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Sunday, June 01, 2008

ये टहनियाँ ....


रोज देखती थी
अपने यहाँ बढ़ता नारियल के पेड़ को
अपने ही छाँव में पलता, बढ़ता ....

उसकी लम्बी-लम्बी टहनियाँ कुछ ढूँढती-ढूँढती
सदियों के एकाकीपन को छू लेती थीं ...
शायद समझती थीं वे
मूल्य बोध और कर्तव्यों से आभूषित नारी में
रोज कराहते ,मिटते ,मरते , बढ़ते शब्द के भूखेपन को ....
बचपन से जवानी और जवानी में ही बुढापे का एहसास
बस बीच में कुछ उसके हिस्से का अनमोल पल
एक अल्पायु लालफूल का पेड़
एक चंचल समर्पित नदी
और फ़िर वही परिचित शून्य अन्धकार ....

देख रही थीं वे
शुभ मूहूर्त में गृह प्रवेश
साथ में दीवारों की मजबूती का आदेश
एक व परिचित प्रिय कोना ढूँढने में विवश .....

और नारी ...
देख रही थी
अनेक उपेक्षा से जिद्दी होकर
लम्बी होती जा रही टहनियों को
जिनके बीच से होकर हवा
अब भी पूरे कमरे में
जहरीली घुटन छोड़ जाती है ...

सुनीता यादव

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9 कविताप्रेमियों का कहना है :

Harihar का कहना है कि -

मूल्य बोध और कर्तव्यों से आभूषित नारी में
रोज कराहते ,मिटते ,मरते , बढ़ते शब्द के भुखेपन को ....
बचपन से जवानी और जवानी में ही बुढापे का एहसास
बस बीच में कुछ उसके हिस्से का अनमोल पल
एक अल्पायु लालफूल का पेड़
एक चंचल समर्पित नदी
और फ़िर वही परिचित शून्य अन्धकार ....
...

जिनके बीच से होकर हवा
अब भी पूरे कमरे में
जहरीली घुटन छोड़ जाती है ...
बेहतरीन कविता! सुनिता जी

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

बहुत गहरी रचना है |

-- अवनीश तिवारी

सीमा सचदेव का कहना है कि -

और नारी ...
देख रही थी
अनेक उपेक्षा से जिद्दी होकर
लम्बी होती जा रही टहनियों को
जिनके बीच से होकर हवा
अब भी पूरे कमरे में
जहरीली घुटन छोड़ जाती है ...
सुनीता जी यह आखिरी पंक्तियाँ टू बहुत ही गहरा भाव व्यक्त करती है | बधाई

Anonymous का कहना है कि -

अनेक उपेक्षा से जिद्दी होकर
लम्बी होती जा रही टहनियों को
जिनके बीच से होकर हवा
अब भी पूरे कमरे में
जहरीली घुटन छोड़ जाती है ...
जिद्दी होकर स्वार्थ साधना से केवल जहरीले विकास का कितना उत्तम चित्रण किया गया है.
सुनीताजी इतनी उत्तम कविता देने के लिये आभार!

Anonymous का कहना है कि -

सुनीता जी,अति उत्तम,आनंद आ गया.
आलोक सिंह "साहिल"

Anonymous का कहना है कि -

bahut hi gehri baat bayan huyi hai,kuch kehne ko shesh nahi,dil tak chu gayi kavita,bahut badhai

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

अद्भुत रचना.. गहन मनन

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

और नारी ...
देख रही थी
अनेक उपेक्षा से जिद्दी होकर
लम्बी होती जा रही टहनियों को
जिनके बीच से होकर हवा
अब भी पूरे कमरे में
जहरीली घुटन छोड़ जाती है ...

गहरी और गंभीर रचना।

***राजीव रंजन प्रसाद

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -
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