रात सड़क पर जब सन्नाटा पसरा होता है,
चाँद फ़लक पर नींद के मारे गुम-सा होता है,
सामने वाले घर की बत्ती बुझने लगती है,
यादों की तितली खिड़की से दाखिल होती है.....
रात को जाने कितने घंटे,
यादों की तितली मेरे संग बैठक करती है,
हँसी-ठिठोली,चाय-पकौड़ी...
सब कुछ यादों की तितली संग....
यूँ कि जैसे एक रिहर्सल,
तुम आ जातीं तो क्या करता....
खिड़की पर जब तुम हौले से दस्तक देतीं,
मैं चुपके-से बाहर आता...
हम तुम हँसते ज़ोर-ज़ोर से बीच सड़क पर....
सड़क की चुप्प्पी हमसे चिढ़ती,
चाँद नींद में करवट लेता....
हम तुम हँसते ज़ोर-ज़ोर से बीच सड़क पर....
हँसी तुम्हारी,
मिश्री की मानिंद हवा में घुलती जाती,
एक आइसक्रीम वाला दूर से आता दिखता,
तुम ज़िद करतीं बच्चों जैसे....
काश! आइसक्रीम के बदले तुम चाँद भी कहतीं,
तो मैं लाता....
(नींद में डूबा चाँद चुराना क्या मुश्किल है....)
तुम जैसे ही होठों से "सॉफ्टी" को चखतीं...
आसमान से कुछ बूँदें भी गिरने लगतीं,
मैं मन ही मन सोचता रहता....
बारिश-वारिश सब धोखा है....
असल में चाँद जो ऊंघ रहा था,
अपनी किस्मत पर पछताकर जाग गया है...
उठते-उठते चाँद के मुंह पर,
लार जो थोडी-सी चिपकी थी,
टपक पड़ी है...
बारिश-वारिश सब धोखा है...
काश! कि ये सब मुमकिन होता...
रात भी है और सड़क भी है और सन्नाटा भी,
काश! चाँद के ऊँघने तक,
तुम भी आ जातीं.....
....................
निखिल आनंद गिरि
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19 कविताप्रेमियों का कहना है :
कल्पनाओ को शब्दों में क्या पिरोया है.
अति सुंदर.
WAAH BADE BHAI,DIL KHUSH KAR DIYA.
ALOK SINGH "SAHIL"
रात को जाने कितने घंटे,
यादों की तितली मेरे संग बैठक करती है,
हँसी-ठिठोली,चाय-पकौड़ी...
सब कुछ यादों की तितली संग....
यूँ कि जैसे एक रिहर्सल,
तुम आ जातीं तो क्या करता....
वाह! बहुत सुंदर दिल के भीतर तक उतरती कविता.
बहुत खूब ,बेहतरीन
नींद में डूबा चाँद चुराना क्या मुश्किल है....
बारिश-वारिश सब धोखा है....
असल में चाँद जो ऊंघ रहा था,
अपनी किस्मत पर पछताकर जाग गया है...
उठते-उठते चाँद के मुंह पर,
लार जो थोडी-सी चिपकी थी,
टपक पड़ी है...
बारिश-वारिश सब धोखा है...
ये पंक्तियाँ पसंद आईं।
बधाई स्वीकारें।
बढ़िया
नींद में डूबा चाँद यह फ़िक्र ही गालिबाना है तमन्नाओं को खूबसूरती से पिरोया गया है काव्य के मैदान में इन खूबसूरत पंक्तियों के लिए आजीबन इसी फ़िक्र के लिए प्रार्थना करता हूँ
बज़मी नकवी
बहुत खूब!
शानदार कविता है ..कैसे तुम्हारी कल्पना के घोडे इतनी दूर तक चले जाते है कैसे तुम सब कुछ शब्दो में बांध पाते है ..ऐसा लगाता है समंदर को शब्दो में बांधा गया हो ....
उत्तम.. अति उत्तम... जवाब नही तुम्हारी कल्पनाओं का...
नींद में डूबा चाँद चुराना क्या मुश्किल है.... सही कहा भाई..
कल्पना की गहराई
चाहत की अमराई
आप की लिखाई
क्या कहना भाई
सादर
रचना
ek kalpana aur ek sapna hota humesha apna
काश! कि ये सब मुमकिन होता...
रात भी है और सड़क भी है और सन्नाटा भी,
काश! चाँद के ऊँघने तक,
तुम भी आ जातीं.....
खूबसूरत... बहुत अच्छा निखिल भाई...
एक आइसक्रीम वाला दूर से आता दिखता,
तुम ज़िद करतीं बच्चों जैसे....
काश! आइसक्रीम के बदले तुम चाँद भी कहतीं,
तो मैं लाता....
(नींद में डूबा चाँद चुराना क्या मुश्किल है....)
बहुत अच्छा लिखा......
ये पंक्तिया बहुत पसंद आयी
सुमित भारद्वाज
शुक्रिया anonymous साहब......आप अपना परिचय भी तो दें....
सुन्दर् :)
वाह भाई खूब , नींद में डूबा चाँद :) मज़ा आ गया कई बार पढ़ चुका हूँ, अभी मन नही भरा ...
हमें तो बहुत मुश्किल लगता है चाँद चुराना, चाहे नींद में ही क्यों न हो ;)
nikhil bhai sone ke jaisa hai ye to.
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