भारत का पहला शिक्षक
मित्रो,
भारत नाम के
देश में शिक्षक
नहीं गुरू होते थे
अपना यह देश
परम्परओं का देश है
और परम्परा रिवाज नहीं होती
धारा होती है
जैसे समय की धारा
जो निरन्तर अविकल बहती है
यहां सदा-सदा से
ज्ञान बांटते रहे थे ,गुरु
और ज्ञान प्राप्त करते रहे थे शिष्य
शिष्य ! विद्यार्थी नहीं शिष्य
क्या फ़र्क होता है
शिष्य और विद्यार्थी मे?
जी वही
जो होता है शिक्षक और गुरु में
विद्यार्थी माने हुआ
जिसे विद्या की चाह हो,ज्ञान की नहीं
और अब तो विद्या विद्यार्थी दोनो के अर्थ बदल रहे हैं
अब तो विज्ञान माने विशेष ज्ञान का जमाना है
ज्ञान तो गौण हुआ,
विज्ञान ही सब कुछ है अब
उसी तरह विद्यार्थी के अर्थ भी बदल गये हैं अब
विद्या+ अर्थ
अर्थ माने धन
धन+विद्या
का जोड़
क्या भला ज्ञान कहला सकता है ?
जब हो जाता है
धन का प्रवेश
तो ज्ञान हो जाता है अशेष
केवल
भारत भू पर ही थे गुरु
देवगुरू बृहस्पति
दानव गुरू-शुक्राचार्य
वही शुक्राचार्य जिन्होने
वामन बने छ्ली-विष्णु से
राजा बली ,अपने शिष्य को
बचाने के प्रयत्न में गवां दी थी अपनी आँख
ऋषि वशिष्ठ हो या ऋषि विश्वामित्र या ऋषि संदीपन
इन गुरुओं के सम्मुख दंडवत होते थे
हमारे अवतार पुरूष
राम और कृष्ण
गुरुकुलों मे समान होते थे
राजा और रंक
कृष्ण-सुदामा
पर अचानक वक्त ने करवट ली
और अंधे धृष्तराष्टर के मोह नें
मोड़ दी ज्ञान की धारा
गुरू गये
आगये शिक्षक
जी हां-गुरू नहीं शिक्षक
ऋषि नहीं आचार्य
जी ठीक समझे आप
आचार्य द्रोण या द्रोणाचार्य
द्रोण पहले शिक्षक थे भारत भू के
वे शिक्ष्क थे इसीलिये ऋषि नही आचार्य कहलाये
अगर द्रोण होते गुरू तो कहलाते ऋषि
न कि आचार्य
और इतिहास साक्षी है कि
एकलव्य का अंगूठा किसी गुरू ने नहीं
एक शिक्षक ने आचार्य ने कटवाया था
गुरू दिवस मनाये
शिक्षक दिवस नहीं
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21 कविताप्रेमियों का कहना है :
वो सब तो ठीक है..
पर ये बताओ
यह हुआ गद्य या पद्य
पहले यह तो सुझाओ..
:)
धन्य हैं आप!
जिस काल में लोग गाली देने पर क्षमादान दिए हुए व्यक्ति का गला काट लेते थे. अपनी बहन की निरपराध संतानों को जन्म देते ही मार देते थे.
राजकुमार अपने पिता को क़ैद कर के गद्दी पर बैठ जाते थे.
अपने चरित्र के लिए प्रसिद्द राजवंशी तीन राजकुमारियों को बलात हर लाते थे.
पाँच गाँव के लें-देन पर महाभारत करा कर सारे देश के वीरों को काट-मार देते थे.
महावीर लोग ध्यानमग्न बैठे निहत्थे गुरु की गर्दन उड़ा देते थे.
ऐसे काल के सारे खलनायकों में आपको एक वही भोला-भाला सच्चा गुरु मिला जिसने अपनी प्रतिज्ञा रखने के लिए एक अनाधिकार (गुरु के अनजाने में) ज्ञान प्राप्त किए हुए शिष्य का अंगूठा माँगा?
शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं!
