लेकर जब अपने काँधों पर
दिखलाया था संसार मुझे,
है याद हसीं लम्हा, खुलकर
मैं हँसा था पहली बार मुझे ।
जब तक न हुआ था तनिक बड़ा
तुम सदा रहे मेरे घोड़े,
मैं तिक-तिक करता चलता था,
तुम चलते थे दौड़े दौड़े ।
कहाँ गये वो वादा खण्डित कर ?
ओ, बचपन के मित्र - नमन
हे पित्र नमन हे पित्र नमन हे पित्र नमन हे पित्र नमन ।
ले जाते थे स्कूल मुझे
बस्ता तख्ती खुद लिये हाथ,
कितनी ही बार विलम्ब हुआ
तब दौड़े कितना साथ-साथ ।
फिर बना हासिया तख्ती पर
लिखवाते थे अक्षर अक्षर,
मैं हाथ पकड़ लिखता जाता
बे-खौफ आपके साथ निडर ।
सब रुधिर कणों में बसे हुए
वो पल-प्रतिपल के चित्र - नमन
हे पित्र नमन हे पित्र नमन हे पित्र नमन हे पित्र नमन ।
आतीं थीं परीक्षायें मेरी
पर चिंता तुम्हें सताती थी,
जब तक मैं पढ़ता रहता था
नहीं नींद तुम्हें भी आती थी ।
दिन भर खेतों में निकल गया
क्षण भर भी नही विश्राम किया,
ताउम्र हमारे हेतु पिसे
कोल्हू का बैल बन काम किया ।
अतुलित त्यागों के चरित्र - नमन
हे पित्र नमन हे पित्र नमन हे पित्र नमन हे पित्र नमन ।
डग-मग डग-मग कर गयीं डगें
मिल गयी अगर जो विषम डगर,
हर कदम चले बनकर सम्बल
बिचलित ना होने दिया मगर ।
चेहरे पर झुर्रियाँ बनीं भले
मन से न हुए थे कभी अजर,
आयु को किया हर बार पस्त
हर काम को करने को तत्पर ।
ओ कर्मठता के स्वरित्र - नमन
हे पित्र नमन हे पित्र नमन हे पित्र नमन हे पित्र नमन ।
कष्टों की बारिश धूप ताप
सहते थे बरगद बने हुए,
हम अभय खेलते छाया में
सीना चौड़ा कर तने हुए ।
अंत काल तक कह कहकर
मैं ठीक हूँ बच्चो; दिया धीर,
दिख रहा था जर्जर अस्थिजाल
कमजोर क्षीण अस्वस्थ शरीर ।
अपनापन अजब विचित्र - नमन
हे पित्र नमन हे पित्र नमन हे पित्र नमन हे पित्र नमन ।
आँखों में हज़ारों चिन्ताएं
कैसे होगा ? अब मैं तो चला,
अंतिम पल की भी अभिलाषा
ईश्वर करना बस सदा भला ।
मानो चिर जाप किया फिर से
ली मूँद आँख भगवन समक्ष,
व्यवधान ना हो आराधन में
कर लिये शांत नाड़ी व वक्ष ।
आह! परलोक धाम का, पवित्र गमन
हे पित्र नमन हे पित्र नमन हे पित्र नमन हे पित्र नमन ।
पलटी बारी काँधों की अब
तिक-तिक का स्वर पर कौन करे,
बस राम नाम का स्वर गुंजित
तुम अश्वारोही मौन धरे ।
लो विलय हो गये क्षण भर में
जीने की देकर एक राह,
हे त्यागमूर्ति परहिती ईष्ट
है गर्व मुझे हे पिता वाह !
हे क्षिति जल अग्नि वायु गगन
हे पित्र नमन हे पित्र नमन हे पित्र नमन हे पित्र नमन ।
हे पावन पतित पवित्र नमन
हे पित्र नमन हे पित्र नमन हे पित्र नमन हे पित्र नमन ।
11-06-2008
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
आपकी कविता ने रुला दिया आज राघव जी ..बहुत ही दिल से लिखी गई है यह कविता एक सच्ची श्रद्दान्जली है यह ..
राघवजी आपकी कविता नहीं एक ग्रन्थ है, जो पिता को याद कर कहता पिता की महानताओं का अंश है. उत्तम कविता प्रस्तुत करने के लिये आभार.
राघव जी,जबरदस्त.
आलोक सिंह "साहिल"
पलटी बारी काँधों की अब
तिक-तिक का स्वर पर कौन करे,
बस राम नाम का स्वर गुंजित
तुम अश्वारोही मौन धरे ।
बहुत ही भावुक ,आँखे नम हो गई |यही संसार का नियम है |
padkar aankhein nam hain
Pita se door rahne ka gham hai
Jeevan bhar itna diya un-ne
Sat janam bhi nyochhawar karun,kam hai.
Bahut he achha likha hai aapne. Thanks
Raghav ji,
Aapki kavita ki jitni taareef ki jaye.. utni kam hai,.. padte padte aankho mai aansu aa gaye..
bahut bahut dhnyabad itni sundar rachna ke liye.. jitna kaha jaaye kam hai..
Shailesh
भूपेंद्र जी ,
बस आँखे नम हो आई .
^^पूजा अनिल
राघव जी,
फ़ादर डे पर आपने एक ह्र्दय स्पर्शी व सार्थक रचना लिखी है... बधाई
dil ko chhoo gai mja a gya such ese kavita likhne vaale ""he kavi nmn he kvi nmn""
ek marmik kavita,dil ko chu gayi bahut badhai
आज अचानक बचपन सामने आ खडा हुआ.जब एक ही बात हजार प्रश्नों को लिए होती थी और पिता हजार जिज्ञासाओं को शांत करके भी स्नेह की छांव मे क्रोध की धूप नही आने देते थे..कल शाम को पिता से बात हुए थी .....बात काफी मजेदार ढंग से शुरू हुयी थी लेकिन एक कमी थी कि हम आमने सामने नही थे... उस कमी को आपकी कविता ने पूरा कर दिया ....जब मैं यादों की पतवार थाम बचपन के अथाह आनंद सागर मे पिता के साथ नाव नवैया खेलने लगा...
दिल को छू लेने वाली कविता.........
पढ़्कर तुम्हारी कविता,दिल कहता है मेरा
हे कवि-मित्र नमन,हे कवि मित्र नमन
श्यामसखा‘श्याम’
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