पहले भी यही हाल था
अब भी तो वही हाल है
दिल्ली में हर गीदड़
पहने शेर की खाल है
उत्तर में कश्मीर है
फूटी उसकी तक़दीर है
कहने को कुर्सी की लड़ाई है
पर आफ़त तो जनता की आई है
वहां जो बैठा अब्दुल्ला है
वो सत्ता का दुमछल्ला है
जब चिनार जलते हैं, 'डल' रोती है
उसके हाथों लंदन में विह्सकी होती है
सीधा मत समझो उसको
पूरा गुरुघंटाल है।
पहले भी यही हाल था॰॰॰॰
उसके आगे हिमाचल है
मैला उसका भी आँचल है।
जनता की कीमत वहाँ भी छदाम है
दुखी सारे लिग हैं, सुखी सुखराम है
तिहाड़ जाकर भी वो मालपुए खायेगा
तेरे नसीब में तो प्यारे, रोटी और दाल है।
पहले भी वही हाल था॰॰॰॰
उससे आगे पंजाब है
उतरी उसकी भी आब है
नेता सारे हँसते है
लहू के आँसू रोती चिनाब है
लहू सना वहाँ भी सारा गुलला है
पहले भी यही हाल था॰॰॰॰
दूध दही जो खाणा है
देसां में देस हरयाणा है
चादर उसकी भी मैली है
हर तरफ़ दारू की थैली है
रक्तहीन जनता पीली-पीली है
नेता सारे लाल-लाल-लाल हैं
[देवीलाल-बंसीलाल-भजनलाल है]
पहले भी यही हाल था॰॰॰॰
आगे अपनी दिल्ली है
ढीली उसकी तो किल्ली है
चहुँओर पोंछा जाता बहनों का सिन्दूर है
दिल्ली में जलता रहता नेताओं का तन्दूर है [नयनासाहनी कांड]
क्या जमुना का पानी खारा है
या टेढ़ी ग्रहों की चाल है
जो भी दिल्ली आता है [नेता]
हो जाता चांडाल है
पहले भी यही हाल था॰॰॰॰
आगे अपनी यू.पी है
छाई वहां भी चुप्पी है
कल्याण मायूस है
मुलायम उदास है
दोनों के मुंह पर ताला है
दोनों जपते माला हैं
माया महा ठगिनी है,
माया जी का जंजाल है
पहले भी यही हाल था॰॰॰॰
आगे बिहारी बाबू है
साँड़ वो बेकाबू है
नाम उसका लालू है
पूरा का पूरा चालू है
अपनी पत्नी को शासन सौपा था
छुरा पीठ में जनता की घौंपा था
शरद रामविलास नितीश का जाल है
क्या जे.पी और राजेन्दर बाबू के घर
नेताओं का पड़ा अकाल है
पहले भी यही हाल था॰॰॰॰
ये जो वाम नेता हैं
ये भी दाम लेता है
इनकी अक्ल काबंद हुआ स्कूल है
इनको समझाना फ़िजूल है
नीति-वीति भाड़ में जाए
बस्स वोट का सवाल है।
पहले भी यही हाल था॰॰॰॰
पाक में रहता इक भाई है [दाऊद]
वो मुम्बई का कसाई है
आपके हाथों दर्पण है
दक्षिण के नेता भी बने वीरप्प्न हैं
मत्त कहो सरकार है
बृहन्ला की अवतार है
सोलह टांगों पर चलती है [१६ पार्टियों का समर्थन]
लेकिन टेढ़ी चाल है
पहले भी यही हाल था॰॰॰॰
रोको लिब्रेशन की आंधी को
याद करो फिर गांधी को
जब-जब गोरे आये हैं
देश हुआ कंगाल है
पहले भी यही हाल था॰॰॰॰
यूँ मन उदास है
फिर भी मुझको आस है
अच्छे दिन लौटेंगे
पूरा ही विश्वास है
नव-पीढ़ी के खून में आ रहा उबाल है
अब बदलने वाला यह हाल है।
--यूनिकवि श्याम सखा 'श्याम'
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15 कविताप्रेमियों का कहना है :
bahut badhiya,pure desh ka hi buara aapne ek kavita me de diya...
bahut achchha syamjee rajaniti ka sundar chitraN hai.
इस कविता को पढ़ कर निराशा हुई...कविता का विषय तो ठीक है मगर बहुत ही सपाट लिखी गई है..तुक मिलाकर उत्तेजना भरे शब्दों का संयोजन यूनिकवि की कलम से निकली कविता नहीं हो सकती है....मुझे कविता पढ़कर लगा कि जैसे कवि सम्मलेन में बैठा हूँ और वाहवाही लूटने के चक्कर में एक कवि कान में चीख-चीख कर ये शब्द डाल रहा है... .
