ज़िंदगी हमने क्या क्या न देखा
सच को मौत से गले मिलते देखा
है कौन यहाँ जो करता नही गुनाह
फ़िर भी हर किसी को खुदा सा देखा
हैं ख़ुद ही बेघर महल बनाने वाले
अजब यह नज़ारा बार बार देखा
गुम है बचपन भीख की कटोरी में
यह दस्तूर भी जग का निराला देखा
मुस्कान की सीमा पर क़ैद है आंसू
सब सपनों को क्यों अधूरा सा देखा
ज़िंदगी हमने क्या क्या न देखा
हर रूप में सब को तन्हा देखा
सच को मौत से गले मिलते देखा
है कौन यहाँ जो करता नही गुनाह
फ़िर भी हर किसी को खुदा सा देखा
हैं ख़ुद ही बेघर महल बनाने वाले
अजब यह नज़ारा बार बार देखा
गुम है बचपन भीख की कटोरी में
यह दस्तूर भी जग का निराला देखा
मुस्कान की सीमा पर क़ैद है आंसू
सब सपनों को क्यों अधूरा सा देखा
ज़िंदगी हमने क्या क्या न देखा
हर रूप में सब को तन्हा देखा
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33 कविताप्रेमियों का कहना है :
बनना चाहे थे मर्द नामर्द हो गए!
सवाल ज़िंदगी के गर्म वे सर्द हो गए!!
ललकार थी होनी होठों पे
लालिमा से वे अब लाल हो गए!
तलवार थी होनी हाथों पे
चूडियों के श्रृंगार हो गए!!
चाहते थे जीतना समर जीवन के हरम में कैद हो गए!
आज के युवा युवतियों में तब्दील हो गए!!
हिन्द युग्म में प्रकाशित होने वाली प्रत्येक गजल में सर्वप्रथम यूनीकवि गजल शिक्षक की टिप्पणी अ़ंकित हो तो गजल समझना और आसान हो जाय।
बेहद खूबसूरत नज्में, उम्दा भाव है।
बधाई स्वीकार कीजिए
रंजू जी ! आप तो छलांग लगा रही हैं.. मुबारक हो ! बहुत अच्छी गज़ल
bahut achha likha hai
are wah ranju ji aapne to kaafi acha likha hi kya baat hai ab aap ese rachnaye likh rahi hai ki jisko koi bi apne example ke roop mey pesh kar sakta hai
bahut ache ranju ji cong.
mene apki pahle wali rachnaye bi padi lekin koi comment nahi de saka dene ki koshish kaafi ki but ye comment wali window hi open nahi hoti ti tak haar ke mey is sirf pad kar reh jata ta
ek baar fir se badhai aapko
रंजू जी आपने इसमें कौन सी बहर ली है?
पहली नज़र में देखा तो रदीफ काफ़िया था.. लेकिन बहर नही है..गज़ल कहना गलत होगा.. भाव अच्छे हैं.. बहर में लिखतीं तो गज़ल हो जाती..
नमस्कार जी
आपकी रचना पड़ी लकिन इतनी खुशी नही हुई आपको सयेद बुरा लगे क्यों की सभी ने आपकी तारीफ की है मेरे कहने का यह मतलब नही की आपने कुछ बुरा लिखा है लकिन यहीं तक मैं ने आपकी रचना पड़ी है उस leval से काफी निचे है इसका तालमेल आपका दिल दुखाने के लिए माफ़ी चाहूँगा...............
प्यारा नटखट.......
ज़िंदगी हमने क्या क्या न देखा
हर रूप में सब को तन्हा देखा
तारीफ़ से बढ़कर लिखा है......
रंजू जी,
रचना अच्छी है, लेकिन इसे गज़ल किसी भी नज़रिये से नहीं कह सकते। भाव सशक्त है, जिसके लिए आप बधाई की पात्र हैं।
कवि कुलवंत जी!
