अजब ये मोहब्बत का जाल है,
फंसकर भी मछली निहाल हैं !
तुझमें दिखता हूँ आईना बनेगी?
चाँद का चाँद से सवाल है !
गीली हुई सूखी तस्वीर फिर
तेरी सहेली का ऐसा ख़याल है !
संभाला नमक तू रुसवा ना हो
क़ैद आँसू नमक हलाल हैं !
ग़मज़दा शेर पर उनकी 'वाह'
सितम ढाने का हुनर कमाल है!
लम्बा है सफर ढोनी हैं यादें,
ये शायर नहीं महज़ हम्माल है !
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15 कविताप्रेमियों का कहना है :
तुझमें दिखता हूँ आईना बनेगी?
चाँद का चाँद से सवाल है !
संभाला नमक तू रुसवा ना हो
क़ैद आँसू नमक हलाल हैं !
उम्दा रचना!
भावों को अच्छी तरह से अभिव्यक्त किया गया है। शिल्प पर भी काम किया गया है। इसलिए मुझे यह रचना पसंद आई। मुकम्मल गज़ल है या नहीं इसका निर्धारण और निर्णय तो "बहर" के जानकार हीं करेंगे क्योंकि मेरे अनुसार रचना में रदीफ, काफिया और मतला दुरूस्त है।
-तन्हा
सब कुछ तो तुम्हारे मुह पर तो कह चुका और क्या.....सब कुछ इतना सटीक....और जगह पर ....रूपक...को क्या कहें....
ग़मज़दा शेर पर उनकी 'वाह'
सितम ढाने का हुनर कमाल है!
लम्बा है सफर ढोनी हैं यादें,
ये शायर नहीं महज़ हम्माल है !..............
........
शुभाकान्षाएं.......
ग़ज़ल की व्याकरण मेरे समझ से ऊपर है.... उस पर कोई टिपण्णी नहीं ....पर सारे भाव सीधे दिल से समझ में आते है.....
ग़ज़ल का जवाब नही... क्या खूबसूरती से उकेरा है भावों को..
एक एक शब्द दिल की बात कह गया ... आप सीधे दिल में उतार जाते हैं विपुल जी... आपका बहुत बड़ा फ़ैन हूँ मैं .. एक एक शब्द सच्चाई होता है आपका..
यह शेर तो छू गया...
संभाला नमक तू रुसवा ना हो
क़ैद आँसू नमक हलाल हैं !
ग़मज़दा शेर पर उनकी 'वाह'
सितम ढाने का हुनर कमाल है!
ऐसे ही पढ़वाते रहिए हमको...
ग़मज़दा शेर पर................................
बहुत अच्छा लगा..
बाकि मेरा कंप्युटर ख़राब है .............
बहर की बात फ़िर कभी....जब कुछ ज्यादा ही बे-बहर पढने को मिलेगा .....
मनु जी..मैने यह दावा नहीं किया कि मैने जो लिखा वह ग़ज़ल है| मैं परंपराओं का सम्मान करता हूँ|चाहे वह कोई सी भी हो|
वो शायर जो पूरे बहर में लिखते है सारे नियम कायदो का पालन करते हैं उनकी मैं बहुत इज़्ज़त करता हूँ|आख़िर यह काफ़ी मेहनत और अनुभव का काम है|
मुझे बहर के बारे में ज़्यादा क्या बिल्कुल भी जानकारी नहीं| तो जो मैने किया है वो "जान बूझकर अनजाने में किया गया पाप" है और ऐसा करते हुए मुझे मज़ा भी आया|शायद भविष्य में भी ऐसा करूँ!
बहर के बारे में जानकारी मिले तो खुद को भाग्यवान समझूंगा| इंतज़ार कर रहा हूँ...आप जैसे वरिष्ठ अब साथ हैं तो अचानक लग रहा है कि यह ज़्यादा लंबा नही होगा |
अजब ये मोहब्बत का जाल है,
फंसकर भी मछली निहाल हैं !
सुंदर अभिव्यक्ति, सुंदर शब्द
क्या बात है, बहुत खूब
जानकारी तो मुझे भी नहीं है.........कभी पढा भी नहीं और चाहा भी नहीं ........फ़िर भी एक बार गूगल पे जा के छंद का रूप देखा था...दिमाग घूम गया. एइसे वापस इंटर मारा जैसे भूत देख लिया हो....बस जो कुदरती तौर पे मालिक बख्शता है ...कुछ फिल्मी गीत वगैरह सुन कर ...उतना ही पता है.........पर मैं अगर किसी को कुछ कहूं तो और कुछ हो या न हो मुझे बहुत कुछ नया जानने समझने को मिल जाता है.......ये ही शायद मेरा सीखने का तरीका है.......स्कूल मैं भी मैं बजाय औरों की तरह टिक कर बैठ के सीखने के बजाय धक्के खाकर सीखना पसंद करता था.......बाकी असली बात तो दिल के कहने की होती है....अब एक शेर है मेरा शायद पूरा बहार मैं न हो...मगर फोरफ़िर भी मैंने इसे दिल से लगा रखा है....क्यूंकि दिल से निकला है......मेरे हालात ने पैदा किया है
"वक्त ने शायद ज़ख्म भर दिए हैं अपने भी,
था कोई वक्त के हर बात ग़ज़ल थी अपनी"
बढेगी उम्र तो हश्र क्या होगा,
अभी से बनाया जो ये हाल है....
कमाल है विपुल... क्या लिखा है भाई.. वाह..
निखिल ने बिल्कुल ठीक कहा है.. :-)
गीली हुई सूखी तस्वीर फिर
तेरी सहेली का ऐसा ख़याल है !
संभाला नमक तू रुसवा ना हो
क़ैद आँसू नमक हलाल हैं !
ग़मज़दा शेर पर उनकी 'वाह'
सितम ढाने का हुनर कमाल है!
मनु जी... हर कविता पर अपनी छाप छोड़ देते हैं आप... आपका शे’र गजब है...दिल से..
"वक्त ने शायद ज़ख्म भर दिए हैं अपने भी,
था कोई वक्त के हर बात ग़ज़ल थी अपनी"
व
गीली हुई सूखी तस्वीर फिर
तेरी सहेली का ऐसा ख़याल है !
ये शेर न जाने कितने भाव समेटे हैं .खूब लिखा है
मनु जी आप का शेर बहुत अच्छा है
सादर
रचना
बेहतर होगा कि हम इस मसले से ऊपर उठ जायें कि "क्या" को "क्या" नाम दें.
अजी, घी के लड्डू के तो बुँदे भी लजीज होते हैं.
अब देखिये न यह बूंदा कितना लार टपकाऊ है
संभाला नमक तू रुसवा ना हो
क़ैद आँसू नमक हलाल हैं !
विपुल भाई,ऐसे लड्डुओं का इन्तजार हमेशा से रहा है और भविष्य में भी रहेगा.
अपनी दुकान चलते रहिये भाई जी.
आलोक सिंह "साहिल"
अजय:-
bhai bahut khub...........
kis kis sher ki tareef karoo
ek bahut hi pyari rachana
sare sher jhakjhor dene wale hai bahut bahut badhaiya
ग़मज़दा शेर पर उनकी 'वाह'
सितम ढाने का हुनर कमाल है!
संभाला नमक तू रुसवा ना हो
क़ैद आँसू नमक हलाल हैं
ye dono best hai...cut above the rest hai :)
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