ख़बर थी अखबार में
कि आदमी बूढा नही होगा
सदा जवान ही रहेगा
विज्ञान खोज नही पाया है
अभी इलाज मौत का....
इसलिए
मरना तो होगा
लेकिन
जवानी में ही मरेगा
सच तो यह है कि
आदमी अभी भी
जवानी में ही मरता है
बाकी समय तो
अपना शव ख़ुद ढोता है
छटपटाती है आत्मा
मृत कोठारी मैं
नित्य कोशिश करती है
सेंघ लगाने की
फ़िर एक दिन
सफल हो जाती है
और सब कहते है
कल तक तो भला चंगा था
.
विनय के जोशी
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
छटपटाती है आत्मा
मृत कोठारी मैं
नित्य कोशिश करती है
सेंघ लगाने की
फ़िर एक दिन
सफल हो जाती है
और सब कहते है
कल तक तो भला चंगा था
वृद्धावस्था की व्यथा को बहुत सुंदर शब्दों में व्यक्त किया है आपने.
वाह विनय जी! बहुत अच्छे!
आदमी अभी भी
जवानी में ही मरता है
बाकी समय तो
अपना शव ख़ुद ढोता है
छटपटाती है आत्मा
मृत कोठारी मैं
नित्य कोशिश करती है
सेंघ लगाने की
फ़िर एक दिन
सफल हो जाती है
और सब कहते है
कल तक तो भला चंगा था
दिल को छू लेने वाली कविता........
सुमित भारद्वाज
क्या खूब लिखा है
यथार्थ को बखूबी पेश किया है
आपकी कविताये सदाव ही अच्छी होती है
कविता की पंक्तिया मार्मिक और दिल को छूती है.
मुझे बहुत नयापन तो नहीं मिला, फिर भी यथार्थ की कुछ बूँदें मिल गईं और कविता पढ़ना सार्थक रहा।
अच्छी कविता
बधाई
सादर
राचना
और सब कहते है
कल तक तो भला चंगा था
अंत अच्छा लगा....
अंत अच्छा है पर नयेपन का अभाव
विनय जी,
आपने मुझे हिन्दयुग्म पर अपनी रचनाएँ पढ़ने की लिए कहा आपकी कविता प्रेत और जवान मौत तो अच्छी लगी | पर आपकी लिखी लघुकथा इमानदार पढ़ने के बाद पन्द्रह मिनट के लिए मैं जड़ हो गया | बहुत बढ़िया | हिन्दयुग्म बहुत अच्छा है अब मैं रोज पढूंगा- हर्षवर्धन
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