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Saturday, August 09, 2008

सरकारी अनुदान, चकाचक बरसता है, फटाफट सूख जाता है


सरकारी अनुदान

झिंगुरों से पूछते, खेत के मेंढक

बिजली कड़की
बादल गरजे
बरसात हुयी

हमने देखा
तुमने देखा
सबने देखा

मगर जो दिखना चाहिए
वही नहीं दीखता !

यार !
हमें कहीं,
वर्षा का जल ही नहीं दिखता !
एक झिंगुर
अपनी समझदारी दिखाते हुए बोला-

इसमें अचरज की क्या बात है !

कुछ तो
बरगदी वृक्ष पी गए होंगे

कुछ
सापों के बिलों में घुस गया होगा

मैंने
दो पायों को कहते सुना है

सरकारी अनुदान
चकाचक बरसता है
फटाफट सूख जाता है !

हो न हो
वर्षा का जल भी
सरकारी अनुदान हो गया होगा।

चकाचक = अत्यधिक मात्रा में

-देवन्द्र कुमार पाण्डेय

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8 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

वाह वाह वाह वाह....
आलोक सिंह "साहिल"

दीपाली का कहना है कि -

बहुत ही सरल कविता है.
आनंद की अनुभूति होती है इसे पढ़कर

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

सही व्यंग है | छोटी , सुंदर रचना है |


अवनीश तिवारी

शोभा का कहना है कि -

हो न हो
वर्षा का जल भी
सरकारी अनुदान हो गया होगा।
बहुत बढ़िया लिखा है। बधाई स्वीकारें।

Unknown का कहना है कि -

अच्छा व्यंगय है

सुमित भारद्वाज

RAVI KANT का कहना है कि -

बहुत प्यारी रचना।

Anonymous का कहना है कि -

aap ki rachna bahut hi achchi hai mujhe achchhi lagi
saader
rachana

Unknown का कहना है कि -

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