मुझको तो हर एक क़दम पर डर लगता है,
कहाँ-कहाँ तक तुमको मैं बतलाऊं पापा....
चार दवाओं की पुर्जी भर लिख देने के,
डॉक्टर पूरे दिन की कमाई ले लेता है,
धरती के भगवान अगर ऐसे होते हैं,
वो भगवान नहीं दिखता है, मुझे सुकूं है....
मॉल के आगे से जब भी मैं पैदल गुजरूँ,
इक पतला-सा लड़का आस भरी नज़रों से
ऐसे तकता है कि जैसे,
पैदल चलने की भी पार्किंग रूल-वूल है.....
डर लगता है दूध के पैकेट में ना जाने,
बनिए ने कोई जादू-वादू घोल रखा है,
ताकि अगली बार उसी दूकान पे आऊँ,
ना आया तो "पेट बिगड़ जाए ससुरे का"
टी.वी. के पन्ने पलटूं तो सहम-सहम कर,
क्या जाने बिना शेव वाली मेरी तस्वीर उठाकर,
सुंदर-सी कोई लड़की बोले-"आतंकी है”,
और वो ये भी बोले कि "हम ख़बर हैं, बाकी सारा भ्रम है.....”
किसी खिलौने वाले से गुब्बारा लेकर,
जैसे ही माँ अपने बच्चे को पुचकारे,
हाथ से छूटे गुब्बारा और बीच सड़क पर,
ममता की मारी कुछ लाशें औंधी पड़ी हों,
मुझे तो अब ये भी लगता है,
कि मैं सारे दिन का दर्द समेटे,
जब आईने के सामने आऊँ,
आईना मुझसे ना कह दे-"कौन हो तुम??
इतनी सारी शक्लें लेकर तुम आए हो,
कौन-सा चेहरा तुम देखोगे,
हर चेहरे पर दाग़ बहुत हैं,
ना देखो तो ही अच्छा है....
तू भी तो कुछ बोल मेरे सुख-दुःख के साथी,
कैसे यकीं आए कि सब कुछ ठीक यहाँ है....
क्या जानूं इक रोज़ तुम्हारी गोद में लेटूं,
और तू बोले-
"बहुत हुआ ये दर्द-वर्द का हुक्का-पानी,
बहुत हुआ ये छठी शताब्दी का रोमांस
कुछ तो बदलो...
और नहीं तो बदबू वाली शर्ट बदल लो
(प्यार की खुशबू अब इसमे आती ही कहाँ है)"
......
.........
फ़िर तुम दस बातें और कहो,
और तुम्हारी आंखों में मैं देखता जाऊं,
बिना सुने कुछ.....
डर लगता है तुम्हारे पहलू से भी उठकर,
मेरी आँखें खुली रहीं तो,
मेरी नज़रें इस दुनिया में
किससे नज़र मिला पाएंगी....
तेरे पहलू में दम टूटे तो ही अच्छा है....
मरने से पहले भी जन्नत किसे मिली है...
किसे पता है,
मौत के बाद सारे लोग जहाँ जाते हैं,
बनिए, मॉल, टी.वी. चैनल और डॉक्टर...
सब अपनी दूकान सजाकर वहाँ जमे हों......
निखिल आनंद गिरि
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
20 कविताप्रेमियों का कहना है :
जीवन की कङ्वी सच्चाई,साफ़-साफ़ लिख डाली.
कैसे ट्टिपणी लिखें बताओ,शब्द हो गये खाली.
शब्द हुये हैं खाली,ह्रदय रो रहा लेकिन.
भावी पीढी को क्या दे पा रहे हम लेकिन.
कह साधक कवि,आपकी कविता हमको भायी.
साफ़-साफ़ लिख डाली जीवन की सचाई.
सुंदर रचना है, पर धरती पर भगवान नहीं इंसान होते हैं. आज कल यह इंसान धर्म बदल कर शैतान हो रहे हैं.
कटु समसामयिक यथार्थ का मुखर शब्द-चित्र!
बधाई।
कविता अच्छी लगी,कुछ पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी, जैसे-तू भी तो कुछ बोल.........और तेरे पहलु में दम टूटे.........बधाई!
तेरे पहलू में दम टूटे तो ही अच्छा है....
मरने से पहले भी जन्नत किसे मिली है...
