्दरता जाएं सराही
दया-क्षमा-त्याग से
सजी रहे मनुष्यता
प्रेम की क्यारियों में
मुस्कान-सी फूल खिलें
और श्रम के बाद सदा
सफलता के फल मिलें
आस टूटे न कभी
आस सदा बनी रहे
इसलिए हे नारी आपको
प्रसव का वरदान मिला
इसलिए ‘उस’ आस्तिक ने
सृष्टि में है ‘मां’ रचा!
(मदर्स डे के मौके पर पूरे मां कौम को नमन)
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5 कविताप्रेमियों का कहना है :
ये कविता तो नहीं लग रही ...... अंतिम दो चार पंक्तियों को छोड़कर प्रवचन लग रहा है जिसे होरिजोंटल लिखने की अपेक्षा वर्टिकल लिख दिया है .............. मुझे लगता है की हिन्दयुग्म पर जो कवि अपने आप कविता पोस्ट कर रहे हैं (जिनमे एक मैं भी हूँ) उनकी कविताओं का भी पहले संपादन होना चाहिए और निर्णय होना चाहिए की कौन सी कविता प्रकाशन के लिए उचित है और कौन सी नहीं .............. कवि जी बुरा न माने ये मेरा व्यक्तिगत विचार है और हिन्दयुग्म को एक सुझाव है और ऐसा भी नहीं है की ये कविता/अकविता बहुत बुरी है अक्सर लचर कवितायेँ हिन्दयुग्म पर आती रहती हैं इसलिए राय दे रहा हूँ
अरुण अद्भुत
अच्छी लगी...
यह कविता कम ,किसी आचार्य का प्रवचन अधिक है. प्रारंभ में कुछ आशा बंधी थी कविता से किन्तु दो चार पंक्तियों के बाद मर गयी
-ahsan
ps: I endorse the views of Mr Adubhut. sorry ,could not see his comments earlier.
भाव अच्छे हैं आभार्
good thoughts
इसके जीवों में
संवेदना बची रहे
जीवन-पर्यन्त
श्रद्धा-विश्वास-आस्था का
संगम रहे धरा
भावनाएं पूजी जाएं
और सुन्दरता जाएं सराही
दया-क्षमा-त्याग से
सजी रहे मनुष्यता
If people care for sentiments of others more than their selfish ends....the world would be a better place to live in
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