गुरुकुलों मे समान होते थे
राजा और रंक
कृष्ण-सुदामा
पर अचानक वक्त ने करवट ली
और अंधे धृष्तराष्ट्र के मोह नें
मोड़ दी ज्ञान की धारा
गुरू गये
आगये शिक्षक
बहुत अच्छे! श्याम जी
पहले लगा कविता में यूटोपिया हद से आगे बढ़ रहा
है पर अन्त में जो बात आपको कहनी थी उसके लिये सब उपयुक्त था
कविता को उतावले होकर न पढ़ें
हरिहर जी आभार आपने कविता को न केवल पढ़ा अपितु इसके भीतर छुपे अर्थ को समझा मैंने आचार्य या शिक्षक और गुरु के अन्तर को दिखाने का प्रयास किया है ..कामोद आपका भी धन्यवाद आपने सही सवाल उठाया की यह है क्या ?इस बात पर बहस जरूरी है की कविता किसे कहें ||नियोजक ध्यान दे |श्यामसखा
शिक्षक और गुरू का फ़र्क तो उचित है पर आचार्य को भी उसी श्रेणी में खींच लेना न सिर्फ़ दुस्साहस है बल्कि कई गंभीर प्रश्न भी खड़े करता है। फ़िर तो यह परिभाषा शंकराचार्य तक को जिन्हे भारत अवतारों में गिनता है शिक्षक साबित करता है।
पुनश्च, ज्ञान और विद्या का फ़र्क भी विवादास्पद है क्योंकि यह उन ऋषियों को कटघरे में खड़ा करता है जिनकी उदघोषणा है-"विद्ययाऽमृतमश्नुते" , "सा विद्या या विमुक्तये"
श्याम सखा 'श्याम' जी,
बहुत ही सही कहा आपने।
आपने गुरू और शिक्षक के अंतर को बहुत ही सुन्दर शब्दो मे बताया
कविता अच्छी नही, बेहतरीन(best) है
मै भी अब अपनी orkut profile पर गुरू दिवस लिखुँगा पहले मै शिक्षक दिवस लिखता था।
सुमित भारद्वाज
रविकान्त जी
कवि को शब्द के अर्थ के साथ उसके फ्लेवर से काम
लेना होता है अत: अर्थ के विश्लेषण के मामले में कवि को गद्य-लेखक से ज्यादा छूट मिलती है ।
इसी कारण से संदर्भ के मामले को भी स्मार्ट इंडियन अपने प्रश्न को अनदेखा कर सकते है
एकलव्य का अंगूठा किसी गुरू ने नहीं
एक शिक्षक ने आचार्य ने कटवाया था
गुरू दिवस मनाये
शिक्षक दिवस नहीं
शिक्षक दिवस डॉ राधा कृष्णन का जन्म दिवस ,बेकार की बहस में पड़ने से तो अच्छा है हम उन होनहार भारत रत्नों को जिन्होंने हमारे देश को अपना सर्वस्व दिया हम न भूले डॉ अब्दुल कलाम को ,न ही राधा कृष्णन के अमूल्य योगदान को जिससे आप सब भी परिचित हैं |
पुरानी बातो पर ख़ाक डालिए श्याम जी देश के भविष्य को सवारने के लिए कुछ कदम उठाये जाए तो बेहतर होगा शिक्षक दिवस की आप को शुभकामनाये ,हम तो आप को अपने लिए शिक्षक ही मानेंगे आप चाहे जो कहे
समय बदला युग बदला और गुरु के स्थान पर आचार्य व शिक्षक हो गए. पर अब तो समय व युग इतना बदल गया है कि अब शिक्षक के स्थान पर मास्टर आ गए हैं. जी हाँ, मास्टर यानि -- मास मतलब माह और टर मतलब टारना अर्थात यानि वह जो सिर्फ माह को टारता है. .............
आज के वर्तमान स्थिति के अनुसार किसी ने कॉलेज (महाविद्यालय) में पढाने वाले को इस प्रकार परिभाषित किया है :
जो पढ़े व पढावे वह है लेक्चरर
जो न पढ़े पर पढावे वह है रीडर
जो न पढ़े न पढावे वह है प्रोफेसर
जो न पढ़े न पढावे न पढने दे वह है प्रिंसिपल
-----------
गुरु को याद करने के लिए तो गुरु पूर्णिमा है ही पर इन सब आधुनिक गुरुओं को याद करने के लिए भी कोई दिन तलाशना होगा.
जो भी ज्ञान दे, सही मार्गदर्शन करें वह गुरु है या उसे शिक्षक कहें |
गुरु तो वन्दनीय होगा ही |
द्रोणाचार्य और एकलव्य की घटना भी यही कहती है कि - हमेशा गुरु सम्मान करें | साथ ही साथ गुरु भी गलती करने से बचे |
सभी को शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं |
-- अवनीश तिवारी
हम सब शिक्षक या गुरू का काला-पक्ष हीं क्यों देखते हैं, उसके पीछे का कारण क्यों नहीं देखते?
