क्यों धुआं बस्ती में भरने है लगा
यक-ब-यक हर शख्स डरने है लगा
इक परिंदा ता-फलक पहुँचा मगर
जाने क्यों नीचे उतरने है लगा
नौजवां की आँख में सपने थे कल,
मौत बन कर अब विचरने है लगा
खूबसूरत शख्स था वो लाजवाब
अब कफ़न से वो सँवरने है लगा
जब बिछी लाशें विदा कर दी गईं
शह्र का मौसम सुधरने है लगा
रात देखा खूबसूरत आबशार
अश्क बन कर अब बिखरने है लगा
शब्दार्थः- यक-ब-यक- अचानक, एकाएक, ता-फ़लक़- आसमान तक, आकाश तक, आबशार- पहाड़ी सोता, जलप्रपात
ग़ज़लगो- प्रेमचंद सहजवाला
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
क्या नक्शा उतारा है कल के हादसे का... कमाल है .
काश वो भी समझें
"मासूम हैं बहोत तेरे पाले हुए बन्दे,
हैं ज़हर नाक वो जो तुझे पाल रहे हैं.."
"बे-तक्ख्ल्लुस"
premchand ji sadhuvaad ,sirf saadhuvaad aapko
इन हादसों से मन इतना आहात है की कुछ कहने को शब्द नही | बस आंखे नम है
jo bach gaye unhe nav yauvan dhan mila.
jo chale gye unhe mahaj 3gaj kafan mila.
ek hadsa jo jindagi ke karib tha,
maut manke use ura le gya koi.
रात देखा खूबसूरत आबशार
अश्क बन कर अब बिखरने है लगा..
जो चले गये उन्हें श्रद्धांजलि....
...waqt ki nzaaqat ko mehsoos karte hue ek pur.asar ghazal kahi hai aapne. maiN sabhi paathakoN ki taraf se aapke khyalaat ka yooN anumodan kartaa hooN...
"zindgi pr maut ki ye saazisheiN
zehno.dil mei khauf bharne hai lga
muskraati zindgi ke shehr meiN
hr qadam ik darr pasarne hai lga
jism ghaayal aur laasheiN bekafan
khoon aankho mei utarne hai lga
ae khuda, ab hoN tumhari rehmateiN
iltejaa hr shakhs karne hai lga"
AAMEEN ---MUFLIS---
(totally inspired by you)
क्या कहें दर्द शब्द नही आंसू बनगए है और अब आंसू भी नाकाफी लगने लगे है एसे में आप की सुंदर ग़ज़ल पढ़ दिल भर आया
सादर
रचना
धुआं कितना भी घना हो
रौशनी बुझने न देंगे
नहीं शव से हम डरेंगे
शिवों को मिटने न देंगे
शिवा है हिम्मत हमारी
कोशिशें घटने न देंगे
मौत को हम जिंदगी का
मर्सिया पढ़ने न देंगे
गोलियाँ कितनी चलाओ
फोड़ लो बम भी अनेकों
अडिग है आशा हमारी
दिलों को फटने न देंगे
संजिव्सलिल.ब्लागस्पाट.कॉम
संजिव्सलिल.ब्लॉग.सीओ.इन
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