एक सुबह
प्रभु उठे
चायकर्म से निवृत हो
दृष्टिपात किया धरा पर
सहदेव, सहकर्मी, सहचर की
एक ना मानी
और आज प्रभु ने
सेम्पल चेकिंग की ठानी
.
एक जगह विमान उतारा
प्रसन्न हो गए देख नजारा
सतयुग बीते बीती सदिया
बहती अभी तक दूध की नदिया
.
अग्र प्रयाण किया प्रभु ने
मन सुमन खिल उठा
देख साकार अपनी संकल्पना
धरा पर सजी थी शान्ति की अल्पना
.
कुछ और आगे बढे
तो कानो में शब्द पड़े
हर-हर महादेव, जय श्री राम
गदगद हो गए प्रभु
भक्तो को किया प्रणाम
.
थक गए थे जगतपति पर
संतुष्ट थे आज की विजीट पर
चरण दबाये लक्ष्मी और
निद्राधीन श्रीधर
.
ख़बर रखते हर पल की
हे अन्तर्यामी !
तुम कैसे चूक गए
तुम्हारा एक दिन
होता हमारा एक युग
ये कैसे भूल गए
.
जिसे तुमने समझा
घी दूध की नदिया वह
मार्बल स्लरी के धारे थे
जिसे तुमने समझा
धर्म जयघोष वह
धार्मिक उन्माद के नारे थे
बालक तक थे मौन
सोचो इतना सन्नाटा क्यूँ था
शान्ति नही थी दहशत थी
उस दिन शहर में कर्फ्यू था |
कवि-विनय के जोशी
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत अच्छी व्यंग रचना है विनय जी
पढ़कर अच्छा लगा अच्छा लिखा है आपने
विनय जी,
कथ्य में नयापन नहीं है। व्यंग्य की धार पैनी होगी भी कई बार सुनी हुई बातों की तरह है। जैसे किसी घर का बुजुर्ग नादानों को असलियत समझा रहा हो।
नारायण! नारायण!
प्रभु---
कर्फ्यू में मृत्युलोक घूम आए!
और कुछ नहीं देखा?
लगता है आप के भक्त ने आपको ठीक से नहीं घुमाया!
--देवेन्द्र पाण्डेय।
viny ji kavita jab padhna shuru kiya to sochti rahi ant kya hone wala hai pr ant pr jab pahuchi to sochti rah gai bahut achchhi kavita
badhai
rachana
अच्छा प्रयास!
विनयजी
लगे रहिये आज के भगवान् (नेता) एसी ही यात्रा करके भरम बाटते है और पालते है | सरल तरीके से करारा व्यंग्य बधाई
तारिणी
विनय के जोशी जी,
आपने साधारण और पुराने से विषय को नए तरह से जो पेश करने की कोशिश की ... वो अच्चा लगा..
२) व्यंगात्मक शैली अच्छी लगी और भावः भी सुन्दर थी..
३) मिश्रित भाषा का अच्छा प्रयोग है.. जैसे कही कही पर अंग्रेजी शब्दों का अच्छा प्रयोग किया है
"सेम्पल चेकिंग"
सादर
शैलेश
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