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Wednesday, April 22, 2009

संहार सृष्टि सृजन का मूल


संहार सृष्टि सृजन का मूल

आह ! प्रकृति का कैसा विधान
संहार सृष्टि सृजन का मूल;
नवजीवन बन बहती धारा
बीज जब मिल जाता धूल

द्रव्य विलीन हो उर्जा निर्मित
प्रतिपादित नव ज्ञान सिद्धांत;
प्रकृति नियम का ही संचालन
फिर भी मानव क्यों हुआ भ्रांत

कुछ खोकर ही है कुछ पाना
नियति का विराट स्वर अनुगूंज;
नव उपवन नव सृष्टि सजाने
आवश्यक है शिव तांडव गूंज

कण-कण में है बसा हुआ वह
दर्शन मिले मिटा अहंकार;
अगम अगोचर अलख अपारा
संपूर्ण ब्रह्मांड है विस्तार

सुख दुख जीवन की धाराएं
आंसू बन बह जाती धार;
परम पिता में होकर विलीन
दो जीवन को सत्य आधार

कवि कुलवंत सिंह

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7 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

83Bahut Sundar Or Arth-Pradhaan Rachnaa Hai....

मुकेश कुमार तिवारी का कहना है कि -

कुलवंत सिंह जी,

जीवन के शास्वत सत्य को नये, प्रतीकों से परिभाषित करती हुई आपकी प्रस्तुत रचना बहुत अच्छी लगी।

विध्वंस के गर्भ में ही पुनर्निमाण का मूल है के दर्शाती हुई निम्न पंक्तियाँ बहुत प्रभावित करती हैं :-

कुछ खोकर ही है कुछ पाना
नियति का विराट स्वर अनुगूंज;
नव उपवन नव सृष्टि सजाने
आवश्यक है शिव तांडव गूंज

पुन्श्रच बधाईयाँ,

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

Pritishi का कहना है कि -

Alag, nayi-si kavita, bahut achcha vishay aur badhiya rachana!

God bless
RC

Divya Narmada का कहना है कि -

रचना मन को रुच रही, कवी को खूब बधाई.

कलम ह्रदय को छू सकी, विहस करे पहुनाई.

manu का कहना है कि -

बहुत ही सुंदर लिखा है,,,,
बधाई हो कुलवंत जी,,,,

Ria Sharma का कहना है कि -

द्रव्य विलीन हो उर्जा निर्मित
प्रतिपादित नव ज्ञान सिद्धांत;
प्रकृति नियम का ही संचालन
फिर भी मानव क्यों हुआ भ्रांत


सुन्दर प्रवाह लिए सुन्दर रचना !!!

kavi kulwant का कहना है कि -

आप सभी मित्रों का हार्दिक धन्यवाद...

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