ख़ुद से उकताया हूं
तो बैठा हूं कुछ लिखने
मेरी कलम को पता है
मेरी आदत क्या है
फितूर उतरेंगे जो क़ाग़ज पे
तो असर क्या होगा?
जब तलक सीने में थे
खाक बनाया मुझको
और कुछ ग़म-ओ-ख़्वाब की
बातें कर लें....
कोई पूछेगा जो
कहने को कुछ तो होगा
बारहा रोएंगी घुट-घुट कर
ये रातें मेरे बग़ैर
मैं जो न होऊंगा
तो आखिर इन्हें जिएगा कौन
बन गई है लहर-सी हवा में कोई
रहम कर फिज़ां पर...
न और सिसकियां उठा
बहुत कुछ झेलना बाकी है दिल-ए-नादां तुझको
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6 कविताप्रेमियों का कहना है :
और कुछ ग़म-ओ-ख़््वाब की
बातें कर लें....
कोई पूछेगा जो
कहने को कुछ तो होगा
Khoobsoorat lines. Don't think it qualifies to be called a She'r.
बारहां रोएंगी घुट-घुट कर
ये रातें मेरे बग़ैर
मैं जो न होऊंगा
तो आखिर इन्हें जिएगा कौन
बहुत सुंदर उदगार! बधाई!
बारहां नहीं बारहा aur SH`Er vakaee nahin hai
और कुछ ग़म-ओ-ख़्वाब की
बातें कर लें....
कोई पूछेगा जो
कहने को कुछ तो होगा
अति सुंदर
सादर
रचना
हम तो आपको विद्रोही कवि समझते थे ,
जो भी लिखा है अच्छा लिखा है
इसे शे'र नहीं कहते, यद्यपि विचार तो सवासेर हैं, लेकिन फिर भी यह ध्यान रखा करें कि आप लिख क्या रहे हैं, क्योंकि कई पाठक आपका अनुसरण करके सीखते हैं।
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