आरूषी-आरूषी-आरूषी
कान पक गये
तुम्हारा नाम सुन सुन कर
तुम्हारी मौत के बाद
मीडिया मदारी हो गया
और तुम्हारी लाश पर खेल
चौबीस गुणा सात
दिन रात..
तुम्हारा बाप दुश्चरित्र था?
तुम्हारे अपने नौकर के साथ संबंध थे?
तुम्हारे एम.एम.एस बाजार में थे?
नौकर को नौकर के दोस्त ने मारा?
नौकर का दोस्त तुमपर निगाह रखता था?
यह प्राईड किलिंग थी!!
नहीं लस्ट किलिंग थी?
किलिंग का समाजशास्त्र अब समझा
परिभाषा सहित..
सुबह की चाय के साथ
दोपहरे के खाने में
शाम पकौडे के साथ सॉस की मानिंद
और रात नीली रौशनी के चलचित्र की तरह
एक एक घर में
तुम्हारी आत्मा की अस्मत नोच
निर्लिबास कर, सीधा पहुँचायी गयी तुम
क्या प्रेतों को चुल्लू भर पानी डुबाता है?
सी.बी.आई खबरे पढेगी दूरदर्शन पर
सरकारी अधिकारी, सरकारी टेलीविजन पर ही प्राधिकृत हैं
और पुलिस वाले घरों में सेट टॉप बॉक्स लगायेंगे
सी आई डी सुबह अखबार बाँटेगी
और तुम्हारा कातिल मीडिया ढूढ निकालेगा
कि यही तो उसका काम है..
मनोहर कहानियों का सर्कुलेशन गिर रहा है
बधाई हो कि बुद्धू बक्से ही में
अब सब कुछ है
सेक्स भी, हत्या भी, बलात्कार भी
और अधनंगी अभिनेत्रियों की मादक वीडियोज भी
फिर तुममे तो वो सारा कुछ था
जिससे मसाला बनता है
एक मासूम चेहरा, रहस्यमय मौत और कमसिनता
नाक तेज होती है मीडिया कर्मी और कुत्तों, दोनों की
और दोनों ही गजब के खोजी होते हैं..
क्रांति होने वाली है
कि तुम्हारा कातिल पकडा जायेगा
और देश की आर्थिक स्थिति पटरी पर आयेगी
मँहगायी कॉटन की साडी पहन लेगी
न्यूकलियर डील पर चिडिया बैठेगी
संसद में काम होने लगेंगे
रेलें दौडेंगी, पुल बनेंगे
कि देश थम गया है
राष्ट्र, तेरा न कोई सुध लेवा है
न खबर ही किसी को तेरी
बिकती तो दिखती हैं,
दीपिका, मेनका, उर्वषी
या अभागी आरूषी..
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
और रात नीली रौशनी के चलचित्र की तरह
एक एक घर में
तुम्हारी आत्मा की अस्मत नोच
निर्लिबास कर, सीधा पहुँचायी गयी तुम
क्या प्रेतों को चुल्लू भर पानी डुबाता है?
मैं कविता की क्या तारीफ करूं! इस सजीव चित्रण से दिल उदास हो जाता है , इस स्थीति पर मन ग्लानि से भर जाता है
इस मुद्दे पर पहले ही बहुत लोग बहुत कुछ कह चुके हैं| कविता में कविता के गुण नहीं हैं या कुछ नई बात न होने की वज़ह से ऐसा लग रहा है| मैं निराश हुआ|
राजीव जी, आप स्वयं भी ऐसी कई कविताएँ पहले लिख चुके हैं| अपने आप को न दोहराइए| आपकी कविता तो ऐसी होनी चाहिए जो आरुशी के याद न रहने पर भी याद रखी जा सके| |
मीडिया पर सामयिक व करारा व्यंग्य!
सटीक प्रहार है....
Samayik vishayon par likhne me aap se aage koi nahi. Par yahan gaurav se sahamat hoon. Kavita padhte vakt aisa lagta hai ki bas aapke man me jo aakrosh hai wah bahar aa rha hai. Vishay bahut samvedansheel hai par , kavita thodi aur tarash chahti hai.
