आज हम जिस कविता का ज़िक्र करने जा रहे हैं उसकी रचयिता है रश्मि सिंह जो वर्तमान में M.Tech की पढ़ाई कर रही हैं। जब भी मौका मिलता है हिन्द-युग्म के सभी पन्ने खँगालती हैं और अपनी साहित्यिक भूख को शांत करती हैं। इनको लिखने का शौक बहुत छुटपन से रहा है, लेकिन अपने स्कूली पत्रिकाओं के अतिरिक्त कहीं और कोई रचना प्रकाशित नहीं करवाई। अपनी रचनाओं को बड़े पाठक-वर्ग तक जोड़ने के लिए हिन्द-युग्म से जुड़ने को प्रोत्साहित हुई हैं।
कविता- आंधी के बाद
शाम ढलने में थी थोड़ी देर
मौसम सुहावना लग रहा था आंधी के बाद
पेड़ की ऊपरी डाल पर बैठी थी
वो चिड़िया बहुत उदास
मैं रोज जिसे देखती थी
शाम में अक्सर वो फुदक-फुदक कर गाती थी
और अपने मधुर कलरव से
ध्यान बरबस मेरा खींच लेती थी
छोटी-छोटी टहनियों का सहारा लेकर
तिनके, पत्ते और ना जाने क्या-क्या से
अपना घर सजाती रहती थी
शायद ढेर सारी हसरतों से
अनूठी उमंगों से
वो प्यार का महल बनाई थी
अनेकों बार मैंने उसको देखा
तिनकों को चोंच में दबा कर लाते
फिर उसको बैठ कर बुनते
कुतुहल जगा, देखूँ तो सही
क्या हो गया
इसकी खुशी को आंधी के बाद
किसने इसकी खुशी छीन ली
दे दी है एक चुप्पी
कैसा है ये अवसाद
यूँ ही टहलते-टहलते
चली गयी मैं उसी पेड़ के नीचे
अचानक नज़र पड़ी
टूटे हुए थे सारे अंडे
थोडी दूर पर पड़ा था
टूटा-फूटा घोंसले का अवशेष
कुछ तिनके अभी भी फंसे हुए थे
उन्हीं टहनियों और पत्तियों के बीच
पर अंडे नही बचे थे उसमें शेष
चिड़िया देख रही थी
कभी उन टहनियों को
कभी नीचे पड़े टूटे हुए उस घर को
वक़्त की बेरहमी ने कर दिया था उसे बर्बाद
शायद वो आंसू बहा रही थी
सपने टूट गए थे
न हो सका उसका घर आबाद
अब समझने को कुछ बाकी ना था
उसका गम बाँटूँ
ऐसा कोई चारा भी नहीं था
बरबस नैन भीग आए मेरे
जान गयी सब किस्मत के है फेरे
क्यों है चिड़िया उदास
आंधी के बाद
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ५॰५, ३, ५, ६॰१५, ६॰५
औसत अंक- ५॰२३
स्थान- सोलहवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक-४॰२, ५, ५॰२३(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ४॰८१
स्थान- चौदहवाँ
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3 कविताप्रेमियों का कहना है :
रश्मि जी अच्छी कविता, आप में बहुत संभावनाए है. रिश्ते पर भी आपकी कविता पढ़ी | अच्छी है |
थोड़ा कथ्य को सान्द्र और भाषा का संक्षेपण करे तो रचना की सुन्दरता और बढेगी |
विनय के जोशी
मैं उस हृदय को प्रणाम करना चाहता हूँ जिसने पंछी के दर्द को इतनी गहराई से महसूस किया।
रश्मि जी--
आंधी के बाद ----मैने भी एक बार ----टूटे अंडे -----बिखरे तिनके------उदास पंछी को देखा था---
मुझे भी लगा था कि अब इस पंछी के लिए सब कुछ समाप्त हो गया---------
दूसरे दिन फिर देखा----तो अवाक रह गया------
उसने फिर एक बार बिखरे तिनकों को जोड़ना शुरू कर दिया था---
और कुछ ही दिनों में एक नयां --- खूबसूरत --घोंसला बन कर तैयार था
जिसमें थी अपार संभावना-------
कविता काफी बडी है पर पढने मे अच्छी लगी
ऐसे ही लिखते रहें
सुमित भारद्वाज।
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