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Tuesday, May 27, 2008

मन के आँगन में...


अंधियारा चप्पल उतार कर मन के आँगन में आता है।

तुमने मेरी गुडिया तोडी, मैनें बालू का घर तोडा
तुमने मेरा दामन छोडा, मैंने अपना दामन छोडा
तुम मुझसे क्यों रूठे जानम, मैं ही टूटा, मैनें तोडा
मुझको मुझसे ही शिकवा है, तुमसे मेरा क्या नाता है
अंधियारा चप्पल उतार कर मन के आँगन में आता है।

पत्ता खडके, कोयल बोले, निर्झर झरता या सावन हो
मोती टूटे, यह मन बिखरे, जैसे काँच काँच कंगन हो
विप्लव ही पर बादल बरसे, जैसे यह मेरा जीवन हो
यादों का सम्मोहन फिर फिर सोंधी मिट्टी महकाता है
अंधियारा चप्पल उतार कर मन के आँगन में आता है।

फर्क नहीं पडता इससे कि आँखें हैं या दिल रोता है
सागर कितना खारा देखो, ज़ार ज़ार साहिल रोता है
मैनें अपना कत्ल किया फिर देखा आखिर क्या होता है
सात आसमानों के उपर भी क्या दिलबर तडपाता है
अंधियारा चप्पल उतार कर मन के आँगन में आता है।

***राजीव रंजन प्रसाद
30.10.2000

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20 कविताप्रेमियों का कहना है :

रंजू भाटिया का कहना है कि -

फर्क नहीं पडता इससे कि आँखें हैं या दिल रोता है
सागर कितना खारा देखो, ज़ार ज़ार साहिल रोता है
मैनें अपना कत्ल किया फिर देखा आखिर क्या होता है
सात आसमानों के उपर भी क्या दिलबर तडपाता है
अंधियारा चप्पल उतार कर मन के आँगन में आता है।

बेहद खूबसूरत लिखा है राजीव जी आपने ...यह पंक्तियाँ विशेष रूप से बहुत अच्छी लगी ..

Anonymous का कहना है कि -

sunder rachna

Mohinder56 का कहना है कि -

राजीव जी,

यह दिल ही मानव का बेरी है..कभी कभी बडी से बडी बात को झटके से अलग कर देता है और कभी कभी छोटी छोटी बातो के लिये तडफ़ उठता है..और अगर वह तडफ़ अपने प्रियतम के प्रति हो तो बस न दिल को चैना.. न रात को करार है..और सब तरह अंधकार ही अंधकार और जीवन व्यर्थ लगने लगता है... इस भाव को आपने अपनी रचना में बखूबी उतारा है... बधाई

Kavi Kulwant का कहना है कि -

बहुत अच्छे

Alpana Verma का कहना है कि -

विप्लव ही पर बादल बरसे, जैसे यह मेरा जीवन हो
यादों का सम्मोहन फिर फिर सोंधी मिट्टी महकाता है
अंधियारा चप्पल उतार कर मन के आँगन में आता है।


भावों की अच्छी अभिवयक्ति लगी...बधाई

रंजू भाटिया का कहना है कि -

जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई राजीव जी :)

अमिताभ मीत का कहना है कि -

वाह साहब ! बहुत ही उम्दा रचना है. भाव भी, भाषा भी. बधाई स्वीकारें.

mamta का कहना है कि -

राजीव जी जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई।

बहुत खूब।

Divya Prakash का कहना है कि -

भाव बहुत अच्छे हैं लेकिन कहीं कहीं गेयता टूट रही राजीव जी |
सूर्य की ३६ परिक्र्माएं पूरी करने पर हार्दिक शुभकामनाएं!!

शोभा का कहना है कि -

राजीव जी
बहुत सशक्त पंक्तियाँ हैं-
फर्क नहीं पडता इससे कि आँखें हैं या दिल रोता है
सागर कितना खारा देखो, ज़ार ज़ार साहिल रोता है
मैनें अपना कत्ल किया फिर देखा आखिर क्या होता है
सात आसमानों के उपर भी क्या दिलबर तडपाता है
बस ये नहीं समझ आया कि अँधेरा चप्पल कबसे पहनने लगा। कृपया स्पष्ट करें।

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

शोभा जी,

"चप्पल उतारने" का बिम्ब मैंने "दबे पाँव आने" के लिये प्रयोग में लाया है।

***राजीव रंजन प्रसाद

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

------सशक्त रचना-सार्थक प्रयोग ।
------अंधियारा चप्पल उतार कर मन के आँगन में आता है।--
-------इस पंक्ति ने मन मोह लिया।--देवेन्द्र पाण्डेय।

Anonymous का कहना है कि -

जन्म दिवस की शुभकामना समेत प्यारी रचना के लिए शुभकामना.
आलोक सिंह "साहिल"

Rama का कहना है कि -

डा. रमा द्विवेदीsaid...

राजीव जी,

जन्म दिन की अनन्त शुभकामनाएं...

आपकी रचना बहुत अच्छी लगी पर ’चप्पल’ शब्द कुछ खटक रहा है...इससे तो बेहतर होता कि आप मुहावरा ही प्रयोग में ले लेते....क्या ऐसा नहीं लिख सकते...’अंधियारा दबे पांव मन के आंगन में आता है" ..यह एक सुझाव है कृपया अन्यथा न लें...

Pooja Anil का कहना है कि -

राजीव जी ,

जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाएं .

कविता में चप्पल उतारने की बात बड़ी अच्छी लगी , बहुत ही अलग सा प्रयोग है .

तुमने मेरी गुडिया तोडी, मैनें बालू का घर तोडा
तुमने मेरा दामन छोडा, मैंने अपना दामन छोडा
तुम मुझसे क्यों रूठे जानम, मैं ही टूटा, मैनें तोडा
मुझको मुझसे ही शिकवा है, तुमसे मेरा क्या नाता है.

इन पंक्तियों में बचपन का प्यार झलकता है , जो मासूम होने के साथ साथ नाराज़ होना भी जानता है .
अति सुंदर

आप स्वयं किसी भी रचना के लिए बेहद अर्थपूर्ण एवं सटीक टिप्पणी लिखते हैं , आपकी रचना के लिए टिप्पणी लिखना मुझे थोड़ा दुष्कर लगता है .

एक और बात जो मुझे आपकी रचनाओं में अच्छी लगती है वो है रचना का रचना काल लिखना .

^^पूजा अनिल

Avanish Gautam का कहना है कि -

राजीव जी विलम्ब के लिये क्षमा चाहता हूँ..जन्मदिन की शुभकामनाएँ स्वीकार कीजिये.

शोभा का कहना है कि -

राजीव जी
एकदम नया बिम्ब लिया है। अच्छा प्रयोग लगा।

सीमा सचदेव का कहना है कि -

फर्क नहीं पडता इससे कि आँखें हैं या दिल रोता है
सागर कितना खारा देखो, ज़ार ज़ार साहिल रोता
राजीव जी आपक कविता का अंदाज और भाव मन को छु जाता है

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

राजीव जी,
पहली लाइन से ही मैं वाह-वाह करता रह गया-
"अंधियारा चप्पल उतार कर मन के आँगन में आता है।"
कुछ मिनटों तक निहारा, बार-बार बोला और फिर आगे बढ़ा। जो असर ये पंक्ति कर गई वो पूरी कविता में रहा।
जन्मदिन की बधाई स्वीकारें।

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

चप्पल उतारना प्रयोग पसंद आया। पहले छंद में भी एक-दो भावों में अनूठापन दिखा। राजीव की कविता कही जा सकती है। बधाई।

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