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Monday, June 02, 2008

कहते-कहते....


चलते-चलते नदी थम गई
थक गई या राह ही रूक गया
कहते हैं अपनी मंजिल पा गई
जो भी हो बस समंदर रह गया
चलते-चलते.....

जलते-जलते दिया बुझ गया
थक गया या हवा से झुक गया
कहते हैं अपनी उम्र जी गया
जो भी हो बस अंधेरा रह गया
जलते-जलते...

हंसते-हंसते आंसू आ गए
थी कमी कुछ या दिल भर गया
कहते हैं बीते दिन आ गए
जो भी हो गुजर ही गया
हंसते-हंसते...

कहते-कहते जुबां रूक गई
डर गई या कुछ भूल गई
कहते हैं इसकी फितरत यही
जो भी हो बस खामोशी रह गई
कहते-कहते....

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9 कविताप्रेमियों का कहना है :

बालकिशन का कहना है कि -

"कहते-कहते जुबां रूक गई
डर गई या कुछ भूल गई
कहते हैं इसकी फितरत यही
जो भी हो बस खामोशी रह गई
कहते-कहते...."
अद्भुत!बेहद उम्दा लेखन!

सीमा सचदेव का कहना है कि -

हंसते-हंसते आंसू आ गए
थी कमी कुछ या दिल भर गया
कहते हैं बीते दिन आ गए
जो भी हो गुजर ही गया
हंसते-हंसते...
बहुत ही गहरा भाव व्यक्त करती है आपकी कविता |बधाई

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

हंसते-हंसते आंसू आ गए
थी कमी कुछ या दिल भर गया
कहते हैं बीते दिन आ गए
जो भी हो गुजर ही गया
हंसते-हंसते...

क्या बात है अभिषेक जी, एक अलग ही अन्दाज की कविता अनौखे शिल्प में..

सुन्दर भावनात्मक प्रतिबिम्ब उभर रहे हैं शब्दों में

बधाई स्वीकारे..

Anonymous का कहना है कि -

kehte kehte juban ruk gayi,jaha chahiye wahi uski fitrat badal jati hai,bahut sahi kaha,alag si khubsurat rachana badhai.

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

कहते-कहते जुबां रूक गई
डर गई या कुछ भूल गई
कहते हैं इसकी फितरत यही
जो भी हो बस खामोशी रह गई
कहते-कहते....

बेहद स्पर्श करने वाली अनुभूतियाँ हैं, बेहतरीन रचना।

***राजीव रंजन प्रसाद

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

मेरे लिए आपकी बेहतरीन रचना है |

अवनीश तिवारी

Dr. sunita yadav का कहना है कि -

कहते-कहते जुबां रूक गई
डर गई या कुछ भूल गई
कहते हैं इसकी फितरत यही
जो भी हो बस खामोशी रह गई
कहते-कहते....

दिल को छूँ गई....
सुनीता

आलोक उपाध्याय का कहना है कि -

Decent

mona का कहना है कि -

जलते-जलते दिया बुझ गया
थक गया या हवा से झुक गया
कहते हैं अपनी उम्र जी गया
जो भी हो बस अंधेरा रह गया
जलते-जलते...

"थक गया या हवा से झुक गया" very beautiful lines but diye ko jala kar rakhne ki bharpoor koshish karne chahiye uske thakne se ya jyada jhukne se toh jeevan ka anand uthana mushkil ho jayega.


हंसते-हंसते आंसू आ गए
थी कमी कुछ या दिल भर गया
कहते हैं बीते दिन आ गए
जो भी हो गुजर ही गया
हंसते-हंसते...

Insaan ki hansi ke peche chopi gharaye ko darshaate yeh panktiyaan ache lagi.

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