झांकता है.....कोई....
दीवारों से...छतों से...
पर्दों से....कोनों से...
रात के अंधेरों में
अंधेरों से...सपनों से
कभी स्याह...इच्छाओं की तरह
कभी बेलगाम जज़्बों-सा
कभी बेपरवाह खुशी-सी
कभी बेपनाह दर्द से.....
घूरता है.... कोई....
इन्हीं दीवारों-पर्दों-...
छतों-कोनों-अंधेरो-सपनों से
चीरता हुआ जेहन तक
कभी तीखे सच की तरह
कभी ज़हर बुझे झूठ-सा
कभी लीलने की चाह लिए
कभी खेलने की आस में....
टटोलता है.... कोई....
हवाओं में...अंधेरों में
ख्वाब में...हक़ीक़त में...
जागते हुए....सोते हुए...
कड़े... नंगे... तपिश लिए...
हाथों से......
कोई कुछ टटोलता है
शायद ज़मीर....शायद खोखलापन...
शायद पूर्णता.....शायद अधूरापन
शायद कुछ नहीं....शायद सबकुछ....
घुटन फिर बढ़ रही है.....
कि कोई झांकता-घूरते हुए....
.....टटोल रहा है............
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
शशक्त कविता, नयी कविता
सुंदर अभिव्यक्ति
कोई कुछ टटोलता है
शायद ज़मीर....शायद खोखलापन...
शायद पूर्णता.....शायद अधूरापन
शायद कुछ नहीं....शायद सबकुछ....
घुटन फिर बढ़ रही है.....
कि कोई झांकता-घूरते हुए....
.....टटोल रहा है............
बहुत सुन्दर लिखा है अभिषेक जी।
काफी दिनों बाद आपकी कविता पढ़ने क मिली।
सुंदर अभिव्यक्ति.. हमेशा की तरह..
बहुत सुंदर | आवेशित करते करते रुक जाती है रचना |
-- अवनीश तिवारी
व्यक्ति में मन की बात ,आत्ममंथन ,और सच्चाई कुछ असी है ये कविता
सुंदर कविता
सादर
रचना
छत-दीवारों से 'सलिल'
झाँक रहा है कौन?
घूर रहा है रात-दिन,
अँधा-बेबस मौन.
तीखा सच झूठा जहर,
आदम से कर खेल.
डाल रहे हैं सत्य की,
पकड़े नाक नकेल.
जागा हुआ ज़मीर ही,
'सलिल' हो सका पूर्ण.
शेष अधूरे स्वप्न सब,
किए समय ने चूर्ण.
संजिव्सलिल.ब्लागस्पाट.कॉम
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
कौन है भाई.....कौन है जो फिर से हिंदयुग्म पर सक्रिय दिख रहा है...
कौन है भाई.....कौन है जो फिर से हिंदयुग्म पर सक्रिय दिख रहा है...
well written lines :
कोई कुछ टटोलता है
शायद ज़मीर....शायद खोखलापन...
शायद पूर्णता.....शायद अधूरापन
शायद कुछ नहीं....शायद सबकुछ....
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