आपको पहली नज़र में इस रचना में कौन-सा काफिया दीख गया। बहर तो बाद की बात है, यहाँ तो केवल रदीफ रखा गया है, जो मेरे अनुसार "देखा" है। कहीं-कहीं काफिया "आ" रखने की कोशिश की गई है, जैसे "सा , निराला",लेकिन बाकी पंक्तियों में वह भी नहीं है।
रंजू जी,
गज़ल के लिहाज़ से इस रचना पर खासी मेहनत की जरूरत है।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
hello mam
so nice poem write by you.....
aap ne jivan ki sanchai ko samne rakha hai ज़िंदगी हमने क्या क्या न देखा
सच को मौत से गले मिलते देखा
है कौन यहाँ जो करता नही गुनाह
फ़िर भी हर किसी को खुदा सा देखा
हैं ख़ुद ही बेघर महल बनाने वाले
अजब यह नज़ारा बार बार देखा
गुम है बचपन भीख की कटोरी में
यह दस्तूर भी जग का निराला देखा
मुस्कान की सीमा पर क़ैद है आंसू
सब सपनों को क्यों अधूरा सा देखा
ज़िंदगी हमने क्या क्या न देखा
हर रूप में सब को तन्हा देखा
आप सब ने पढ़ा इसको .और इसके बारे में पसंद न पसंद भी लिखा शुक्रिया .कवि जी दीपक जी मैंने यह लिखा ही नही कि या गजल है ..क्यूंकि मैं उस को अभी पूरे नियमों के साथ नही लिख पाती हूँ ..पर यह मुझे नज्म के आस पास लगी सो मैंने वही नीचे लिखा .दीपक जी आपके बताये गई बातों का ध्यान रखूंगी शुक्रिया .और सुखदेव जी मैं दिल कि बात लिखने वाली अदना सी कवियत्री हूँ :) आपको यह रचना पहले के मुकबले में कम लगी .और मुझे आपकी यह बात साफ ढंग से की गई अच्छी लगी ..कोशिश होगी की अगली रचना आपको मेरी इस से बेहतर लगे पढने का शुक्रिया
बाकी सब के कमेंट्स का भी इंतज़ार रहेगा ..
रंजू
रंजू जी,
मुझे ग़ज़ल या नज़म के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, जो कुछ भी इसके बारे में पढ़ा है वो हिंद युग्म के पन्नों से ही जाना है , आप इसे नज़म कहें या हम इसे कविता... ये एक प्रश्न हो सकता है??? अब जो भी हो यह तो कोई जानकार ही बता सकता है...!!!!
हम सिर्फ़ इतना कह सकते हैं की इसे पढ़ना अच्छा लगा, बहुत ही अच्छे भाव के साथ लिखी गई है, बधाई
^^पूजा अनिल
गज़ल या नज़्म की बंदिशों में ढालकर लिखा गया है या नही ये तो आलोचक, समीक्षक ही जानें क्योंकि उनकी नज़र भाव पर बाद में जाती है, क़ायदों का अनुपालन हुआ या नही इस पर पहले जाती है। पर बतौर एक सामान्य पाठक अपन तो इतना ही कह सकते हैं कि बहुत बढ़िया लिखा है,मन की बातों को शब्दों का जामा बढ़िया पहनाया है आपने।
रंजू जी ने लिख दिया प्रबल भाव के साथ
गीत गजल या नज्म की छोडो भैया बात..
छोडो भैया बात, बात दमदार बताई..
प्रेम की रचना वालो के दर्शन हैं भाई..
अलग सी रचना हटकर देखी आज सभी ने
प्रबल भाव के साथ लिखा है रंजू जी ने
- बधाई जी बधाई..
सभी सतरंगी है यहाँ... पता नही कब कौन सा रंग रिफ्लेक्शन दे मारे..
