एक दुकान ऐसा भी है बाज़ार में
जहां....एक शख्स बेचता है
अपना अनूठापन
हर रोज वह कुछ
बोलता-समझाता-बतलाता
इस अंधयुग को
रौशन करने के दावे के साथ !
इस युग में भी
आदर्श-नैतिकता की बातें
हर वक़्त करता है
अपनी भावनाओं से रोज
नहलाता है खरीददारों को
और चाहता है....
बाकी ख़ुद डुबकी लगाएं
उसके ज्ञान के समंदर में !
बांधना चाहता है...हर बार
अपने-आपसे भुलावा देकर....
........फुसलाकर
वह सफल भी है बहुत
सब उसे सब्र से सुनते हैं !
एक चौराहे पर...हर रोज
जहां हर वक़्त...वह ख़ुद
अपनी हर चीजें बेच रहा होता है
अपनी आवाज़...अधकचरे ज्ञान...थोथी नैतिकता....
.......और भरपूर भाव
हर बार कुछ खरीददार
ठगे जाते हैं.....
हर दिन उसका कारोबार
बढ़ता जाता है.........
(5 सितंबर पर विशेष)
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
15 कविताप्रेमियों का कहना है :
इस युग में भी
आदर्श-नैतिकता की बातें
हर वक़्त करता है
अपनी भावनाओं से रोज
नहलाता है खरीददारों को
और चाहता है....
बाकी ख़ुद डुबकी लगाएं
उसके ज्ञान के समंदर में !
वाह अभिषेकजी !
यथार्थ है आपकी कविता में
शिक्षक दिवस की पारंपरिक औपचारिकता से हट कर
अभिषेक जी, यह किस किस्म के शिक्षक का वर्णन है?
बड़ी ही कुंठा है ,ये कैसी पुष्पांजलि है ,हमारे देश के अब्दुल कलाम जैसे शिक्षक को जो देश को उन्नति के शिखर पर देखना चाहते हैं ,बड़ा ही अशोभनीय है ,छमा चाहती हूँ मगर सच कहे बिना रह भी नही सकती
बड़ी ही कुंठा है ,ये कैसी पुष्पांजलि है ,हमारे देश के अब्दुल कलाम जैसे शिक्षक को जो देश को उन्नति के शिखर पर देखना चाहते हैं ,बड़ा ही अशोभनीय है ,छमा चाहती हूँ मगर सच कहे बिना रह भी नही सकती
माँ का स्पर्श, पिता की उंगली, बहन का टीका, दोस्त की नसीहत, सूरज का उगाना, मुर्गे की बाँग, पाँव की ठोकर, कौवा, बगुला, पिपीलिका, मधुमक्खी चारो तरफ़ शिक्षक अपनी पूर्णता के साथ उपस्थित है आपने उनको को छोड़ उसके बारे में लिखा जो शिक्षक है ही नही ?
saadar
vinay
अभिषेक जी ,
आपने शिक्षक की जो ब्याख्या की है उस से आप की अभा अभिशप्त होती है
आशा है आप एक सुंदर , अलौकिक और हृदय तरंगित रचना करेंगे शिक्षक दिवस के पवन अवसर पर .
धन्यवाद .
राजेश कुमार पर्वत
अभिषेक जी ,
आपने शिक्षक की जो ब्याख्या की है उस से आप की अभा अभिशप्त होती है
आशा है आप एक सुंदर , अलौकिक और हृदय तरंगित रचना करेंगे शिक्षक दिवस के पवन अवसर पर .
धन्यवाद .
राजेश कुमार पर्वत
अभिषेक जी
जिस कुंठा को आपने कविता के रूप में प्रकट किया है उससे मै भी ग्रसित रह चुका हूँ
मै जिस गुरु को अपना आदर्श मानता था वो ऐसा निकला की जीसके बारे में बताया नही जा सकता मै जब उसके प्रभाव मंडल से बाहर निकला तो दंग रह गया ...............
