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Sunday, March 15, 2009

दिव्य प्रकाश दुबे की अधूरी कविता


प्रतियोगिता की अगली कविता पर आते हैं जिसके रचयिता दिव्य प्रकाश दुबे के अनुसार यह उनकी अधूरी कविता है।, दिव्य सिमब्यॉसिस प्रबंधन संस्थान, पुणे से मार्केटिंग में प्रबंधन की पढ़ाई कर रहे हैं। हिन्द-युग्म पर यदा-कदा अपनी रचनाएँ भेजते रहते हैं।
पुरस्कृत कविता- अधूरी कविता

हर बार की तरह पूरा नहीं लौटा हूँ मैं इस बार
तुम्हारे घर से,
थोड़ा सा तुम मेरे साथ आ गयी हो
मेरे कपड़े की महक बन के
मेरी पलकों का पानी बन के
थोड़ा सा छूट गया हूँ मैं
तुम्हारे पास तुम्हारे घर पे
तुम्हारी अंगड़ाई के साथ
तुम्हारी बेपरवाह नींद के साथ
तम्हारी मुस्कराहट मेरे पास रह गयी है
तभी तुम जी भर हँस नहीं पाती फ़ोन पे
तुमने जिस भी कपड़े को छुआ था प्यार से,मैंने धुला नही है उसको आज भी,
उन कपड़ों की सलवटों पे इस्त्री नहीं की है मैंने,
उन सलवटों पे तुम चुप चाप से छुप के बैठ गयी हो
जब भी अकेले मैं होता हूँ तो तुमको उन सलवटों से
बाहर बुला लेता हूँ मैं
और फ़िर सादे कागज़ पे उन्हों सलवटों को
टेढी-मेढ़ी शक्ल दे कर
तुम्हें कविता मैं पूरा कर देना चाहता हूँ मैं
लेकिन कविता है कि पूरी ही नहीं होती
क्यूंकि थोड़ी सा ही आ पाई हो न तुम इस बार ......



प्रथम चरण मिला स्थान- तीसरा


द्वितीय चरण मिला स्थान- पाँचवाँ


पुरस्कार- कवयित्री निर्मला कपिला के कविता-संग्रह 'सुबह से पहले' की एक प्रति

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8 कविताप्रेमियों का कहना है :

neelam का कहना है कि -

achche bhaav divya ji,
badhaai sweekaren

Divya Narmada का कहना है कि -

हुईं दिव्य अनुभूतियाँ, सदा रहेंगी साथ.
मिटा अधूरापन-करें, पूर्ण पकड़कर हाथ.
पूर्ण पकड़कर हाथ, साथ हैं सलवट बनकर.
शब्द-शब्द में बसीं, याद कविता में ढलकर.
कहे 'सलिल' कविराय, न मिटतीं सुधि की कृतियाँ.
बिना कुछ कहे कह जाती कुछ मन की बतियाँ.

-salil.sanjiv@gmail.com

manu का कहना है कि -

अच्छी लगी अधूरी कविता,
ऐसी कविताओं को अक्सर अधूरा ही देखा है,
बधाई,,

Unknown का कहना है कि -

abhi-abhi aapki yah adhuri kavita padhi hai aur apne adhurepan ka ehsas kiya hai.
abhi kal hi phon par shraddheya vishwnandji se meri baat hui thi aur aapke naam ka zikra hua tha ki aagami 22 march ko apne niwas par poetry-meet rakh rahe hain.meri taraf se us meet ke liye shukamnayen.

Unknown का कहना है कि -

read me on -
www.po4oetry.com
neerajgurubadal.blogspot.com

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

बहुत दिनों बाद आपकी रचना मिली |
सुंदर भाव हैं | बधाई |
लेकिन शायद कुछ टंकण कमी लगी कहीं कहीं |
जैसे - पे , क्यूंकि थोड़ी सा आदि |
क्या इसे जानबूझकर प्रयोग में लाया है ?


-- अवनीश तिवारी

Unknown का कहना है कि -

वैसे कुछ कविताए अगर पूरी हो जाए तो अपना महत्व खो देती है, इस कविता को अधूरा ही रखना दिव्य जी

सुमित भारद्वाज

Unknown का कहना है कि -

वैसे कुछ कविताए अगर पूरी हो जाए तो अपना महत्व खो देती है, इस कविता को अधूरा ही रखना दिव्य जी

सुमित भारद्वाज

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