सच (1)
सच हवा की तरह है
जो अलग बरतनों में
अलग आकार लेता है
ज़रूरत से फैलता-सिकुड़ता है
सच नमक की तरह है
स्वादानुसार हथेलियों से
हर जीभ तक जगह पाता है
सच ज़्यादा हो तो ज़हर हो जाता है
सच सुकूं है तब तक
जब तक उगला न गया हो
सच परेशान कर सकता है
गर सही परोसा न गया हो
सच हुनर की तरह है
जो उघड़ा हुआ बिल्कुल नहीं जंचता
हर ढ़का सच खूबसूरत होता है
पर हर सच भी ऐसा कहां होता है
सच जड़ की तरह है
जिनसे टहनियां-पत्ते..पूरा पेड़ ज़िन्दा रहता है
बागवां पेड़ों को शक्ल देते हैं
और जड़ों को पानी
ताकि सच ज़मीं के भीतर ही फलता-फूलता रहे
पूरे बाग की ख़ातिर
सच लावे की तरह है
जो धधकता है ज़मीं के भीतर ही
जहां ज़मीं कमज़ोर पड़ी
कि आ जाता है उफनता हुआ
बाहर...एक जलजले के साथ
सच कहां सब पचा पाते हैं
सच कहां सब बता पाते हैं
सच को हर वक्त में
कोई एक संजय ही देख पाता है
क्योंकि सच के उजाले में
आंखें अंधेपन की हद तक चौंधियाती हैं
सच (2)
सच की हक़ीक़त भी कहानी है
सच की ज़रूरत भी कहानी है
सच से सरोकार सबका इतना है
सच हक़ीक़त है सच कहानी है
सच का इस्तेमाल ऐसे होता है
कोई खरीदता है कोई बेचता है
कोई छिपाता है कोई दिखाता है
सच ही सारे हालात भी बनाता है
फिर भी सच बिखर-सा जाता है
ये सिर्फ सच की बदमिजाज़ी है
कि सच हक़ीक़त भी है...कहानी भी।
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
ये सिर्फ सच की बदमिजाज़ी है
कि सच हक़ीक़त भी है...कहानी भी। yah lines kafi achhi lagi
सच हवा की तरह है
जो अलग बरतनों में
अलग आकार लेता है
बहुत सही बात कही है.. जब जैसा वक्त आता है उसी तरीके से सच बोला जाता है.. पर क्या ऐसा नही लगता की वो एक झूठ के आवरण में लिप्त होता है?
सच लावे की तरह है
जो धधकता है ज़मीं के भीतर ही
जहां ज़मीं कमज़ोर पड़ी
कि आ जाता है उफनता हुआ
बाहर...एक जलजले के साथ
ये पंक्तियाँ सटीक हैं
सोचने पर मजबूर कराती रचना
बधाई
एक उम्दा पेशकस लगी |
बधाई |
-- अवनीश तिवारी
सच इश्तेहारी है जो बार बार दोहराने से ओर सच हो जाता है......सच बटा हुआ है हिस्सों में ताकि अपनी मर्जी का चुन सके सब अपने हिसाब से.......
अभिषेक तुम्हारी कविता पढने पर जाने क्यों अपने विचारो को को रोक नही सका .....निसंदेह तुमने एक आइना रखा है सामने ...
रचना का विषय अच्छा लिया आपने,मुझे लगा आप इससे भी अच्छा लिख सकते थे!रचना कुछ लम्बी हो गई है!पर अच्छी है! बधाई!
अभिषेक जी,
बहुत ही अछा लिखा है आपने,,,,,,,,,,,,,,सच,,,,,,,,,,,,,!!!!!!!!!
ये सिर्फ सच की बदमिजाज़ी है
कि सच हक़ीक़त भी है...कहानी भी।
bahut badhiya ,behad umda bahut gahre bhav ,sach ko kahe bina rah nahi sakti ,sach ye hai ki kavita me sach waakai khubsoorat hi hai .
सच हकीकत भी है कहानी भी
है रूह की रवानी भी
एक सच छुपाने को
हजार झूठ बोलने पड़ते है
ये बात नई भी है पुरानी भी
सच कहा आप ने
सच हकीकत भी है कहानी भी
सादर
रचना
सच ही लिखा सच के लिए
कविता अच्छी लगी
क्या बात है अभिषेक जी!!! मजा आ गया
सच(१) पसंद आया। बहुत सारी गूढ बातों का समावेश किया है आपने।
सच(२) में कुछ सुधार की गुंजाईश है।
-विश्व दीपक
अभीषेक भाई, इसबार तो आपने क़त्ल कर दिया...
दमदार प्रस्तुति....और कुछ कहने को नही है इस रचना के लिए..
आलोक सिंह "साहिल"
Plz accept my congratulations for such a beautiful poetry. I thoroughly liked n enjoyed reading it.
सच जड़ की तरह है
जिनसे टहनियां-पत्ते..पूरा पेड़ ज़िन्दा रहता है....v true...i feel a firm foundation of truth is the cause of any successful relationship.
सच लावे की तरह है
जो धधकता है ज़मीं के भीतर ही
जहां ज़मीं कमज़ोर पड़ी
कि आ जाता है उफनता हुआ
बाहर...एक जलजले के साथ......grt lines
सच कहां सब पचा पाते हैं
सच कहां सब बता पाते हैं
सच को हर वक्त में
कोई एक संजय ही देख पाता है.....bahut khoobsoorat lines hai....sach ko sab loog value nahin dete hain
सच ही सारे हालात भी बनाता है
फिर भी सच बिखर-सा जाता है
....too too good
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