आज सोंचता हूँ तो लगता है की क्या सोंच कर मैंने उसको अपना आदर्श माना था
आपका वीनस केसरी
अभिषेक जी!
आपकी रचना पढकर मैं तो अजब हीं दुविधा में फँस गया हूँ। आपकी रचना की बड़ाई करूँ तो मेरे सभी गुरूजनों का अपमान होगा और अगर आपकी रचना को नज़र-अंदाज करूँ तो आपकी लेखन-प्रतिभा की तौहीन होगी।
अब आप हीं मेरी दुविधा का समाधान करें।
शिक्षक की महत्ता,
इसी से पता चलती है,
उसने आपको पढ़ना-लिखना सिखाया,
इस ब्लॉग पर अपनी ही-
छवि को कलंकित,
करने लायक आपको बनाया;
कितना अफ़सोस होगा अगर,
आपका कोई शिष्य आपकी,
इन्ही शब्दों में तारीफ करे,
एक शिष्य था एकलव्य,
गुरु मात्र समझा था जिसे,
उस द्रोणाचार्य के एक आदेश पर,
अपना अंगूठा चरणों में चढाया
इस दुनिया में दोस्तों भांत -भांत के लोग
कुछ बांटे बीमारियां ,कुछ काटें हैं रोग ,
श्यामसखा पर लग रहा, यही एक अभियोग
चूंकि मैं शिक्षक हूँ . लगता है की मुझे कमेंट्स नहीं करना चाहिए .
वैसे इतनी बड़ी जिन्दगी में कई शिक्षक आप की जिन्दगी में आए होंगे , आश्चर्य है की आप को कोई भी शिक्षक वैसा न मिला जैसा की मिलना चाहिए !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! आश्चर्य -------- घोर आश्चर्य !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
मैं समझता हूँ की एक छात्र के नाते , शिक्षक के नाते , और समाज के जागरूक व जिम्मेदार नागरिक के नाते , की शिक्षक की ग़लत आचरण की कुछ ही घटनाएँ बड़ा शोर बनती हैं / अधिकांशतः अध्यापक अपना कम ठीक कर रहे हैं / सिस्टम में दिक्कतें केवल अलोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत है , जिसमे एक शिक्षक को क्लर्क,बाबु,ठेकेदार, होटल वाला,और संगंणक बना कर रख दिया गया है /
प्राइमरी का मास्टर
http://primarykamaster.blogspot.com/
अभिषेक जी मुझे आपका यह अंदाज़ बिलकुल पसंद नहीं आया. पहले तो यह मुझे कविता नहीं व्यंग लगा और दूसरी बात जो सबसे ज्यादा आखर रही है वो यह है कि कविता के अंत में लिख गया है कि (५ सितम्बर पर विशेष).... मुझे लगता है कि यह शिक्षक क अपमान हुआ. अगर आपको ऐसा ही कुछ लिखना था तो आपको ५ सितम्बर से काफी पहले या बहुत बाद में पोस्ट करना चाहिए था. हो सकता है कि जो आपने लिखा वो कुछ हद तक सही हो लेकिन सभी ऐसे नहीं होते.
ऐसे शिक्षक नहीं होते हैं . शीर्षक बदल लो .
"Guru maat pita, guru bandhu sakha, tere charnoon main swami mere koti pranam....."
This was absolutely apt for all Indian teachers at one time.
But sorry to say that times have adversely changed.
The profession of teachers n doctors r very noble professions. Ideal teachers can leave a lasting impact on the tender minds.....they can really carve the future of the country.
I read the comments posted by the very honourable people on this blog. I beg for ur apologies to differ on your comments about this poem. Being a teacher for a long time.....I have seen that not too many people do enough justice to the wisdom, morals n values for which a teacher should stand.
I felt the poem depicts the adverse truth in the deterioration of values. Nevertheless....All of us have deep regards for each and every teacher we have come across in our life who really inspired us to b good humans n good citizens....We n the nation salutes the teachers who really do justice to the noble profession of teaching......plz correct me if I am wrong.
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