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Saturday, May 31, 2008

अनेकता में एकता



अनेकता में एकता
मेरे भारत की विशेषता
यही पाठ पढ़ा-
और यही पढ़ाया
किन्तु प्रत्यक्ष में
एकता का
कहीं दर्शन ना पाया

कभी धर्म के नाम पर
खुले आम घर जले
मन्दिर मस्ज़िद टूटे
लाखों बर्बाद हो गए,
फिर भी हमने…….
धर्म निरपेक्षिता की
डींगे हाँकी….

प्रान्तीयता के आधार पर
देश के सर्वोच्च पद का निर्धारण
राष्ट्रीयता के हृदय पर
एक बड़ा आघात
और सारा देश चुप…..
पद का सही उम्मीदवार
अपमान सह गया
और राष्ट्र मूक रह गया

और आज फिर..
एक ओर……..
प्रान्तीयता की आवाज़
कानों में शीशा डाल रही है
देश के हर नागरिक को
किंकर्तव्य विमूढ़ बना रही है
आशा की किरणें बहुत
क्षीण होती जा रही हैं
और हम गर्व से
राष्ट्रीयता का…..
राग आलाप रहे हैं
डींगें हाँक रहे हैं

दूसरी ओर……
आरक्षण का राक्षस
अपनी बाँहें फैला रहा है
और सारा देश विवशता से
कैद में कसमसा रहा है
यह आरक्षण की माँग है या
सुरसा का मुँह....
जो निरन्तर....
बढ़ता ही जा रहा है
कोई भी आश्वासन
काम नहीं आ रहा है।

भारत माता शर्मिन्दा है
अपनी सन्तान के
कुकृत्यों पर
उसका अंग-अंग
पीड़ा से कराह रहा है
ना जाने कौन ये
जहर फैला रहा है
कोई भी उपाय
काम नहीं आ रहा है

मेरे देश की आशाओं
देश को यूँ ना जलाओ
माँ के घावों पर
थोड़ा सा मरहम भी लगाओ
हम सब एक हैं
ये प्रतिज्ञा दोहराओ
दे दो विश्वास
जो खोता जा रहा है
देश के हर कोने से
यही आग्रह
यही स्वर आ रहा है

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15 कविताप्रेमियों का कहना है :

सीमा सचदेव का कहना है कि -

भारत माता शर्मिन्दा है
अपनी सन्तान के
कुकृत्यों पर
उसका अंग-अंग
पीड़ा से कराह रहा है
ना जाने कौन ये
जहर फैला रहा है
कोई भी उपाय
काम नहीं आ रहा है
बहुत अच्छे शोभा जी |भारत की आज की समस्याओं का आपने बखूबी चित्रण किया है

Anonymous का कहना है कि -

अपने देश की समस्याओं पर paini निगाह..
alok singh "sahil"

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

दूसरी ओर……
आरक्षण का राक्षस
अपनी बाँहें फैला रहा है
और सारा देश विवशता से
कैद में कसमसा रहा है
यह आरक्षण की माँग है या
सुरसा का मुँह....
जो निरन्तर....
बढ़ता ही जा रहा है
कोई भी आश्वासन
काम नहीं आ रहा है।

वाह.. सटीक रचना ..

बधाई

Unknown का कहना है कि -

शुरूवात की दो लाइन पढने पर लगा कि कविता मे व्यंग्य होगा, पर पूरी कविता पढने पर भाव समझ आये
बहुत ही सुन्दर रचना लिखी आपने..

Unknown का कहना है कि -

सुमित भारद्वाज

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

कविता तीखे स्टेट्मेंट्स देती है जो रचना को सशक्तता प्रदान करते हैं। सच को लिखने में जो तलखी होती है वह आपके शब्दों में झलक भी रही है। आपकी लीक से हट कर यह रचना है, बधाई स्वीकारें...

***राजीव रंजन प्रसाद

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

good one,


AVaneesh

mehek का कहना है कि -

bilkul sahi chitran kiya hai shobha ji,na jane saat rangon ko ek saath bandh ke rakhnewala hamara desh phir kab gagan mein bhikhare ga,bahut hi sundar rachana,bahut badhai

Alpana Verma का कहना है कि -

samayik kavita..
apna sandesh dene mein safal rahi..

badhayee..

रंजू भाटिया का कहना है कि -

देश की सिथ्ती को बताती अच्छी रचना आज की समस्याओं का अच्छा चित्रण किया है !1

Unknown का कहना है कि -

शोभा जी

स्पंदित कर देने वाली सामयिक रचना ..... शुभकामना

Unknown का कहना है कि -

"आरक्षण का राक्षस अपनी बाँहें फैला रहा है ..........", कितनी सही बात कही है आपने. धन्त्वाद मेरे ब्लाग पर आने के लिए और यह टिप्पणी करने के लिए.

Mohinder56 का कहना है कि -

शोभा जी,

एक कटू सत्य को उजागर करती व प्रशन्सनीय आग्रह भरी रचना के लिये बधाई

Dr. sunita yadav का कहना है कि -

बहुत अच्छी कविता है शोभा जी ..सामयिक दौर की हवा से बचकर शब्दों को निकल जाने नहीं दिया ...सुंदर प्रस्तुति ...........
सुनीता

Unknown का कहना है कि -

Waw very nice

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