श्राप
अग्निदेव ने कहा दक्ष से-
प्रजापति, खूब दिया दान-दहेज
घर ढूँढा अच्छा
पाया प्रतिभासंपन्न वर
लेकिन बेटी को विदा करके यदि नहीं देखा
समय-समय पर पीछे मुड़कर
तो सौ टुकड़े हो जायेगा तुम्हारा सर
भस्म हो जायेगी बेटी
कालांतर में दक्ष का सर तो रहा सही-सलामत
लेकिन बार-बार भस्म होती रही सती.
आप सबका अग्रिम धन्यवाद!
यूनिकवि विजय शंकर चतुर्वेदी
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत अच्छी कविता लिखी है चतुर्वेदीजी. बेटियों को बचाने के लिये बार-बार उन्हें देखना ही होगा. हां, उन्हें दान-दहेज की आवश्यक्ता न पडे इसके लिये शिक्षा से सक्षम बनानाकर वारिस भी बनाना होगा.
वाह! बहुत ही स्तरीय रचना.मजा आ गया.
आलोक सिंह "साहिल"
सर्वसाधरण विषय को बड़े ही अलग ढंग से प्रस्तुत किया है.और कविता का शीर्षक भी बहुत उम्दा है.
एक बहुत अच्छी रचना.chhoti है पर पहाड़ को भी हिलाने की ताकत रखती है.
देखन में छोटी लगे
घाव करे.......
बहुत बढ़िया!
आज के समय के लिये संदेश दिया है
आपने विजय जी!
बहुत बढ़िया!
आज के समय के लिये संदेश दिया है
आपने विजय जी!
बहुत अच्छा
जब तक रहेगा दहेज का लोभ,
बेटी एक बार जन्म लेकर, होती रहेगी
बार-बार सती,
और हर बार
हम उसके सतीत्व का गुणगान
कर
चैन से घर में
गहरी नींद सो जायेंगे,
आखिर इस कुंभकर्णी नींद का,
है कोई इलाज?
क्या बात है विजय जी...बहुत अच्छा..
मित्रो, मैं पिछले पखवाड़े महानगर से बाहर रहा. देहात में ऐसी जगह जहाँ कम्प्यूटर से कोई नाता नहीं बन सकता था. आपकी सहृदय प्रतिक्रियाओं के लिए आभार प्रकट करता हूँ. आशा है स्नेह बनाए रखेंगे.
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