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Thursday, September 25, 2008

मिनी के होस्टल जाने पर


मैं
रो नहीं रहा
यह तो कुछ अन्यायी
पलों की किरचें है
जो पलकों के किनारे
चुभ गई है
बस उन्हे निकालने को
आँखों से पानी
बह चला हैं
तुम्हारा भाई मुक्त उन्मुक्त
पर तुम्हे खिड़की से झांकना भी मना
तुम्हारे कपडों का
जाँच और बहस के बाद
तय किया जाना
मैं बाजार से आता
तुम सहमी पढ़ती होती
भाई कम्प्यूटर पर
मोबाईल
दोस्त
अंतरजाल
तुम्हें वार्जित ,
वर्जित तुम्हारा ऊँचा बोलना
तेज आवाज मे गाना
आरोपों का उत्तर देना
ओह !
फ़िर सब कुछ धुंधला हो गया
मैं रो थोड़े ही रहा हूँ
मुझे रोने की
फुर्सत भी नही है
रोना मेरे लिए विलासिता है
अभी तो हर पल
मेरे अहसास को
तुम्हारे साथ रखना है
जो तुम्हे बेटी होने की
याद दिलाता रहे
मैं रो नही रहा
यह तो कुछ
अन्यायी पलों की किरचे है
जो पलकों के किनारे खरोंच जाती है
रंगहीन लहु नजरों के साहिल से
छलक जाता है
मैं रो नही रहा ........
रोऊंगा तो तब
जब तुम
ससुराल चली जाओगी
क्योंकिं
तब मैं तुम्हारी चौकसी
किसी और का सौंप
बेरोजगार हो जाऊंगा |
.
विनय के जोशी

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20 कविताप्रेमियों का कहना है :

neelam का कहना है कि -

यह एक बड़ा विषय है ,और मुद्दा है कि हमारा रोजगार क्योँ अपने ही अंश कि चौकसी करना है ,एक सही मार्गदर्शन क्योँ पर्याप्त नही है ?कविता अत्यन्त मर्मस्परसी है ,आप माँ का भी दिल रखतें हैं , यह जानकर और भी अच्छा लगा

Nikhil का कहना है कि -

"जब तुम
ससुराल चली जाओगी
क्योंकिं
तब मैं तुम्हारी चौकसी
किसी और का सौंप
बेरोजगार हो जाऊंगा |"

हर किसी का दर्द....आखिरी पंक्ति तो बहुत ही गहरी है....."मैं बेरोजगार हो जाऊँगा..." वो भी इस तरह से...वाह, क्या खूब कही....

mamta का कहना है कि -

अच्छी और दिल को छूती हुई कविता है।

डॉ .अनुराग का कहना है कि -

शीर्षक अपनी ओर खीचता है.....कविता टुकडो टुकडो में अच्छी लगी.....

विश्व दीपक का कहना है कि -

यह रचना निस्संदेह हीं सब के हृदय को छुएगी , क्योंकि ये बातें हम सब की जिंदगी से जुड़ी है।

बधाई स्वीकारें।

Unknown का कहना है कि -

दिल को छू गयी आपकी कविता
सुमित भारद्वाज

Anonymous का कहना है कि -

कविता बहुत अच्छी लगी
मेरे बडे भैया ने मुझे ये कविता पढाई
निधि भारद्वाज

Anonymous का कहना है कि -

विनयजी
रुला दिया आपने, मेरी बेटी भी होस्टल में हे
मेरी पत्नी मेरे सीने से लग कर फफक पडी
बेटी तो बाबुल की बगिया का वह पौधा है जिसकी सिंचाई आंसुओं से होती है
धर्मेश्वर 'धवल'

makrand का कहना है कि -

sunder rachana
likhatey raheiye

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

बहुत बढिया विनय जी,

हृदयस्पर्शी रचना..

तुम्हारा भाई मुक्त उन्मुक्त
पर तुम्हे खिड़की से झांकना भी मना
तुम्हारे कपडों का
जाँच और बहस के बाद
तय किया जाना
मैं बाजार से आता
तुम सहमी पढ़ती होती
भाई कम्प्यूटर पर
मोबाईल
दोस्त
अंतरजाल
तुम्हें वार्जित ,
वर्जित तुम्हारा ऊँचा बोलना
तेज आवाज मे गाना
आरोपों का उत्तर देना
ओह !
फ़िर सब कुछ धुंधला हो गया
मैं रो थोड़े ही रहा हूँ

रोऊंगा तो तब
जब तुम
ससुराल चली जाओगी
क्योंकिं
तब मैं तुम्हारी चौकसी
किसी और का सौंप
बेरोजगार हो जाऊंगा |

सुन्दर अभिव्यक्ति...

शोभा का कहना है कि -

मैं रो नही रहा
यह तो कुछ
अन्यायी पलों की किरचे है
जो पलकों के किनारे खरोंच जाती है
रंगहीन लहु नजरों के साहिल से
छलक जाता है
मैं रो नही रहा ........
रोऊंगा तो तब
जब तुम
ससुराल चली जाओगी
क्योंकिं
तब मैं तुम्हारी चौकसी
किसी और का सौंप
बेरोजगार हो जाऊंगा |
वाह बेहद मर्म स्पर्शी.
.

Vivek "The Wisdom" का कहना है कि -

अति सुंदर रचना ,हृदय को छूने वाली |दर्द को शब्दों में आपने बखूबी पिरोया है |

Anonymous का कहना है कि -

मैं बाजार से आता
तुम सहमी पढ़ती होती
भाई कम्प्यूटर पर
मोबाईल
दोस्त
अंतरजाल
तुम्हें वार्जित ,
वर्जित तुम्हारा ऊँचा बोलना
तेज आवाज मे गाना
आरोपों का उत्तर देना
ओह !
फ़िर सब कुछ धुंधला हो गया
मैं रो थोड़े ही रहा हूँ

रोऊंगा तो तब
जब तुम
ससुराल चली जाओगी
क्योंकिं
तब मैं तुम्हारी चौकसी
किसी और का सौंप
बेरोजगार हो जाऊंगा |
क्या बात है कितना दर्द है पर सच ही तो है
सादर
रचना

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

क्या बात है..
बेरोजगार हो जाऊँगा... बहुत खूब...

दीपाली का कहना है कि -

अच्छा लिखा है.

Anonymous का कहना है कि -

पहली बार पढ़ने पर कविता अच्छी लगी दूसरे बार कुछ कमी लगी , देखें anonimous

Girish Kumar Billore का कहना है कि -

मैं बाजार से आता
तुम सहमी पढ़ती होती
भाई कम्प्यूटर पर
मोबाईल
दोस्त
अंतरजाल
तुम्हें वार्जित ,
nice sachchee bat

Anonymous का कहना है कि -

maa badaulat joshi ji,
कमाल कर दिया आपने.
गजब लिखा है.
अद्भुत!!
अलोक सिंह "साहिल"

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

बहुत ही बढ़िया कविता है विनय जी।

Vinaykant Joshi का कहना है कि -

रचना को स्नेह देने पर सभी का आभारी हूँ |
सादर,
विनय

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