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Monday, July 21, 2008

रु-ब-रु


भटकती नज़र
एक बार
यूं जा अटकी
बागीचे में घुस आए
आवारा कुत्ते पर....
वह एक छोटे-से पौधे को सूंघा
और जैसा अपेक्षित था...
...उठा दी अपनी पिछली टांग
लेकिन उसके बाद
उसने जो किया
वो अनापेक्षित था
उसने अपने पिछले पैरों से
वहां की मिट्टी को उड़ाया
जैसे...वह इंसानों की दुनिया में
रहने का सलीका जानता हो
जी...वह अपनी गंदगी को ढ़ंकने
और अपने पांव साफ करने की कला का
जो प्रदर्शन किया
उसे देखकर
एकबारगी
वो कुत्ता मुझे संस्कारी लगा
मैं इन्हीं ख्यालों में
उलझा हुआ
उस कुत्ते को निहार रहा था
कि वह अवारा कुत्ता
पलटा
मेरी ओर घूमा हुआ
उसका चेहरा...
मुझे आईना लगा!!!

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12 कविताप्रेमियों का कहना है :

pallavi trivedi का कहना है कि -

kitni sahi baat hai...hame bhi in jaanvaron se kuch seekhna chaahiye...bahut achcha sandesh diya hai aapne is kavita ke maadhyam se jabki aaj ke yug mein padha likha hone ke baavzood insaan civic sense khota ja raha hai.

Anonymous का कहना है कि -

waah waah........
behatarin msg

alok singh "sahil"

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

सुंदर व्यंग्य है। धार है भाई।

Smart Indian का कहना है कि -

वाह भाई वाह!

Anonymous का कहना है कि -

छोटी मिर्ची ज्यादा तीखी होती है
वाह

vipinkizindagi का कहना है कि -

अच्छी कविता है

BRAHMA NATH TRIPATHI का कहना है कि -

बहुत सुंदर काफ़ी अच्छा कटाक्ष किया है आपने
एक अच्छी व्यंगातमक कविता लिखी है आपने
बधाई

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

वाह अभिषेक जी, बहुत सही व्यंग्य है...

devendra kumar mishra का कहना है कि -

व्यंगातमक कविता लिखी है आपने
बधाई

करण समस्तीपुरी का कहना है कि -

शुरू से मैं इस कविता को नही समझ पाया लेकिन अन्तिम पंक्ति ने सब कुछ समझा दिया !!
Mind blowing !!!

mona का कहना है कि -

well written poem

Unknown का कहना है कि -

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