प्रतियोगिता के १२वें स्थान पर जनवरी २००८ के यूनिकवि केशव कुमार कर्ण की कविता है।
कविता- तुम्हीं बताओ...
इस झूठे चक-मक में सच का हर्ष कहाँ से लाऊं ?
तुम्हीं बताओ, बचपन के वो वर्ष कहाँ से लाऊं??
जिन आँखों के मधुर स्वप्न पर,
मैंने किया सहज विश्वास !
आज उन्हीं आँखों से कैसा,
बरस रहा निर्मम उपहास !!
इस मिथ्या में सपनों का उत्कर्ष कहाँ से लाऊं?
तुम्हीं बताओ, बचपन के वो वर्ष कहाँ से लाऊं??
मेरा मूक निवेदन, हाय !
अंश मात्र भी समझ न पाये !
जब-जब अधर खुले मेरे, तुम
केवल कल्पित कथा बताये !
संप्रेषण के संकट में विमर्श कहाँ से लाऊं?
तुम्हीं बताओ, बचपन के वो वर्ष कहाँ से लाऊं??
समय और सरिता की धारा,
नित आगे बढ़ती जाती !
आज सफलता चरण चूमती,
गीत मेरे है गाती!
किंतु सफलता में, वैसा संघर्ष कहाँ से लाऊं?
तुम्हीं बताओ, बचपन के वो वर्ष कहाँ से लाऊं??
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७॰२५, ६, ७॰७५, ८, ४, ७
औसत अंक- ६॰६६७
स्थान- तीसरा
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ३, ३॰७, ६॰६६७ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ४॰४५५
स्थान-बारहवाँ
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
sir jee apne kahane layak chhoda hee nahi, pachapan ke hokar bachpan me gote lagane lage. narayan narayan
तुम्हीं बताओ, बचपन के वो वर्ष कहाँ से लाऊं??
यह भाव तो किसी को भी अपने बचपन की खट्टी-मीठी यादो में खो जाने को मजबूर कर देगा | बहुत सुंदर ....बधाई .....सीमा सचदेव
जिन आँखों के मधुर स्वप्न पर,
मैंने किया सहज विश्वास !
आज उन्हीं आँखों से कैसा,
बरस रहा निर्मम उपहास !!
इस मिथ्या में सपनों का उत्कर्ष कहाँ से लाऊं?
तुम्हीं बताओ, बचपन के वो वर्ष कहाँ से लाऊं??
बहुत अच्छा लिखा है
सुमित भारद्वाज
मेरा तो सोचना है की सभी में कहीं न कहीं एक बच्चा छुपा होता है जो हमारे बचपन को हम में जीवित रखता है हम बचपन तो वापस ला नही सकते पर उनको याद कर के खुश तो हो सकते हैं आप की कविता बहुत सुंदर है
सादर
रचना
इस मिथ्या में सपनों का उत्कर्ष कहाँ से लाऊं?
तुम्हीं बताओ, बचपन के वो वर्ष कहाँ से लाऊं??
भावभीनी बचपन की सुगंध
और आज के जीवन की गंध
अति सुंदर
समय और सरिता की धारा,
नित आगे बढ़ती जाती !
आज सफलता चरण चूमती,
गीत मेरे है गाती!
किंतु सफलता में, वैसा संघर्ष कहाँ से लाऊं?
तुम्हीं बताओ, बचपन के वो वर्ष कहाँ से लाऊं??
कविता अच्छी है.
रचना जी ने सही कहा है -- समय बीतता जाता है, बचपन का वह वर्ष तो नही लाया जा सकता है पर उन्हें याद किया जा सकता है. बचपन के उस समय को याद करके बहुत कुछ सीखा भी जा सकता है.
धन्यवाद.
http://popularindai.blogspot.com
समय और सरिता की धारा,
नित आगे बढ़ती जाती !
आज सफलता चरण चूमती,
गीत मेरे है गाती!
किंतु सफलता में, वैसा संघर्ष कहाँ से लाऊं?
तुम्हीं बताओ, बचपन के वो वर्ष कहाँ से लाऊं??
कविता अच्छी है.
रचना जी ने सही कहा है -- समय बीतता जाता है, बचपन का वह वर्ष तो नही लाया जा सकता है पर उन्हें याद किया जा सकता है. बचपन के उस समय को याद करके बहुत कुछ सीखा भी जा सकता है.
धन्यवाद.
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keshav ji,achha likha hai.badhai
ALOK SINGH "SAHIL"
इस झूठे चक-मक में सच का हर्ष कहाँ से लाऊं ?
तुम्हीं बताओ, बचपन के वो वर्ष कहाँ से लाऊं??
क्या बात है केशव जी..
बधाई कुबूलें... उम्मीद है आप दोबारा यूनिकवि बनेंगे...
समय और सरिता की धारा,
नित आगे बढ़ती जाती !
आज सफलता चरण चूमती,
गीत मेरे है गाती!
किंतु सफलता में, वैसा संघर्ष कहाँ से लाऊं?
तुम्हीं बताओ, बचपन के वो वर्ष कहाँ से लाऊं??
keshav ji, ye panktiyan mujhe bahut acchi lagi. Aapki poori kavita me aapne bachpan ki yaadon ko sajeev kar diya hai.
Bahut accha likha hai aapne.
Regards,
Ashish
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