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Friday, June 20, 2008

आँख में धूप है


सफेद सा
काला सुराख हो गया है दिल में
जो फूलकर कुप्पा हो जाता है
बेमौके,
जैसे किसी मुम्बइया मसाला फ़िल्म को देखते हुए
अचानक रो देना।

तुम हर बात में
ले आते हो रोना,
जैसे समुद्र ले आता है चाँद,
रात ले आती है भूख,
लड़की ले आती है पतंग,
लड़का ले आता है गोल-गोल चरखा,
हवाई जहाज ले जाता है आसमान,
रोटी ले जाती है ज़िन्दग़ी।
ओह!
सब उलझ गया,
कट गई पतंग,
कम्बख़्त आसमान...

आँख में धूप है,
मींच लो,
जल जाएगी आँख
या धूप।
धूप की रात कच्ची है
तभी खट्टी है,
भूसे में रख दो, पक जाएगी
या रो लो शहद
लम्बा-लम्बा।

पगले,
रोना अकर्मक है
और पेड़ पर नहीं लगती रात
कि तोड़कर खाई जा सके
आड़ू, चीकू, अमरूद की तरह।
बहुत साइकेट्रिस्ट हैं इस शहर में,
क्यों नहीं आती नींद ?

फ़िल्मी हीरोइनों की तरह
बेकारी बहुत ख़ूबसूरत होती है,
देखा जा सकता है उसके आर-पार,
सोचा जा सकता है कुछ भी
भद्दा, बेतुका, अटपटा।
सिखाया जा सकता है पतंग उड़ाना,
फाड़े जा सकते हैं पोस्टर,
फोड़ी जा सकती हैं सिर से दीवारें,
दीवाना होकर सड़कों पर भटका जा सकता है,
बिना रिज़र्वेशन करवाए
लावारिस होकर जाया जा सकता है
किसी भी शहर,
लाहौर, कलकत्ता, पूना
या बम्बई भी।

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10 कविताप्रेमियों का कहना है :

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

आंख मे धूप है
मींच लो
जल जाएगी
आंख-----
आंख-----
और आंख------
--देवेन्द्र पाण्डेय।

Sajeev का कहना है कि -

मुंबई कब चलोगे ?

Harihar का कहना है कि -

फ़िल्मी हीरोइनों की तरह
बेकारी बहुत ख़ूबसूरत होती है,
देखा जा सकता है उसके आर-पार,
सोचा जा सकता है कुछ भी
भद्दा, बेतुका, अटपटा।

वाह गौरव जी! इस बार भी आपने
कमाल कर दिया !

करण समस्तीपुरी का कहना है कि -

जैसे समुद्र ले आता है चाँद,
रात ले आती है भूख,
लड़की ले आती है पतंग,
लड़का ले आता है गोल-गोल चरखा,
हवाई जहाज ले जाता है आसमान,
रोटी ले जाती है ज़िन्दग़ी।
वाह गौरव भाई वाह !!!
काश मैं भी ऐसे उपमानों और बिम्बों का सृजन कर पाता ....

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

agजैसे समुद्र ले आता है चाँद,
रात ले आती है भूख,
लड़की ले आती है पतंग,
लड़का ले आता है गोल-गोल चरखा,
हवाई जहाज ले जाता है आसमान,
रोटी ले जाती है ज़िन्दग़ी।
ओह!
सब उलझ गया,
कट गई पतंग,
कम्बख़्त आसमान...

आँख में धूप है,
मींच लो,
जल जाएगी आँख
या धूप।
धूप की रात कच्ची है
तभी खट्टी है,
भूसे में रख दो, पक जाएगी
या रो लो शहद
लम्बा-लम्बा।

वाह बडी पेचीदा कविता लिखी है
पतंग के पेचे भी और डोर की उलझन भी..

बधाई गौरव जी..

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी का कहना है कि -

जैसे समुद्र ले आता है चाँद,
रात ले आती है भूख,
लड़की ले आती है पतंग,
लड़का ले आता है गोल-गोल चरखा,
हवाई जहाज ले जाता है आसमान,
रोटी ले जाती है ज़िन्दग़ी।
क्या बात कही है गौरव जी अनुपम उपमानों का प्रयोग है. बधाई!

Kavi Kulwant का कहना है कि -

क्या बात है गौरव जी... वाह..

Anonymous का कहना है कि -

कविता पढने के बाद जब मैं कर्षर को निचे ला रहा था उसी समय हरिहर झा साहब की प्रतिक्रिया नजर से टकराई,वाह गौरव भाई,कमाल कर दिया.
मैं तो बस उनसे यही जानना चाहता हूँ कि,ये कमाल कब नहीं करते.क्या गौरव भाई,कभी तो दूसरों को भी मौका दे दिया करो.हहहहहः...
आलोक सिंह "साहिल"

सीमा सचदेव का कहना है कि -

बेकारी बहुत ख़ूबसूरत होती है,
देखा जा सकता है उसके आर-पार,
गौरव जी आपकी हर रचना में कुछ न कुछ ऐसा होता है जो सोचने पर मजबूर कर देता है |कितनी सहजता से आप इतनी बड़ी बात कह देते है

Gaurav Shukla का कहना है कि -

वाह, जबर्दस्त बिम्ब
सुन्दर सफल लेखन
बहुत बधाई

गौरव

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