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Monday, September 08, 2008

...कुछ ज़िंदगी सी ...


ख़ुद से उकताया हूं
तो बैठा हूं कुछ लिखने
मेरी कलम को पता है
मेरी आदत क्या है

फितूर उतरेंगे जो क़ाग़ज पे
तो असर क्या होगा?
जब तलक सीने में थे
खाक बनाया मुझको

और कुछ ग़म-ओ-ख़्वाब की
बातें कर लें....
कोई पूछेगा जो
कहने को कुछ तो होगा

बारहा रोएंगी घुट-घुट कर
ये रातें मेरे बग़ैर
मैं जो न होऊंगा
तो आखिर इन्हें जिएगा कौन

बन गई है लहर-सी हवा में कोई
रहम कर फिज़ां पर...
न और सिसकियां उठा
बहुत कुछ झेलना बाकी है दिल-ए-नादां तुझको

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6 कविताप्रेमियों का कहना है :

Straight Bend का कहना है कि -

और कुछ ग़म-ओ-ख़््वाब की
बातें कर लें....
कोई पूछेगा जो
कहने को कुछ तो होगा

Khoobsoorat lines. Don't think it qualifies to be called a She'r.

Smart Indian का कहना है कि -

बारहां रोएंगी घुट-घुट कर
ये रातें मेरे बग़ैर
मैं जो न होऊंगा
तो आखिर इन्हें जिएगा कौन

बहुत सुंदर उदगार! बधाई!

Anonymous का कहना है कि -

बारहां नहीं बारहा aur SH`Er vakaee nahin hai

Anonymous का कहना है कि -

और कुछ ग़म-ओ-ख़्वाब की
बातें कर लें....
कोई पूछेगा जो
कहने को कुछ तो होगा

अति सुंदर
सादर
रचना

neelam का कहना है कि -

हम तो आपको विद्रोही कवि समझते थे ,
जो भी लिखा है अच्छा लिखा है

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

इसे शे'र नहीं कहते, यद्यपि विचार तो सवासेर हैं, लेकिन फिर भी यह ध्यान रखा करें कि आप लिख क्या रहे हैं, क्योंकि कई पाठक आपका अनुसरण करके सीखते हैं।

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