फटाफट (25 नई पोस्ट):

Friday, June 20, 2008

औरों के ग़म में रोकर एक बार देखिये


आदम की ज़िन्दगी की रफ़्तार देखिये
इन्सानियत पे हावी कारोबार देखिये

रिश्तों की कब्र खोदे बैठे हैं लोग सारे
फिर किस तरह टिकेंगे परिवार देखिये

सियासत के अंधेरों में डूबी है कौम सारी
सूरज को रोशनी का तलबग़ार देखिये

भेड़ों पे करने शाषन आये हैं भेड़िये भी
वोटों की पेटियों का चमत्कार देखिये

हँस उठेगी ज़िंदगी यूँ खुद-ब-खुद ’अजय’
औरों के ग़म में रोकर एक बार देखिये

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

17 कविताप्रेमियों का कहना है :

Harihar का कहना है कि -

भेड़ों पे करने शासन आये हैं भेड़िये भी
वोटों की पेटियों का चमत्कार देखिये

क्या बात है अजय जी !

Anonymous का कहना है कि -

वाह,वाह! अजय जी,आपने क्या खूब जिंदगी का फलसफा दिया.मजा आ गया.
आलोक सिंह "साहिल"

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

क्या गजल है आपकी हर-एक शेर देखिये
नजरें गढा के देखिये, नज़रें न फेर देखिये

कब्रो को दिया जोडने क्या आयेगा कोई कभी
एक क्षण को यह भी सोचकर रिस्ते बगैर देखिये

क्या अँधेरो ने कभी भी कोई पथ उजला किया
करके जरा एक बार उस सूरज से बैर देखिये

कब तक मुखौटा ले चलेंगे भेडिये इस भेष में
दिन देर है अन्धेर नहीं होगी सवेर देखिये

हँस उठेगी जिन्दगी, लेकिन हँसाना है हमें..
हर होठ पर हर उम्र में हँसती कनेर देखिये

अजय जी पता नहीं उपर की पंक्तियां कैसी होंगी पर
आपकी गजल देखकर लिख तो दिया ही है
अब दो बार बधाई स्वीकार करो
एक तो आपकी सुन्दर गजल के लिये
दूसरी आपकी गजल पढने के बाद मेरी उंगलियाँ जो
चल पड़ी आपके पद-चिन्हों पर..
भले ही गजल बनी हो ना बनी हो पर हिन्दी टंकण का आनन्द तो आया ही और साथ साथ टिप्पणी भी हो गयी...

Anonymous का कहना है कि -

sundar rachana.badhai ho.

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

भेंड़ों पे करने शासन आये हैं भेंड़िये भी
वोटों की पेटियों का चमत्कार देखिए
वाह! अच्छी गजल का अच्छा शेर।
----यह शेर पढ़कर --श्री हरिशंकर परसाई- की कहानी
-भेड़ें और भेड़िये- याद आ गई। कहानी के अंत में -परसाई जी-
लिखतें हैं कि-----------------------------
----और पंचायत में भेड़ियों ने भेड़ों की भलाई के लिए यह कानून बनाया---
हर भेड़िये को सवेरे नाश्ते़ के लिए भेंड़ का एक मुलायम बच्चा दिया जाये, दोपहर में एक पूरी भेंड़ तथा शाम को स्वास्थ्य के ख़याल से कम खाना चाहिए, इसलिए आधी भेंड़ दी जाये।
--देवेन्द्र पाण्डेय।

mehek का कहना है कि -

har sher sahi kissa bayan karta hai,bahut hi khubsurat gazal badhai

Unknown का कहना है कि -

अजय जी
बहुत ही बढिया गजल।
काफिया 'आर' और रदीफ 'देखिये' है बहर के बारे मे मुझे जानकारी नही है
आपके काफिया और रदीफ मे कोई कमी नही है।
अरे वाह आपने तो मकते मे अपना नाम भी डाला है।
सुमित भारद्वाज

Unknown का कहना है कि -

सामयिक ..... शुभकामना अजय जी

Shailesh Jamloki का कहना है कि -

अजय जी
पहली बार पढने पर आपकी ग़ज़ल दिल पर उतर गयी.. ग़ज़ल की परिभाषा पर सही बैठ ती हुई..
बस बहर समझने के लिए आप से सुन ना पड़ेगा..

इसके अलावा मै कुछ और बाते कहना चाहूँगा
१) विराम प्रयोग लुप्त है
२) अंतिम पंक्ति शीर्षक बन गयी .. अच्छा लग रहा है..
२) सियासत के अंधेरों में डूबी है कौम सारी
सूरज को रोशनी का तलबग़ार देखिये

भेड़ों पे करने शाषन आये हैं भेड़िये भी
वोटों की पेटियों का चमत्कार देखिये
इन शेरो का अर्थ समझने मै दिक्कत हुई.. मै कुछ कुछ समझा हू.. परन्तु शायद सही नहीं हू..

सुन्दर रचना के लिए बधाई

सादर
शैलेश

Sajeev का कहना है कि -

वाह बहुत दिनों में आपकी ग़ज़ल मिली पढने को....बहुत बढ़िया

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी का कहना है कि -

हँस उठेगी ज़िंदगी यूँ खुद-ब-खुद ’अजय’
औरों के ग़म में रोकर एक बार देखिये
gajal ke silp ke bare me to mujhe janakaree nahee bhav bahut hi sundar lage.

rajesh singh kshatri का कहना है कि -

अच्‍छी रचना है,बधाई

व्‍यंग्‍य-बाण का कहना है कि -

औरों के गम में... अच्‍छा लगा पढकर,ऐसे ही लिखते रहें।

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

आदम की ज़िन्दगी की रफ़्तार देखिये
इन्सानियत पे हावी कारोबार देखिये

भेड़ों पे करने शाषन आये हैं भेड़िये भी
वोटों की पेटियों का चमत्कार देखिये

अजय जी आपकी दक्ष कलम से बेहतरीन गज़ल।


***राजीव रंजन प्रसाद

Anonymous का कहना है कि -

ajay ji

bahut khub.hr sher umda hai .

सीमा सचदेव का कहना है कि -

भेड़ों पे करने शाषन आये हैं भेड़िये भी
वोटों की पेटियों का चमत्कार देखिये

हँस उठेगी ज़िंदगी यूँ खुद-ब-खुद ’अजय’
औरों के ग़म में रोकर एक बार देखिये
सच्च कहा आपने किसी के गम अनुभव करके तो देखो ,वास्तविक शान्ति का अनुभव होता है |

करण समस्तीपुरी का कहना है कि -

सियासत के अंधेरों में डूबी है कौम सारी
सूरज को रोशनी का तलबग़ार देखिये ....

शायरी में इस से अच्छा सामाजिक सरोकार और क्या हो सकता है ????
ग़ज़ल की परिभाषा पर पूरी तरह खरी !!!!

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)