श्याम जी को पिछली कुछ कविताओं से जानता हूँ, इसीलिए अपने परिवार का कवि समझकर इतना कह रहा हूँ...
सादर,
निखिल
प्रिय गिरि जी,
स्नेहिल नमन।मैं आपकी बात से सहमत हूं।यह रचना सारा दिन टी.वी पर सांसदों और टी.वी एंकरो द्वारा घटिया हालात create करने से उद्वेलित मन से उपजी बात है।मैं मंच कवि नहीं हूं।
मगर कई बार ऐसे हालात में भी अच्छी रचना जन्म ले लेती है। साहिर ने लिखा है
हम गमजदा हैं लाएं कहां से खुशी के गीत\ देंगे वही ,जो पाएंगे इस जिन्दगी से हम ।
श्यामसखा श्याम
यूँ मन उदास है
फिर भी मुझको आस है
अच्छे दिन लौटेंगे
पूरा ही विश्वास है
अच्छी रचना जन्म ले लेती है।
विषय अच्छा है पर कविता साधारण लगी।
सुमित भारद्वाज
Good one.
कथ्य तो बार-बार दोहराए जाने से अपनी महत्ता खो चुका है - काव्य भी साधारण ही है. कब तक हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहकर अपने नेताओं को गालियाँ निकालते रहेंगे? यह देश हमारा है और यहाँ जो भी होता है उसके लिए हम सब उतने ही जिम्मेदार हैं जितने यह नेता. महात्मा गांधी के अनुसार अन्याय करने वाले से बड़ा पापी वह है जो अन्याय सहता है.
मित्रो !
विशेषतय स्मार्ट भारतीय व गिरि जी,कल तो मन उद्वेलित था और कथ्य दोहराया गया;मगर आज का script जो party with a difference व primeminister in waiting ne enact किया। जी मध्यप्रदेश के सांसद को मध्यप्र्देश में ही रिश्वत देने का नाटक ,जब आपके पास मीडिया चैनल को बोलाने का वक्त है तो क्यों नहीं अपने मुख्यमंत्री व पुलिस कमिश्नर को कह कर रिश्वत देने वालों को रंगे हाथ पकड़्वा दिया।जिस वक्त संसद मे नोट दिखाये जा रहे हैं ,श्री अड्वाणी उसी समय संसद के बाहर इसी विषय पर प्रेस-कान्फ़्रेंस कर रहे हैं।यह तो कांग्रेस व वामपंथी script jo वे आसन्न चुनाव के कारण नाटक कर देश का सत्यानास करने में लगे हैं।
वहीं श्री अडवाणी जनता को अपने बेहुदे नाट्क से बहकाने की कोशिश कर रहे हैं
इन् हालात पर जीने की दुआ कौन करे
दुख्ते हुए घावों पर दामन की हवा कौन करे
जब बीमार....है खुद ही हकीमाने वतन
तेरे दर्द की दवा कौन करे
श्याम सखा
बहुत सही विषय चुना है एक कविता में पूरे देश की हालत बयां कर दी आपने
लेकिन इसे एक कविता की बजाये यदि एक विचार या भाषण कहा जाए तो शायद ज्यादा सटीक है
mujhe is kavita se koi niraasha nahi hui. pehli baar kisi ne "chaandaal" jaise shabd ka prayog kiya hai, is naate kavita mein nayapan bhi hai. kavita ki sabse acchi baat mujhe yeh lagi ki kisi bhi neta yahaan tak ki kisi bhi bimb(chaahe woh vyakti hi kyun na ho) par vyaktigat tippani nahi ki gayi.
Kabhi kabhaar seedhe-sapaat shabd jyaada asar karte hain. Isi kaaran main is kavita ko safal maanata hoon.
-Vishwa Deepak 'tanha'
शब्द चुटीले हैं और तुकबंदी कमाल है ! पर कविता यूनिकवि की है,इस बात का मलाल है !!
करण समस्तीपुरी-
इतना भी न मलाल कर
सोमवार की यूनी-कविता का इन्त्जार कर
अच्छी व्यंग्य कविता है
श्याम जी ,
१)कविता मै नया पण नहीं है
२)लम्बाई बहुत ज्यादा है.. आधे पर ही पाठक ऊब जाता है नया पण न होने की वजह से
३) तुक्बन्धी ही ज्यादा लगी है...
PS :- ये मेरी व्यक्तिगत राय है..
सादर
शैलेश
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