रहेंगे हम, घर में अपने ही मेहमान कब तक
रखेंगे यूं बन्द ,लोग अपनी जुबान कब तक
फ़रेब छल,झूठ आप रखिये सँभाल साहिब
भरोसे सच के भला चलेगी दुकान कब तक
चलीं हैं कैसी ये नफ़रतों की हवायें यारो
बचे रहेंगे ये प्यार के यूं मचान कब तक
हैं कर्ज सारे जहान का लेके बैठे हाकिम
चुकाएगा होरी,यार इनका लगान कब तक
इमारतों पर इमारतें तो बनायी तूने
करेगा तामीर प्यार का तू मकान कब तक
रही है आ विश्व-भ्रर से कितनी यहां पे पूंजी
मगर रहेंगे लुटे-पिटे हम किसान कब तक
रहेगा इन्साफ कब तलक ऐसे पंगु बन कर
गवाह बदलेंगे आखिर अपना बयान कब तक
दुकान खोले कफ़न की बैठा है 'श्यम' तो अब
भला रखेगा 'वो' बन्द अपने मसान कब तक
मफ़ाइलुन फ़ा,मफ़ाइलुन फ़ा,मफ़ाइलुन फ़ा
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
उत्कृष्ट और सार्थक रचना हृदयस्पर्शी है.आभार......
बहुत अच्छा लिखा है।
gahre bhaw dil me gahre tak utar gaye...
ALOK SINGH "SAHIL"
चलीं हैं कैसी ये नफ़रतों की हवायें यारो
बचे रहेंगे ये प्यार के यूं मचान कब तक
रहेगा इन्साफ कब तलक ऐसे पंगु बन कर
गवाह बदलेंगे आखिर अपना बयान कब तक
अच्छे शे’र हैं श्याम जी
-वज़नदार गज़ल।
बधाई स्वीकारें।
-तन्हा
हमेशा की तरह अच्छी रचना.....
बधाई स्वीकारें
फ़रेब छल,झूठ आप रखिये सँभाल साहिब
भरोसे सच के भला चलेगी दुकान कब तक
वाह श्याम जी
एक और बेहतरीन ग़ज़ल
शुक्रिया
आचार्य संजीव 'सलिल', सम्पादक दिव्या नर्मदा
संजीवसलिल.ब्लागस्पाट.कॉम / सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम
अपने ही घरमें रहें, हम कब तक मेहमान.
बंद रखेंगे लोग यूँ, कब तक यार जुबान?
छल फरेब मिथ्या कपट, रखिये आप संभाल
भला भरोसे सत्य के, कब तक चले दुकान.
यारों नफरत की बही दस दिश आज बहार.
बचे रहेंगे प्यार के, कब तक मौन मचान.
हाकिम बैठा है चढा, सब दुनिया की क़र्ज़.
होरी कैसे चुकाए, सर पर लड़ा लगान.
खडी इमारत कर रहा, तू हर रोज़ हजार.
बोल करेगा प्यार का, कब तामीर मकान?
दुनिया भर से आ रही, है पूंजी बेभाव.
लुटता-पिटता रहेगा, कब तक हाय किसान?
कब तक ऐसे पंगु बन, भटकेगा इन्साफ.
स्वयं गवाह लिखाएंगे, कब तक झूठ बयान? ,
खोली है जब श्याम ने, अपनी कफन दुकान.
बंद रखेगा वो भला, कब तक चिता मसान.
बहुत सुंदर शेर श्यामजी
बधाई !!
अच्छे शेअर हैं, वाह!
फ़रेब छल,झूठ आप रखिये सँभाल साहिब
भरोसे सच के भला चलेगी दुकान कब तक
इमारतों पर इमारतें तो बनायी तूने
करेगा तामीर प्यार का तू मकान कब तक
वाकई !!
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