क्या पता
सोती भी है या नही ,
जब मैं सोता ,
वह जगी होती ,
जब मैं जगता , वह
झाडू - पानी -सफाई कर ,
फूंकनी ले ,
चुल्हे के पडौस में
बैठी होती ,
कभी घट्टी पर ,
कभी गौशाला में ,
गुदडियों को सुई चुभोती ,
ढिबरी में तेल भर
उजाला करती ,
दिन भर
कुछ ना कुछ करती ही रहती ,
मुझे बुखार आता ,
दद्दू खटियां पर पडे रहते ,
बाबा खांसते- खांसते दुहरा जाते....
पर , माँ कभी बीमार नही होती
फ़िर भी.........
फिर भी ना जाने
जल्दी .....
मर क्यूं जाती है ?
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20 कविताप्रेमियों का कहना है :
क्या बात है...बहुत खूबसूरत...छू लेने वाली
man ko choo liya kya sunder abhivykti hai
मेरे दिए जख्मो से सुबह से शाम तक रोती है
पर मान जाती है एक पल में मनाने से
माँ तो आख़िर माँ होती है
-बहुत सुंदर रचना है आपने काफी सटीकता से लिखा है मुझे सबसे जायदा जो पंक्तियाँ पसंद आई वो है
मुझे बुखार आता ,
दद्दू खटियां पर पडे रहते ,
बाबा खांसते- खांसते दुहरा जाते....
पर , माँ कभी बीमार नही होती
फ़िर भी.........
फिर भी ना जाने
जल्दी .....
मर क्यूं जाती है ?
कविता का शुरूआती में मूलतः गाँव के मूलभूत शब्दों को ऐसे आपने डाला है के वाकई प्रशंसा के मेरे पास शब्द नही है मगर आखिरी में आपने माँ के साथ इतनी बेदर्दी से प्यार जताया के बस आंकें नम हो गई .... बेहद उम्दा रचना बहोत बधाई आपको ......
अर्श
माँ ऐसी होती है क्योंकि हमें अपने खून से सींचा होता है उसने हमें दर्द हो उससे पहले उसे दर्द होता है
जल्दी मर जाती है क्योंकि हम उसकी कद्र नहीं कर पाते.... सुन्दर रचना...बधाई!
कहते हैं ,की खुदा हर जगह मौजूद नही हो सकता ,इसलिए उसने माँ को बनाया ,
खुदा ख़ुद के दर्द अकेले सह नही पाता,इसलिए ही वह सबसे पहले माँ को बुलाता ,
कहना न होगा की माँ का दर्जा खुदा से भी ..................................... bahut hi bhaavuk prastuti
सच , आँखें भर आईं,
बहुत खूब!
माँ के लिए जितना कहो कम है
भावुक !!!
sir ji,gajab ki bhawuk abhivyakti.............
ALOK SINGH "SAHIL"
फ़िर भी ना जाने,
जल्दी मर क्यूं जाती है ....
कविता का बहुत ही दर्द भरी हकीकत के साथ अंत किया है आपने....
सुंदर रचना है |
अवनीश तिवारी
भावुक रचना ................
माँ की बारे में जितना कहा जाए..........कम है
माँ होती बीमार पर, समझ न पाते हम.
इसीलिये तो झेलते, माँ खोने का गम.
माँ जीवन देती हमें, जीते जी वर मौत.
हम रोते उसके लिए, जब हो जाती फौत.
माँ बहिना बीबी 'सलिल', नाम तीन हैं एक.
नेह-प्रेम, सेवा लगन, युत तीनों अनिकेत.
जिसने माँ की विनय की, उसने पाई मुक्ति.
मातृ-भक्ति भव-मुक्ति की, 'सलिल' श्रेष्ठ है युक्ति.
बहूत ही भावूक सवेंदनों से भरी कविता है। बस मां तो ऐसी ही होती है।
सब की कही करती है
ख़ुद का कहाँ सोचती है
इसी लिए शायद
माँ जल्दी मर जाती है
आप की कविता को पढने के बाद शायद सभी इस तरफ़ सोचेंगे
बहुत प्यारी रचना
सादर
रचना
अच्छी लगी आपकी कविता...प्रस्तुति में सरलता, भावना और ईमानदारी है...बधाई
मार्मिक और सुंदर कविता! Keep it up!
माँ
माँ रात को सोती ही नहीं
जब से पैदा हुआ हूँ
तभी से है उसे
ये लाइलाज बीमारी!!
मां पर हर लिखी कविता इस बात का सबूत है कि हम ज़िंदा हैं...
निखिल
माँ धरती पर ईश्वर का रूप लिए ,बच्चे के पल-पल
को जीती है , उसकी हर बात माँ की धड़कनों में पनाह
लेती है,तो माँ बीमार नहीं होती..........बहुत गहरे मर्म
को उभारा है,बहुत सुन्दर
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