एक ख्वाब फिर पलने लगा है आंखों में
और..एक ख्वाब डरने लगा है आंखों में
बनने-बिगड़ने के इस खेल में...बिखरना ही है
गाहे उतर आने वाले अश्कों के साथ
किसी ख्वाब का आना इत्तेफाक नहीं
किसी का ख्वाब में आना इत्तेफाक नहीं
मेरी हसरतों में जो अधूरा था
गाहे उतर आता है ख्वाब में भी
कोई ख्वाब में आता है हर रोज मुझे
कोई ख्वाब में जगाता है रोज मुझे
मुझसे पूछकर मेरा नाम-पता
गाहे चला जाता है दूर कहीं
कुछ ख्वाब ही जगाते हैं अरमान सारे
कुछ ख्वाब ही दिखाते हैं राह सारे
ऐसे ही ख्वाब ही उजाले-से रौशन हो
गाहे जगा जाते हैं नींद से भी
ख्वाब के देखें हैं रंग तमाम..
ख्वाब में देखें हैं रंग तमाम...
ख्वाब से दर्द भी उतरते देखा है....
ख्वाब के रंग उजड़ते देखा है.....
ख्वाब से क्यों नहीं कुछ ख्वाब उतर आते हैं?
ख्वाब क्यों..ख्वाब ही रह जाते हैं?
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
मेरी हसरतों में जो अधूरा था
गाहे उतर आता है ख्वाब में भी
अभिषेक जी ! पसन्द आई यह कविता!
कुछ ख्वाब ही जगाते हैं अरमान सारे
कुछ ख्वाब ही दिखाते हैं राह सारे
ऐसे ही ख्वाब ही उजाले-से रौशन हो
गाहे जगा जाते हैं नींद से भी
bahut sundar
अभिषेक जी - बहुत सुंदर पंक्तियाँ
किसी ख्वाब का आना इत्तेफाक नहीं
किसी का ख्वाब में आना इत्तेफाक नहीं
मेरी हसरतों में जो अधूरा था
गाहे उतर आता है ख्वाब में भी
ख्वाबों का सही चित्रण किया अपने .... सुरिन्दर रत्ती
ख्वाब सच भी होंगे अभिषेक भाई......हौसला रखें
शब्दों की पुनरावृति से अनुप्रास बोझिल ! कथ्य अस्पष्ट एवं शिल्प सामान्य !!!
पाटनी जी,
बहुत दिनों बाद आपको पढ़ा.
मजा आया.अच्छी कविता
आलोक सिंह "साहिल"
कुछ संतुलन की कमी तो लगी लेकिन फ़िर भी लगाव बना रहा पढ़ते समय |
बधाई
अवनीश तिवारी
ख्वाब के देखें हैं रंग तमाम..
ख्वाब में देखें हैं रंग तमाम...
ख्वाब से दर्द भी उतरते देखा है....
ख्वाब के रंग उजड़ते देखा है.....
ख्वाब से क्यों नहीं कुछ ख्वाब उतर आते हैं?
ख्वाब क्यों..ख्वाब ही रह जाते हैं?
अलग सा शिल्प लिये है आपकी ये रचना..
विविधता है रचनाओं में..
सुन्दर
ख्वाब से क्यों नहीं कुछ ख्वाब उतर आते हैं?
ख्वाब क्यों..ख्वाब ही रह जाते हैं?
सोचने पर मजबूर है........?
The whole poem is excellent but the last lines leave a lasting impression on the mind.
ख्वाब के देखें हैं रंग तमाम..
ख्वाब में देखें हैं रंग तमाम...
ख्वाब से दर्द भी उतरते देखा है....
ख्वाब के रंग उजड़ते देखा है.....
ख्वाब से क्यों नहीं कुछ ख्वाब उतर आते हैं?
ख्वाब क्यों..ख्वाब ही रह जाते हैं?
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