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Thursday, March 26, 2009

दर्द की फसल




एक तडफ......
एक याद......
जो बसी है
सांसों की मानिन्द
सीने में
क्या भर सकेगा
वक्त का मरहम
इस ज़ख्म को
या........
उम्र भर यूं ही
तन्हाई में
तडपना होगा
आती है प्रतिध्वनी
दिल के खण्डहर से
कि कहां गये
वो दिन
जब........
सम्पूर्ण विश्व
एक मासूम मुस्कराहट
में सिमट आता था
.......अब तो
हृदय एक शीला है
तुम्हारी याद शीलालेख
जिसे उकेरा है
बिछडने के दंश ने
काश............
लौट सकता वो वक्त
जो ठहर गया था
तुम्हारी झुकी पलकों के साथ
मेरे कदमों पर.....
बस उन्ही नजरों ने
बांधा है मेरी राह को वरना
कांटे इतने ना थे कि
तुम तक पहुच ना सकू
बांध लिये थे सीने पर
मैने खुद ही
अपने हाथ वरना
फासले इतने ना थे कि
तुम्हे छु ना सकू
अब तो अश्रु सरिता
पर बंधा है
यादों का बांध
एकाकी रहट से
दर्द की फसल
लहलहा रही है...........

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6 कविताप्रेमियों का कहना है :

Ria Sharma का कहना है कि -

कि कहां गये
वो दिन
जब........
सम्पूर्ण विश्व
एक मासूम मुस्कराहट
में सिमट आता था


विनय जी.
हर भाव पर कितनी सहजता एवं सरलता से चल जाती है आपकी लेखनी
Amazing !!
सादर !!!

निर्मला कपिला का कहना है कि -

dil ko chhoo lene vali abhivyakti hai lajavab badhai

neelam का कहना है कि -

एकाकी रहट से
दर्द की फसल
लहलहा रही है

adbhut !!!!!!!!!!

Divya Narmada का कहना है कि -

भावप्रवण रचना... दर्द की फसल को काटने के लिए कलेजा भी फौलादी होना चाहिए जो विनय का ही हो सकता है..

manu का कहना है कि -

शान दार लिखा है सदा की तरह,,,,,,,,,,
विनय जी,.....
शीर्षक देखते ही लगा था के शायद विपुल भाई की कविता या क्षणिकाए होंगी,,,,,
( क्यूकी दर्द में तो उन्होंने ही पी, एच,दी , कर रखी है ,,,:::::)))

मगर आपने भी कमाल कर दिया,,,

एकाकी रहत से दर्द की,,,,,,,,,,,,
फसल लहरा रही है,,,,,,,,,,,,,
कमाल ,,,

दिगम्बर नासवा का कहना है कि -

यादों का बांध
एकाकी रहट से
दर्द की फसल
लहलहा रही है...........

सहज ही लिखी.प्रवाह में ढली सुन्दर रचना, अद्भुद लिखा है

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