फटाफट (25 नई पोस्ट):

Friday, April 10, 2009

पिता को लेना पड़ा चश्मा तब भी नहीं दिखीं बच्चियाँ


इन दिनों आपको मैं मिलवा रहा हूँ हिन्द-युग्म के नये अतिथि कवि हरेप्रकाश उपाध्याय से। हरे प्रकाश की कविताओं में सच अपने सभी नकाबों से बाहर आकर सीधे पाठकों से संवाद करने लगता है। रिश्ते, समाज, आचरण, व्यवहार, तंत्र सभी की जाँच ठोंक-बजाकर करते हैं हरे प्रकाश।

'पिता'

पिता जब बहुत बड़े हो गये
और बूढ़े
तो चीज़ें उन्हें छोटी दिखने लगीं
बहुत-बहुत छोटी

आख़िरकार पिता को
लेना पड़ा चश्मा

चश्मे से चीज़ें
उन्हें बड़ी दिखाई देनी लगीं
पर चीज़ें
जितनी थीं और
जिस रूप में
ठीक वैसा
उतना देखना चाहते थे पिता

वे बुढ़ापे में
देखना चाहते थे
हमें अपने बेटे के रूप में
बच्चों को 'बच्चे' के रूप में
जबकि हम
उनके चश्मे से 'बाप' दिखने लगे थे
और बच्चे 'सयाने'


हरे प्रकाश उपाध्याय के पहले काव्य-संग्रह ''खिलाड़ी दोस्त तथा अन्य कविताएँ'' में एक कविता 'बच्चियाँ : कुछ दृश्य' नाम से है, जिसमें क्षणिका रूप में १० लघुकविताएँ हैं। प्रस्तुत २ झलकियाँ-

१॰ बच्चियों के 'दूध'
पी गये बच्चे सारे
वे 'पानी पीकर' सो रही हैं...
उठेंगी अभी
सारे अभावों को देंगी बुहार
आँखों से पानी
और छाती से दूध उतार
पानी और दूध की क़िल्लत दूर करेंगी
बच्चियाँ

२॰ बच्चियाँ
टीवी देख रही हैं
टीवी में
सीता राम का ब्याह हो रहा है

अभी बजेगी दरवाज़े की घंटी
कोई आएगा थुलथुल
एक चीकट मेहमान
सोफ़े पर पसर जायेगा
बच्चियाँ किचन में घुस
चाय बनाएँगी
पकौड़े छानेंगी

स्वयंवर का धनुष टूटते-टूटते
हो ही जाता है कोई अड़भंग
कोई पूरा ब्याह
कहाँ देख पाती हैं बच्चियाँ!


आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

13 कविताप्रेमियों का कहना है :

अनिल कान्त का कहना है कि -

kitni bebaki se sach bayan karti kavita ...behtreen bhaav

हें प्रभु यह तेरापंथ का कहना है कि -

शैलजी

बहुत सुन्दर !! शिक्षाप्रद बात्।

संगीता पुरी का कहना है कि -

बहुत बढिया ...

मुकेश कुमार तिवारी का कहना है कि -

शैल जी,

हरेप्रकाश जी को हमारी बधाई जरूर पहुंचावें. कितनी सीधी बात है, शायद इसीलिये यह जरूरत अब समझी जा रही है लाड़ो / बेटी / बच्ची भी अपने विरूद्धार्थी पुल्लिंग से कहीं कम ना होते हुये भी क्यों विवश हैं झेलनो को वह सब जो आप कह रहे हैं :-

बच्चियों के 'दूध'
पी गये बच्चे सारे
वे 'पानी पीकर' सो रही हैं...
उठेंगी अभी
सारे अभावों को देंगी बुहार
आँखों से पानी
और छाती से दूध उतार
पानी और दूध की क़िल्लत दूर करेंगी
बच्चियाँ

साधुवाद,


मुकेश कुमार तिवारी

Ria Sharma का कहना है कि -

शैलेश जी बहुत गहरी बात कह गए ..

Wonderful !!

Amazing !!!

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

कुछ पाठक कहीं इसे मेरी कविता तो नहीं समझ रहे। स्पष्ट कर दूँ कि ये सभी हरे प्रकाश उपाध्याय की कविताएँ हैं, जो इस समय हिन्द-युग्म के अतिथि कवि हैं। मैं उनकी रचनाओं का प्रस्तोता मात्र हूँ।

रश्मि प्रभा... का कहना है कि -

marm se poorn rachna

Divya Narmada का कहना है कि -

मार्मिक, हृद्स्पर्शी

manu का कहना है कि -

दोनों क्षनिकाएं गजब ddha गयीं,,,,
कमाल की नजर है आपकी,,,,,
दिल में उतरती है सीधे सीधे,,,,

Tapan Sharma का कहना है कि -

स्वयंवर का धनुष टूटते-टूटते
हो ही जाता है कोई अड़भंग
कोई पूरा ब्याह
कहाँ देख पाती हैं बच्चियाँ!

bahut badhiya kshaniaayein...

SUNIL KUMAR SONU का कहना है कि -

ati-sundar

SUNIL KUMAR SONU का कहना है कि -

अर्ज किया तो पूछ लूँ कैसे हो
ऐसे हो या वैसे हो.
ये अन्दर की बात आप ही जानो
मैं तो समझूँ बस इतना
जैसे मजे में मैं हूँ
आप भी वैसे हो .

rachana का कहना है कि -

सुंदर अति सुंदर कवितायेँ .
आभार
सादर
रचना

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)