उसकी आंखें
पता नहीं क्या कहती हैं
मुझे देखती हैं...चाहती हैं...
या चिढ़ाती हैं
एक तलाश रहती है
एक अजनबीपन भी है
ये मेरी नजरों का...
एहसास है...असर है
या सिर्फ वहम है
उस जैसा ही है कोई
जो गुनगुनाता है
उस जैसा ही कोई
अक्सर रूलाता है
उस जैसा ही कोई
हर वक्त अकेले में
चुपचाप
मेरे करीब चला आता है
फिर उसका होना
महज इत्तिफ़ाक क्यों है
वह नहीं होकर भी
मेरे पास क्यों है
अगर ऐसा कुछ नहीं
तो फिर...
मेरे ये जज़्बात क्यों हैं
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5 कविताप्रेमियों का कहना है :
उसकी आँखें क्या कहें, देख सके तो देख.
मन की आँखों से पढ़े, नयन नयन के लेख.
भावों का अभिषेक कर, सद्भावों से नित्य.
सम्बन्धों को कर 'सलिल', स्नेहिल अमल अनित्य.
मन से मन को जोड़कर, अंतर्मन में ध्यान.
कर जिसका तुझको बने, 'सलिल' वही रस-खान
सुंदर है | फ़िर भी और अपेक्षा है |
अवनीश तिवारी
aap ne to dil ki bat banya kar di hai. such unaki aankhe dekhati to hai, per jab hum dekhate hain to oo aapni najare jhuka leti hai...
आँखों की अपनी ही एक भाषा होती है
कला है बखूबी पढ़ पाने में..
संवेदनशील रचना !!
अछि लगी कविता,
एक बात और ,
इतना खूबसूरत "ऐनी माउस" ,,,,,,,,,,!!!!!!!!!!!!!!!!
बहुत अच्छा लगा, जिस मंच पर लोग एक दुसरे की खिंचाई करने के लिए अनाम बनते हैं, वहीं पर इतना सुंदर अनाम कमेंट पढ़कर बेहद सुखद लग रहा है,,,,,,,
ऐसा पहले भी देखा है,,,,,,पर उनमे अक्सर ही बनावट देखि है,,,,,
आचार्य कों प्रणाम,
अनाम जी कों नमस्कार,,,,,,,,,,,,,,,
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