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Tuesday, August 26, 2008

लखनऊ में खूब जमा रंग जब मिल बैठीं 10 कवयित्रियाँ


कादम्बिनी क्लब, लखनऊ: गोष्ठी की रिपोर्ट



प्रस्तुती: प्रो. उषा सिन्हा

प्रेमचंद जयन्ती के उपलक्ष्य में भाषाविज्ञान विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय में कादम्बिनी क्लब के तत्वावधान में दिनांक ३१-७-२००८ को संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
हैदराबाद से पधारीं "कादम्बिनी क्लब, हैदराबाद" की वरिष्ठ सदस्या डा. रमा द्विवेदी कार्यक्रम की मुख्य अतिथि थीं। दीप प्रज्जवलन एवं सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं वंदना के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। प्रो. उषा सिन्हा और डा. मधु चतुर्वेदी ने मुख्य अतिथि डा. रमा द्विवेदी का का स्वागत करते हुए पुष्प गुच्छ भेंट किए। तत्पश्चात प्रो. सिन्हा ने कलम के सिपाही, कथा सम्राट, उपन्यासकार प्रेमचन्द के कृतित्व की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला एवं उनकी साहित्यिक मान्यताओं को रेखांकित किया। डा. त्रिलोकीनाथ सिंह ने प्रेमचन्द जी के साहित्यिक योगदान की चर्चा करते हुए कहा कि-"गरीबी अज्ञानता,अत्याचार, शोषण ,जमींदारी-मानसिकता, गरीब की झोपड़ी तक पहुंच कर अन्दर की व्यथा को जगजाहिर करने में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया और जो लेखन उभर कर आया उसने एक सामाजिक क्रान्ति को जन्म दिया। आज जिन परिस्थितियों, घटनाओं को मीडिया, विशेषता इलेक्ट्रानिक मीडिया मिनटों में घर-घर पहुंचा देता है उसे बाहर लाने में प्रेमचंद को पूरा जीवन लगाना पड़ा"।
इस अवसर पर डॉ. रमा द्विवेदी ने कहा कि अहिन्दी भाषी प्रदेश में हिन्दी भाषा-भाषियों को साहित्य और लेखन से जोड़ना कादम्बिनी क्लब का प्रमुख लक्ष्य है। उन्होंनें हैदराबाद के कादम्बिनी क्लब की गतिविधियों की विस्तार से चर्चा की । डा. रमा द्विवेदी ने कहा-इस कार्य में क्लब की अध्यक्षा डा. अहिल्या मिश्र का योगदान महत्वपूर्ण है । उन्होंनें वहां के मारवाड़ी समाज, जैन समाज को जोड़ा है और उनका भरपूर सहयोग भी मिलता है ।

डॉ. रमा द्विवेदी ने अपनी स्वरचित कई कविताओं का सस्वर पाठ किया। भ्रूण हत्या, दिल की दूरी और माया कविताएं विशेष रूप से सराही गईं। कुछ पंक्तियां उद्धृत हैं---

अश्रु तक बिक जाते हैं, "माया" के दरबार में,
चीखों का कितना मूल्य है,सांसों के व्यापार में।


"माया" की संगमरमर जमीं पर, अश्रु जल दिखता नहीं,
हर कोई है फिसल जाता, कुछ रीढ़ पर टिकता नहीं।


डॉ. रमा द्विवेदी के सस्वर काव्यपाठ की सभी के द्वारा करतल ध्वनि से प्रशंसा की गयी । इस अवसर पर कादम्बिनी क्लब की, मोहम्मद बाग की सदस्यों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं।

डा. शारदा लाल, डा. सुमन श्रीवास्तव,नलिनी खन्ना, डा. उषा राय,सुशीला पुरी, और नई सदस्या डा. लक्ष्मी रस्तोगी ने काव्यपाठ किया। सुधा मिश्रा ने आजादी पर ओजस्वी कविता पढ़ी। संयोजिका डा. मधु चतुर्वेदी ने कहा -कन्या भ्रूण हत्या जैसे विषयों पर लेखन सक्रिय होना चाहिए। लेखनी से क्रान्ति आ सकती है। इसी के साथ उन्होंने हिन्दी की रुबाईयां सुनाईं।
मधु जी ने महिला लेखन के नाम पर"तसलीमा" के लेखन की आलोचना में महिला लेखिकाओं को आगे आने का आह्वान किया। सदस्याओं ने नारी अस्मिता और कन्या-जीवन बचाने के संबंध में अपनी प्रतिक्रियाएं व्यक्त कीं।
कार्यक्रम के अन्त में प्रो. उषा सिन्हा ने समस्त सदस्याओं के सहयोग और सहभागिता की प्रशंसा करते हुए डा. सिन्हा ने कहा लखनऊ के कादम्बिनी क्लब को हैदराबाद -कादम्बिनी क्लब से परिचित कराने में डा. रमा द्विवेदी ने सेतु का कार्य किया है। साथ ही "पुष्पक" साहित्यिक पत्रिका से भी जोड़ने का स्तुत्य कार्य किया है। प्रो. सिन्हा ने डा. रमा द्विवेदी के काव्य संग्रह "दे दो आकाश" की सारगर्भित चर्चा करते हुए उसकी कुछ कविताएं भी उद्धृत कीं। डा. मधु जी के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ ।

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3 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

कुछ माह पूर्व एक संगोष्ठी में लखनऊ जाना हुआ था . तब प्रो.उषा सिन्हा से मिलने और बात करने का मौका मिला था . भाषाविज्ञान और साहित्य पर अच्छी चर्चा हुई .

रंजू भाटिया का कहना है कि -

बहुत अच्छा लगा यह जान कर

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

रमा जी, जब अभी दिल्ली आई थीं, तो मिलना हुआ था, उन्होंने अपनी आवाज़ में हमें एक गीत भी सुनाया था, इनकी आवाज़ और उसमें निहित ऊर्जा से इनकी उम्र का पता नहीं चलता। सच में, बहुत रंग जमा होगा।

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