जब भूकंप ने उत्पात मचाया था ,
सामुद्रिक तूफ़ान ने तबाही मचाई थी ,
सुनामी ने कहर बरसाया था ,
तबाही के इस मंजर में
किसी ने यह न पूछा था
तेरा धर्म क्या है
उमड़ पड़ा था भारत सहायता के लिए
जिनका सम्बन्ध ह्रदय से रहा, बुद्धि से नहीं
भावना से रहा, तर्क से नहीं
भारतीयता का परिचय देकर
उसने मानवता का संदेश दिया
दया,सेवा,कर्तव्य को धर्म बतलाया .......
कभी मुसलमान बनकर
अमरनाथ - यात्रा में फँसे हिन्दुओं को बचाया था ,
कभी दंगों के समय मुसलमान को शरण दिया था ,
कभी एक होकर दुश्मनों को भगाया भी था
वह आज ......?
चाहकर भी स्वार्थी , कट्टर नेता के
धर्म को न बदल पाया
जो स्वार्थ सिद्धि के लिए
खून की होलियाँ रचते हैं ,
भाषा व प्रांत के नाम पर लाठियाँ बरसाते हैं ,
भाई को भाई से लड़ाते हैं,
अखंडता को लहुलुहान करते हैं ,
एकता पर चोट पहुंचाते हैं ......
विनती है 'भारत' का
भारत में भारतीय बनें ,
भावात्मक एकता को बनाए रखें ,
प्रेम , अहिंसा के मार्ग पर बढ़कर
विश्व शान्ति के लिए मंगल कामना करें
विश्व शान्ति के लिए मंगल कामना करें ....
सुनीता यादव
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
पहले छंद की इन पंक्तियों मे -
किसी ने यह न पूछा था
तेरा धर्म क्या है
यदि धर्म के स्थान पर सम्प्रदाय शब्द हो तो कैसा होगा ?
रचना दमदार है | सन्दर्भ सुंदर है |
-- अवनीश तिवारी
तबाही के इस मंजर में
किसी ने यह न पूछा था
तेरा धर्म क्या है
अवनीश जी, मेरे विचार से
कवि शब्दों का प्रयोग प्रचलित अर्थों में करता है
यहां हिन्दू-मुसलमान के अर्थ में भी
धर्म शब्द बराबर है । दार्शनिक अर्थ में अवश्य धर्म
व सम्प्रदाय को अलग किया जा सकता है
अच्छी कविता है. भारतीय बनें, बहुत सुंदर बात है. पर भारतीय बनने की शुरुआत कहाँ से होगी, जरा इस पर भी प्रकाश डालें.
विनती है 'भारत' का
भारत में भारतीय बनें ,
भावात्मक एकता को बनाए रखें ,
प्रेम , अहिंसा के मार्ग पर बढ़कर
विश्व शान्ति के लिए मंगल कामना करें
विश्व शान्ति के लिए मंगल कामना करें ..
बहुत खूब लिखा है सुनीता जी ..
सुनाता जी,
रचना अपनी बात कह पाने में सक्षम है तथापि काव्यात्मकता बहुत प्रभावी नहीं बन पडी है अपितु एक ही बात को कहने के लिये विश्लेषण की कोशिश नें संभाषण बना दिया है।
***राजीव रंजन प्रसाद
खूबसूरत
सुनीता जी ,
बहुत ही देश प्रेम भरे भावों के साथ लिखी गयी रचना अच्छी लगी , परन्तु इसमें कविता का प्रवाह नहीं दिखा , प्रथम पंक्तियाँ प्रभावित करती हैं
जब भूकंप ने उत्पात मचाया था ,
सामुद्रिक तूफ़ान ने तबाही मचाई थी ,
सुनामी ने कहर बरसाया था ,
तबाही के इस मंजर में
किसी ने यह न पूछा था
तेरा धर्म क्या है
शुभकामनाएं
^^पूजा अनिल
उपदेशात्मक कविताएं अक्सर किसी को पसंद नहीं आतीं।
बात बहुत बार कही जा चुकी है, कहना ही था तो बेहतर तरीके से कहा जाना चाहिए था।
बार बार यही बातें दोहराई जाती है लेकिन प्रभाव कही नही दिखता ,आपने भी कहने का प्रयास किया उसमे आकर्षण नही है
विनती है 'भारत' का
भारत में भारतीय बनें ,
भावात्मक एकता को बनाए रखें ,
प्रेम , अहिंसा के मार्ग पर बढ़कर
विश्व शान्ति के लिए मंगल कामना करें
बहुत सुंदर
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