इन दिनों आपको मैं मिलवा रहा हूँ हिन्द-युग्म के नये अतिथि कवि हरेप्रकाश उपाध्याय से। हरे प्रकाश की कविताओं में सच अपने सभी नकाबों से बाहर आकर सीधे पाठकों से संवाद करने लगता है। रिश्ते, समाज, आचरण, व्यवहार, तंत्र सभी की जाँच ठोंक-बजाकर करते हैं हरे प्रकाश।
'पिता'
पिता जब बहुत बड़े हो गये
और बूढ़े
तो चीज़ें उन्हें छोटी दिखने लगीं
बहुत-बहुत छोटी
आख़िरकार पिता को
लेना पड़ा चश्मा
चश्मे से चीज़ें
उन्हें बड़ी दिखाई देनी लगीं
पर चीज़ें
जितनी थीं और
जिस रूप में
ठीक वैसा
उतना देखना चाहते थे पिता
वे बुढ़ापे में
देखना चाहते थे
हमें अपने बेटे के रूप में
बच्चों को 'बच्चे' के रूप में
जबकि हम
उनके चश्मे से 'बाप' दिखने लगे थे
और बच्चे 'सयाने'
हरे प्रकाश उपाध्याय के पहले काव्य-संग्रह ''खिलाड़ी दोस्त तथा अन्य कविताएँ'' में एक कविता 'बच्चियाँ : कुछ दृश्य' नाम से है, जिसमें क्षणिका रूप में १० लघुकविताएँ हैं। प्रस्तुत २ झलकियाँ-
१॰ बच्चियों के 'दूध'
पी गये बच्चे सारे
वे 'पानी पीकर' सो रही हैं...
उठेंगी अभी
सारे अभावों को देंगी बुहार
आँखों से पानी
और छाती से दूध उतार
पानी और दूध की क़िल्लत दूर करेंगी
बच्चियाँ
२॰ बच्चियाँ
टीवी देख रही हैं
टीवी में
सीता राम का ब्याह हो रहा है
अभी बजेगी दरवाज़े की घंटी
कोई आएगा थुलथुल
एक चीकट मेहमान
सोफ़े पर पसर जायेगा
बच्चियाँ किचन में घुस
चाय बनाएँगी
पकौड़े छानेंगी
स्वयंवर का धनुष टूटते-टूटते
हो ही जाता है कोई अड़भंग
कोई पूरा ब्याह
कहाँ देख पाती हैं बच्चियाँ!
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
kitni bebaki se sach bayan karti kavita ...behtreen bhaav
शैलजी
बहुत सुन्दर !! शिक्षाप्रद बात्।
बहुत बढिया ...
शैल जी,
हरेप्रकाश जी को हमारी बधाई जरूर पहुंचावें. कितनी सीधी बात है, शायद इसीलिये यह जरूरत अब समझी जा रही है लाड़ो / बेटी / बच्ची भी अपने विरूद्धार्थी पुल्लिंग से कहीं कम ना होते हुये भी क्यों विवश हैं झेलनो को वह सब जो आप कह रहे हैं :-
बच्चियों के 'दूध'
पी गये बच्चे सारे
वे 'पानी पीकर' सो रही हैं...
उठेंगी अभी
सारे अभावों को देंगी बुहार
आँखों से पानी
और छाती से दूध उतार
पानी और दूध की क़िल्लत दूर करेंगी
बच्चियाँ
साधुवाद,
मुकेश कुमार तिवारी
शैलेश जी बहुत गहरी बात कह गए ..
Wonderful !!
Amazing !!!
कुछ पाठक कहीं इसे मेरी कविता तो नहीं समझ रहे। स्पष्ट कर दूँ कि ये सभी हरे प्रकाश उपाध्याय की कविताएँ हैं, जो इस समय हिन्द-युग्म के अतिथि कवि हैं। मैं उनकी रचनाओं का प्रस्तोता मात्र हूँ।
marm se poorn rachna
मार्मिक, हृद्स्पर्शी
दोनों क्षनिकाएं गजब ddha गयीं,,,,
कमाल की नजर है आपकी,,,,,
दिल में उतरती है सीधे सीधे,,,,
स्वयंवर का धनुष टूटते-टूटते
हो ही जाता है कोई अड़भंग
कोई पूरा ब्याह
कहाँ देख पाती हैं बच्चियाँ!
bahut badhiya kshaniaayein...
ati-sundar
अर्ज किया तो पूछ लूँ कैसे हो
ऐसे हो या वैसे हो.
ये अन्दर की बात आप ही जानो
मैं तो समझूँ बस इतना
जैसे मजे में मैं हूँ
आप भी वैसे हो .
सुंदर अति सुंदर कवितायेँ .
आभार
सादर
रचना
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