कविता अच्छी है, कुछ सोचने को प्रेरित करती है, लेकिन मैं सबसे यह आग्रह करता हुँ कि किसी शिक्षक या गुरू के मनोभावों को भी पढने की कोशिश करें। फिर आप भी समझ जाएँगे कि दोष एकतरफा नहीं होता।
मेरे चाचा जी शिक्षक हैं और मैं जानता हूँ कि किसी गुरू को शिक्षक या फिर प्रोफेशनल शिक्षक किन परिस्थितियों में बनना पड़ता है।
तन्हा जी ,कविता भावः पर आधारित होती है व्यक्तिगत न लें |मेरे पिता ,दादा ,परदादा शिक्षक होते हुए भी गुरू थे ,क्योंकि उनके शिष्य उन्हें गुरू मानते थे|मैं हर रोज सुबह अपने मेडिसन के अध्यापक डाक्टर एस .पी .गुप्ता व् चेस्ट के अध्यापक स्वर्गीय डाक्टर परमार साहिब को स्मरण व् प्रणाम करता हूँ क्योंकि गुप्ता जी ने मुझे ज्ञान दिया व् परमार साहिब ने मरीजो के प्रति करुना का पाठ सिखाया |श्यामसखा
शिक्षक बोलो या कहो, गुरवर या आचार्य ।
अच्छी शिक्षा, आचरण, देना इनका कार्य ॥
अपने अपने कर्म को, समझे जो सुभाँति ।
ता सो ही तय होत है, पुरुष पुरुष की जाति ॥
विद्या दुमँही भाँति है, दोनो रस्ते जात ।
उचित रास्ता कौन सा शिक्षक ही समुझात ॥
बहस रास्ता विषम एक होता वक्त खराब ।
काहे 'राघव' बहस में भये सुबुद्धि जन आप॥
जहाँ तक मैं समझता हूँ ,लेखक ने भारत के शिक्षा जगत में आए दृष्टिगत बदलाव के ऐतिहासिक क्षण की और इशारा किया है,जो सटीक है |भीष्म ने पांडवों ,कोरवों को धृत राष्ट्र [,जो ख़ुद भी अंधेपन के कारण गुरुकुल न गया था]की जिद के कारण गुरुकुल न भेज द्रोण व् कृपाचार्य को हस्तिनापुर में शिक्षक रखा था |इस पल से ही गुरुकुलों की स्वायतता महत्त्व कम होना आरम्भ हो गया था ,जैसे आजकल विद्यालयों व् ट्युटोरियल क्लास्ज का हाल है |लेखक को बधाई |विनय n.y
श्याम जी आपको अब तक गजलो में जाना था लेकिन आप तो एक अच्छे हिंदी कवी भी हैं. आपने गुरु और शिक्षक तथा विद्यार्थी और शिष्य में अंतर अच्छी तरह से समझाया.
गुरू दिवस मनाये
शिक्षक दिवस नहीं
गुरु, शिक्षक और आचार्य इन तीनों में सही भेद जाने बिना और तीनों की सम्मानित परिभाषाएं जाने बिना ही महाभारत का कबाडा करने पर बधाई. गुरु या उस्ताद भी लुटेरे भी अपने बॉस को कहते हैं. आचार्य शिक्षक से एक बिलकुल भिन्न शब्द है, और शिक्षक को सिर्फ आधुनिक धन लोलुप व्यक्ति की तरह क्यों आप ले रहे हैं मेरी समझ से बाहर है. अच्छा होगा शिक्षक को कुशिक्षक न समझें, शिक्षक की परिभाषा में धन सिर्फ तभी जुदा जब अर्थयुग आया. लिखने की कोशिश खूब की है लेकिन बिना अध्ययन के. मैं देख रहा हूँ कई टिप्पणीकार भी विद्वानों की तरह महाभारत को अपनी समझ के अनुसार व्यक्त कर रहे हैं. शाबाश.
aapko main ek bahut achchhe kavi ke sath sath vidwan samajh kar bhi samman deta tha, magar afsos.
गुरु, शिक्षक और आचार्य इन तीनों में सही भेद जाने बिना और तीनों की सम्मानित परिभाषाएं जाने बिना ही महाभारत का कबाडा करने पर बधाई. गुरु या उस्ताद भी लुटेरे भी अपने बॉस को कहते हैं. आचार्य शिक्षक से एक बिलकुल भिन्न शब्द है, और शिक्षक को सिर्फ आधुनिक धन लोलुप व्यक्ति की तरह क्यों आप ले रहे हैं मेरी समझ से बाहर है. अच्छा होगा शिक्षक को कुशिक्षक न समझें, शिक्षक की परिभाषा में धन सिर्फ तभी जुदा जब अर्थयुग आया. लिखने की कोशिश खूब की है लेकिन बिना अध्ययन के. मैं देख रहा हूँ कई टिप्पणीकार भी विद्वानों की तरह महाभारत को अपनी समझ के अनुसार व्यक्त कर रहे हैं. शाबाश.
aapko main ek bahut achchhe kavi ke sath sath vidwan samajh kar bhi samman deta tha, magar afsos.
गुरु और शिक्षक पर्याय हैं .में तो शिक्षिका ,अध्यापिका हूं. आप की कविता पसंद आई .आज के छात्र एकलव्य की तरह अंगूठा कटवाते नहीं बल्कि अंगूठा दिखाते हैं .बधाई
सुझाव तो अच्छा हैं
किन्तु मैं तो यह सोचकर परेशां हूँ
कि . . .
'गुरु दिवस' मनाने के लिए
'गुरु' कहाँ से लायेंगे.
very impressive poem
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