मेरे आस-पास के फ्लैट में
कौन रहता है-
मुझे नहीं पता,
उन्हें भी नहीं पता !
दरवाज़े बंद हुआ करते हैं,
दो कमरे
और बाल्कनी में
ज़िन्दगी और अनुमान रहते हैं !
हाँ ,.... अनुमान...
कि,
बगल में कौन रहता है,
क्या करता होगा!
लड़का,लड़की...
भाई-बहन हैं या पति-पत्नी !
(अब तो कोई पहचान शेष नहीं न )!
बात करने में
'इगो' बीच में टहलता है....
प्रश्न उठता है जाती,धर्म का,
भय की खामोशी
अलग करती जाती है......
"मुझे हिन्दी आती है"
इस बात की विशेषता नहीं रही,
इसे परिवर्तन कहते हैं?
या विध्वंस?
पर्यावरण,भाषा,संस्कार....
सब लुप्त होते जा रहे हैं!
'कारण' का नारा,
सब लगाते हैं,
पर ख़ुद को जिम्मेदार नहीं मानते !
पहल कौन करेगा-
सब सोचते हैं,
वह कौन है?
न वे जानते हैं,
न मैं जानती हूँ !
चल रहे हैं सब,
चलते जा रहे हैं........
साथ कौन है,
उसकी पहचान नहीं ,
उत्सुकता नहीं........
ज़िन्दगी ,
दो कमरे,
बाल्कनी,
और वातानुकूलित गाड़ी में बंद है,
सारे दरवाज़े बंद हैं........
चारों तरफ़,
बस अनुमान है, सिर्फ़ अनुमान !!!
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
rashmi ji,
aaj ke paripeksh men bahut sateek rachna hai..sach hi shahron men nahi jaante ki kaun padose men rahta hai...bass anumaan hi lagate hain...
sundar rachna ke liye badhai
वक़्त का सच्चा आईना है ...आपकी कविता ...
रश्मि जी,
आपके पास कथ्य है, भाषा है और कविता लिखने की परिपक्व समझ। अर्से बाद हिन्द-युग्म को इतनी बढ़िया रचनाकार मिली है। आपकी रचना में प्रवाह है और बात कह देने की अचूक शैली।
जी ,हो तो यही रहा है..पर ये सूरत बदलनी चाहिए...!अनुमान को ज्यादा हावी नहीं होने देना चाहिए अन्यथा पडोसी. जैसा शब्द गूम...... हो जायेगा..
आदरणीया रशमि जी,
आपके विचार वर्तमान परिवेश के बिल्कुल नजदीक होकर दसका एहसास करा रहे है । आपकी यह रचना बहुत ही अच्छी है ।
सुन्दर और वर्तमान परिवेश की इस रचना के लिए आप बधाई की पात्र है ।
Sachchai vyaqt ki hai aapne, Sahridayata ka din pratidin lop hota ja raha hai, achcha nahi hai ye samaj ke hit me. Ek jagruk rachna ke liye badhai.
सच कहा है आपने रश्मि जी
- विजय
बहूत अच्छा लिखती हो या सही कहा या बहूत खूब etc etc , नहीं कहेंगे ....
इसमें जो कहा जा रहा है समझ कर पहल करेंगे .. आप् कहा से ऐसे जादुई शब्द लाती हो जो इतना कुछ कह जाते है , सीखा जाते है ?
जिन्दगी को दो कमरे , बालकनी और वातानुकूलित गाडी से बहार निकाल , अनुमान नहीं पहल करेंगे ... ILU
बहुत सच लिखा है....अनुमान ही शेष रह गए हैं . ...
बीच का अहम् भाव मिलनसार होने से रोकता जो है लोगों को
इस प्रोत्साहन भरे शब्दों के आगे मैं नत हूँ,शुक्रिया....
कथ्य अच्छा है |
अवनीश तिवारी
रश्मि जी,
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने,,,सदा की तरह,,,
रश्मिजी बहुत सुन्दर भाव प्रस्तुति है सत्य और स्टीक बधाई
kavita mujhe achchhii lagii
bade shaharo me aesa hi hota hae
sahi chitran hae
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