एक तडफ......
एक याद......
जो बसी है
सांसों की मानिन्द
सीने में
क्या भर सकेगा
वक्त का मरहम
इस ज़ख्म को
या........
उम्र भर यूं ही
तन्हाई में
तडपना होगा
आती है प्रतिध्वनी
दिल के खण्डहर से
कि कहां गये
वो दिन
जब........
सम्पूर्ण विश्व
एक मासूम मुस्कराहट
में सिमट आता था
.......अब तो
हृदय एक शीला है
तुम्हारी याद शीलालेख
जिसे उकेरा है
बिछडने के दंश ने
काश............
लौट सकता वो वक्त
जो ठहर गया था
तुम्हारी झुकी पलकों के साथ
मेरे कदमों पर.....
बस उन्ही नजरों ने
बांधा है मेरी राह को वरना
कांटे इतने ना थे कि
तुम तक पहुच ना सकू
बांध लिये थे सीने पर
मैने खुद ही
अपने हाथ वरना
फासले इतने ना थे कि
तुम्हे छु ना सकू
अब तो अश्रु सरिता
पर बंधा है
यादों का बांध
एकाकी रहट से
दर्द की फसल
लहलहा रही है...........
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6 कविताप्रेमियों का कहना है :
कि कहां गये
वो दिन
जब........
सम्पूर्ण विश्व
एक मासूम मुस्कराहट
में सिमट आता था
विनय जी.
हर भाव पर कितनी सहजता एवं सरलता से चल जाती है आपकी लेखनी
Amazing !!
सादर !!!
dil ko chhoo lene vali abhivyakti hai lajavab badhai
एकाकी रहट से
दर्द की फसल
लहलहा रही है
adbhut !!!!!!!!!!
भावप्रवण रचना... दर्द की फसल को काटने के लिए कलेजा भी फौलादी होना चाहिए जो विनय का ही हो सकता है..
शान दार लिखा है सदा की तरह,,,,,,,,,,
विनय जी,.....
शीर्षक देखते ही लगा था के शायद विपुल भाई की कविता या क्षणिकाए होंगी,,,,,
( क्यूकी दर्द में तो उन्होंने ही पी, एच,दी , कर रखी है ,,,:::::)))
मगर आपने भी कमाल कर दिया,,,
एकाकी रहत से दर्द की,,,,,,,,,,,,
फसल लहरा रही है,,,,,,,,,,,,,
कमाल ,,,
यादों का बांध
एकाकी रहट से
दर्द की फसल
लहलहा रही है...........
सहज ही लिखी.प्रवाह में ढली सुन्दर रचना, अद्भुद लिखा है
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