alok
कविता का शीर्षक पढ़ते ही मैं समझ गया कि यह राजीव जी की रचना ही होगी क्योंकि सामायिक विषयों पर उनका कोई सानी नहीं है.बहुत ही सटीक तरीके से प्रहार किया.बधाई
आलोक सिंह "साहिल"
कविता एक acid की तरह हृदय पर गिरती है. राजीव जी से ऐसी ही सशक्त कविता की आशा की जा सकती है. कोई ज़माना था जब विद्या जैन हत्या काण्ड हुआ तो रातों रात pocket books में उपन्यास छाप गए. अब वोही माल 'सनसनी', 'वारदात' व crime reporter जैसे कार्य क्रम लूट रहे हैं. समाचार पढने वाले छोले बेचने वालों की तरह गला फाड़ कर चिल्लाते हैं - हिन्दोस्तान की सब से बड़ी murder mystry अब इससे ज्यादा मैं क्या कहूं. प्रेम सहजवाला
सही व्यंग है
कविता में आक्रोश और गुस्सा प्रस्फुटित हो रहा है
जिसकी वजह से कविता कहीं कहीं कविता की लीक से हटती प्रतीत हो रही है.. वस्तुस्थिति को देखते हुए यह आम बात है और वैसे भी मनभाव का निकास है..
सामायिक रचा है..
और भी संयोजन सम्भव था, तथापि अच्चा सृजन..
साधूवाद
कई बार मेरे मन में भी
मीडिया के नग्न बाजारीकरण पर
ऐसे ही भाव जगे
किन्तु लिखने का मन नहीं हुआ---
---मुझे लगा कि इससे तो हम भी प्रचारक बन जाएंगे।
---लेकिन किसी को तो आगे बढ़कर यह कहने की जरूरत है---कि यह क्या हो रहा है---?
---सच लिखा है--
राष्ट्र तेरा न कोई सुध लेवा है
न खबर ही किसी को तेरी
बिकती है तो दिखती है
दीपिका-मेनका-उर्वषी
या अभागी आरूषी
--आवश्यक व्यंग।
--देवेन्द्र पाण्डेय।
राजीव जी
सामयिक विषय पर फ़िर आपकी लेखनी ने कमल किया है-
क्रांति होने वाली है
कि तुम्हारा कातिल पकडा जायेगा
और देश की आर्थिक स्थिति पटरी पर आयेगी
मँहगायी कॉटन की साडी पहन लेगी
न्यूकलियर डील पर चिडिया बैथेगी
बहुत ही सुंदर और प्रभावी लिखा है. बधाई स्वीकारें.
बहुत खूब ! राजीव जी !!
आरुषी की आड़ में सामाजिक सच्चाई का यथार्थ चित्रण !!!
राष्ट्र तेरा न कोई सुध लेवा है
न खबर ही किसी को तेरी
बिकती है तो दिखती है
दीपिका-मेनका-उर्वषी
या अभागी आरूषी
शीर्षक देखते ही समझ आ गया था की यह राजीव जी ही है और अनुमान सही निकला
राष्ट्र तेरा न कोई सुध लेवा है
न खबर ही किसी को तेरी
बिकती है तो दिखती है
दीपिका-मेनका-उर्वषी
या अभागी आरूषी
बहुत ही सटीक लिखा है आपने |यही परम्परा बन चुकी है की राष्ट्र की किसी को प्रवाह नही है |आपका यह आक्रोश बिल्कुल उचित लगा |.....सीमा सचदेव
गौरव जी से सहमत हूँ भी और नहीं भी!सहमति इस बात के लिए की आपने इस बार निराश किया| यद्यपि कविता का शीर्षक पढ़ते ही मैं समझ गया था कि राजीव जी ही हैं पर कविता के मध्य में आते आते कुछ अच्छा नहीं लगा|ऐसा लगा कि बस भड़ास निकाली गयी है पर हर बार की तरह जो अंदर तक छेद दे वह बात इस बार गायब थी! हाँ अंत में कलम की वही धार फिर से दिखाई दी..
"देश की आर्थिक स्थिति पटरी पर आयेगी
मँहगायी कॉटन की साडी पहन लेगी
न्यूकलियर डील पर चिडिया बैठेगी
संसद में काम होने लगेंगे
रेलें दौडेंगी,पुल बनेंगे "
और गौरवजी से असहमति इस बात के लिए कि "आप ऐसा पहले भी लिख चुके हैं अपने आप को न दोहराइए"|वास्तव में मुझे तो यही बात अच्छी नहीं लगी कि आप खुद को दोहरा नहीं पाए! हर व्यक्ति की अपनी अलग शैली होती है,अपनी अलग पहचान! उसी को बार-बार देखना हमे अच्छा लगता है| इस तरह की कविताएँ जो थोड़ा सा व्यंग का पुट लिए हों और दिल की बजाए दिमाग़ पर वार करें यही तो राजीव जी की विशेषता है .. इसे कैसे छोड़ा जा सकता है ?
आशा है अगली बार पुराने तेवर देखने को मिलेंगे..!
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