राहतें सारी आ गई हिस्से में उनके
और उजाले दामन के सितारे हो गये
चांद मेरा बादलों में खो गया है
कौन जाने इस घटा की क्या बजह है
आखिरी छोर तक जायेगा साथ मेरे
और फ़िर वो साया भी मेरा न होगा
ख्वाबों के लिये हैं ये सातों आसमान
हकीकत के लिये पथरीली सतह है
जब आस का विश्वास ले कर तैरता था
समझ लाश गिद्ध इर्द-गिर्द मंडराने लगे
क्यों उठ रही भीगी जमीं से गर्द है
पहली किरण से क्यों सुलगती सुबह है
राहों से मंजिलों का पता पूछता है
बीच राह में गुमराह राही हो गया है
कौन जाने गुजरे पडाव मंजिलें हों
भूलना ही हार को असली फ़तह है
दोस्तों ने निभा दी दुश्मनी प्यार से
सोचने को अब बाकी क्या बचा है
राह शोलों पर भी चल कर कट जायेगी
इस दिल मे जख्मों के लिये जगह है
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
दोस्तों ने निभा दी दुश्मनी प्यार से
सोचने को अब बाकी क्या बचा है
राह शोलों पर भी चल कर कट जायेगी
इस दिल मे जख्मों के लिये जगह है
वाह बहूत खूब लिखा है।
"दोस्तों ने निभा दी दुश्मनी प्यार से" -- अच्छा बयान है.
राहतें सारी आ गई हिस्से में उनके
और उजाले दामन के सितारे हो गये
चांद मेरा बादलों में खो गया है
कौन जाने इस घटा की क्या बजह
बहुत बढ़िया मोहिन्दर जी
क्या बात है मोहिन्दर जी कविता है या मिशाइल...
बहुत ही अच्छी रेंज की मारक क्षमता वाली कविता..
बहुत खूब मोहिंदर जी !
मैं थोड़ा असमंजस में हूँ ! इसे ग़जल कहूं, कविता कहूं या रुबाई ??? साफगोई अच्छी मगर काफिया तंग है !
भूलना ही हार को असली फ़तह है..
क्या बात है! बढिया मोहिन्दर जी!
बहुत खूब |
अवनीश तिवारी
mohinder ji, ab aap purane form me waapas aa rahe hain. bahut sunder.
राहों से मंजिलों का पता पूछता है
बीच राह में गुमराह राही हो गया है
कौन जाने गुजरे पडाव मंजिलें हों
भूलना ही हार को असली फ़तह है
दोस्तों ने निभा दी दुश्मनी प्यार से
सोचने को अब बाकी क्या बचा है
राह शोलों पर भी चल कर कट जायेगी
इस दिल मे जख्मों के लिये जगह है
वाह वाह क्या बात है मोहिंदर जी
बहुत अच्छा
लाजवाब जी,
मजा आ गया
आलोक सिंह "साहिल"
दोस्तों ने निभा दी दुश्मनी प्यार से
सोचने को अब बाकी क्या बचा है
राह शोलों पर भी चल कर कट जायेगी
इस दिल मे जख्मों के लिये जगह है
वाह वाह क्या बात है
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