अक्सर
वो दिखता है मुझे
लेटा अपने कमरे में
पेट के बल
(मां के डांटने के बावजूद )
अक्सर
वो रातभर
लिखता रहता है कोई नयी कविता
या कोई नया चुटकुला
बना रहा होता है कोई नया प्लान
क्लास की नई लड़की से पहचान बढ़ाने का
अक्सर
वो सोचता रहता है बहुत कुछ
अकेले बैठे
जब कहीं कोने में
उबलती रहती है चाय
जलती रहती है जिंदगी उँगलियों के बीच
अक्सर
वो मुंह चिढाता है मुझे
कहता है
पसंद नहीं आती कवितायें मुझे अब
और हँसता नहीं अब मैं चुटकुलों पर
पीछे छोड़ आया हूँ मैं अपनी क्लास
और आदत पेट के बल सोने की
अक्सर
वो मिलता है मुस्कुराते हुए
जब
मैं झांकता हूँ उसकी खिड़की में
खिड़की
जिसे वो कमबख्त आइना कहता है।
अक्सर
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
7 कविताप्रेमियों का कहना है :
कम्प्यूटर खोला-----कविता पढ़ना शुरू किया-----बचपन---- पढ़ते-पढ़ते लगा --------कहिं--- पावस नीर---तो नहीं!
हाँ-----यह पावस ही हो सकता है--------हाँ यह पावस ही है ।
-----वाह आनन्द आ गया -------!
अपने भीतर बचपन ढूंढने का अंदाज निराला है--------एकदम नया----
---बधाई ।--देवेन्द्र पाण्डेय।
बहुत ही उम्दा....दिल को अंदर तक छू गई रचना.....बधाई
दिल की आवाज़...बहुत अच्छे पावस जी.
बचपन की यादो की एक सुंदर कविता एक सुंदर अहसास
हाँ भाई पावस! अब आया मज़ा!
बढिया!
aap ki kavita bahut sundr hai
badhai
rachana
अरे ये क्या.,, इस कमेंट्स वाले पेज पर आपकी कविता का रंग रूप ही बदल गया.. ऐसा लगा.. कोई लेख पढ़ रहा हूँ...
वैसे कविता के भावः सुन्दर है.. और एक अच्छी कोशिश है...
सादर
शैलेश
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)