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Saturday, June 28, 2008

सदियों से



आज मैं जब भी

रखता हूँ अगला कदम

तो उस से पहले सौ बार

सोचता हूँ

कि अजन्मे इस कदम के

बीज की कौन सी फ़सल उगेगी

धरती पर -

किस तरह बेचूँ इस बीज का

महत्त्व , कि अगली सदी में

बनें मूर्तियाँ मेरी शक्ल कीं

उन्होंने भी रोपे थे पौधे

मुझसे पहले-

कि आज तक

पूजी जाती हैं

वहीं मूर्तियाँ

जिनमें कोई आत्मा न हो-

आत्मा की मूर्ति गढ़ने

वाला बीज

अब तक पड़ा है

सुराही में ,

सदियों से-


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8 कविताप्रेमियों का कहना है :

सीमा सचदेव का कहना है कि -

किस तरह बेचूँ इस बीज का

महत्त्व , कि अगली सदी में

बनें मूर्तियाँ मेरी शक्ल कीं


उन्होंने भी रोपे थे पौधे

मुझसे पहले-

बहुत ही अच्छा विचार है आलोक जी |आपके बिम्ब तो हमेशा प्रभावित करते है |

Anonymous का कहना है कि -

bhut sundar rachana ki hai aapne. badhai ho. likhate rhe.

Admin का कहना है कि -

बहुत प्रभावशाली

Anonymous का कहना है कि -

ek kasak hai is kavita mein jo kuch sochne par majboor karti hai,aaj talak wo bij bandh hai surahi mein.ek prabhavi kavita ke liye bahut badhai.

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

आलोकजी-
जिनकी मूर्तियाँ पूजी जाती हैं (भले ही उसमें आत्मा ना हो----वैसे यह भी हम-आप कह सकते हैं-जो पूजते हैं वे तो यही समझते हैं कि इसमें आत्मा है) उन्होने यह सोंच कर अगला कदम नहीं रक्खा कि ---किस तरह बेचूँ इस बीज का महत्व कि अगली सदी में बने मूर्तियाँ मेरी शक्ल की ।
आत्मा की मूर्ति गढ़ने वाला बीज ( अर्थात ऐसी मूर्ति जिसमें आत्मा हो) धरा में अंकुरित नहीं होता।
-----देवेन्द्र पाण्डेय।

करण समस्तीपुरी का कहना है कि -

कि अजन्मे इस कदम के

बीज की कौन सी फ़सल उगेगी

धरती पर -

किस तरह बेचूँ इस बीज का

महत्त्व , कि अगली सदी में

बनें मूर्तियाँ मेरी शक्ल कीं

रचनाकार की उद्दाम जिजीविषा समर्थ बिम्बों और साधु शब्दावली में व्यक्त हो बहुत प्रभावशाली बन पडी है !

Anonymous का कहना है कि -

सशक्त प्रस्तुति
आलोक सिंह "साहिल"

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

कि अजन्मे इस कदम के

बीज की कौन सी फ़सल उगेगी

धरती पर -

किस तरह बेचूँ इस बीज का

महत्त्व , कि अगली सदी में

बनें मूर्तियाँ मेरी शक्ल कीं


चिरप्रभावी रचना...

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