बहुत सुंदर
जब कोई रचना दिल से लिखी जाती है तो ऐसा ही असर रखती है... अल्लाह करे ज़ोरे क़लम और ज़ियादा...
नाज़िम नक़वी
तेरे पहलू में दम टूटे तो ही अच्छा है....
मरने से पहले भी जन्नत किसे मिली है...
किसे पता है,
मौत के बाद सारे लोग जहाँ जाते हैं,
बनिए, मॉल, टी.वी. चैनल और डॉक्टर...
सब अपनी दूकान सजाकर वहाँ जमे हों......
बहुत बढिया लिखा
सुमित भारद्वाज
धरती के भगवान अगर ऐसे होते हैं,
वो भगवान नहीं दिखता है, मुझे सुकूं है
बहुत ही सुंदर और प्रभावी रचना है - बधाई!
आपने समसामयिक समस्यायों को इतने संजीदा और सादगी से पेश किया है | एक -एक शब्द दिल की गहराई तक उतरता चला गया , कोई टिपण्णी कराने के लिए शब्द ही नही बचे | बहुत-बहुत बधाई .....सीमा सचदेव
आपने समसामयिक समस्यायों को इतने संजीदा और सादगी से पेश किया है | एक -एक शब्द दिल की गहराई तक उतरता चला गया , कोई टिपण्णी कराने के लिए शब्द ही नही बचे | बहुत-बहुत बधाई .....सीमा सचदेव
बहुत ही सटीक रचना...
निखिल जी के मुखारबिन्दु से यह रचना सुन चुका हूँ अत्यंत ही गहन बात समेटे हुए है..
बहुत बहुत बधाई
कवित सुंदर है पर मुझे लगता है की जिंदगी की और इतना भी तल्खी भरा नजरिया नही होना चाहिए...
देखना चाहो तो बहुत कुछ सुंदर भी है..
किसी खिलौने वाले से गुब्बारा लेकर,
जैसे ही माँ अपने बच्चे को पुचकारे,
हाथ से छूटे गुब्बारा और बीच सड़क पर,
ममता की मारी कुछ लाशें औंधी पड़ी हों,
दर्द भी इतनी मासूमियत से कहा जा सकता आप की कविता पढ़ के पता चला
बहुत खूब
सादर
रचना
सच लिखा है निखिल भाई...
वो ये भी बोले कि "हम ख़बर हैं, बाकी सारा भ्रम है....
मीडिया में रहकर आप मीडिया वालों की खबर लेंगे तो कहीं गड़बड़ न हो जाये... :-) ज़रा ध्यान से..
Good verses.
-RC
किसी खिलौने वाले से गुब्बारा लेकर,
जैसे ही माँ अपने बच्चे को पुचकारे,
हाथ से छूटे गुब्बारा और बीच सड़क पर,
ममता की मारी कुछ लाशें औंधी पड़ी हों
Don't know what inspired you to write this. I hope its not a real-life experience.If not, then my sincere feeling is - its terrible.
- a mother
Yatharth ka kadva sach ..
sunder abhivyakti
Likhten rahe
Dhanyavaad
ख़्वाब जो देखे न थे उनकी सज़ा तो मिल गई,वाखुदा देखा जिन्हे उनका सिला मिलता नहीं.
क्या कहूं मैं... शायद इस सच्चाई को जिस तरह आपने शब्दों मे पिरोया है वो हर एक पंक्ति में साफ नज़र आता हैं बस इतना ही..
अच्छा है निखिल भाई!
निखिल जी.. बहुत बढ़िया कविता लगी.. बस शब्दों को कम करके भाव निखार सकते थे शायद आप..
बहुत ही शानदार ... मज़ा आ गया पढ़कर
फ़िर तुम दस बातें और कहो,
और तुम्हारी आंखों में मैं देखता जाऊं,
बिना सुने कुछ.....
किसी खिलौने वाले से गुब्बारा लेकर,
जैसे ही माँ अपने बच्चे को पुचकारे,
हाथ से छूटे गुब्बारा और बीच सड़क पर,
ममता की मारी कुछ लाशें औंधी पड़ी हों,
बहुत सुंदर...कविता का हर एक पहलु खुबसूरत है....
जिंदगी को बड़े सहज ढंग से उकेर दिया अपने....वाकई डर लगता है...
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)