ज़िंदगी हमने क्या क्या न देखा
हर रूप में सब को तन्हा देखा
बहुत अच्छी लगी यह नज़म
nice poeam
nice poeam
रंजू जी,
आप किसी आलोचना को जिस सार्थकता से लेती हैं,उसे जानकर बहुत हीं अच्छा लगता है।
मेरी शिकायत दर-असल उन आलोचकों से है,जो किसी विषय के बारे में सही से जानते हीं नहीं और आलोचना कर देते हैं।
जैसे कि गज़ल के क्षेत्र में "बहर, रदीफ और काफिया " का अलग-अलग अर्थ होता है, अब किसी एक को दूसरे की जगह तो डाल नहीं सकते।आपकी रचना में दर-असल काफिये की दिक्कत है , परंतु एक कवि-मित्र (नाम आप जानती होंगी :) ) ने बहर की दिक्कत बताई है और काफिये को सही बताया है।
एक बात और । माननीय पंकज सुबीर जी के अनुसार गज़ल को किसी टैग या ठप्पे की जरूरत नहीं होती, वह तो फोरमैट देखकर हीं पता चल जाता है कि नज़्म है या गज़ल। इसलिए मुझे गज़ल की सेहत की रक्षा के लिए यहाँ उतरना पड़ा
,अब चाहे इसे आपने नज़्म हीं क्यों न करार दिया हो :)
-विश्व दीपक ’तन्हा’
ये ग़ज़ल है या नास्म ये मुझे नहीं पता. पेर पढ़ना अच्छा लगा. दार्शनिकता का पुट है इसमें.
रंजू जी बधाई
bahaut hi dahak varnan kiya hain iss kavita main, yeh padhkar dimaag soch main pad jaata hain ki aakhir main kum kyon jite hain aur zindagi gujar karne ki baatein karte hain :)
Keep it up Ranju :)
कमाल कर दिया आपकी कलम ने तो.बधाई
आलोक सिंह "साहिल"
बाप रे बाप ! रंजू जी ............!ह्म्म...मुझे तो उर्दू बिल्कुल नहीं आती ..मैं इसलिए क्लास रूम से दूर दूरबीन लगाकर देखती हूँ बस टेबल के नीचे माइक जरूर छिपा कर रखी है पर इतनी हिम्मत नहीं हुई कि मैं कुछ लिख सकूं ...वाह बधाई मुझे तो बहुत ही अच्छा लग रहा है आप कि रचना पढ़ कर ..:-)
सुनीता यादव
:( - भाव साधारण सा है | कई बार सुना सुनाया |
रचना क्या है - ग़ज़ल ? नज्म के नियमों से मैं परिचित ही नही |
काफिया , रदीफ़ आदि व्याकरण पर तो सोचना ठीक ही नही |
भ्रम से भरी रचना लगी |
यदि नज्म के नियम किसी को पता हो तो मुझे मेल करिएगा |
धन्यवाद...
अवनीश
आपकी कविताओं में आपके ह्रदय का विषाद झलकता है....
ऐसी रचना कईं अनुभवों के निचोड़ के बाद बाहर आती है...
कोटी कोटी बधाई...
राजसावा
मन की टीस साफ नज़र आती है.... गहरे भाव
रंजना जी,
भाव अच्छे हैं, परन्तु गज़ल नहीं कह सकते। पर मुझे अच्छा लगा इतने दिनों के बाद युग्म पर आपकी कविता पढ़कर।कृपया ऐसे ही लिखते रहिये।
धन्यवाद।
रंजू जी आपकी नज्म या मै तो कविता ही कहती हूँ , मुझे बहुत अच्छी लगी । सीधे दिल से निकली हुई।
और आखरी दो लाइनें
ज़िंदगी हमने क्या क्या न देखा
हर रूप में सब को तन्हा देखा
बहुत ही अच्छी और सच्ची लगीं ।
बहुत खूब लिखा है. आपको पढ़ना बहुत अच्छा लगा...शुर्किया...
सादर
---
अमित के. सागर
रंजना जी,
है कौन यहाँ जो करता नही गुनाह
फ़िर भी हर किसी को खुदा सा देखा
मुस्कान की सीमा पर क़ैद है आंसू
सब सपनों को क्यों अधूरा सा देखा
अच्छी रचना, बधाई स्वीकारें..
***राजीव रंजन प्रसाद
ज़िंदगी हमने क्या क्या न देखा
सच को मौत से गले मिलते देखा
आप मौत से गले मिलाने के बदले जूठ लिखेंगे तो अच्छा लगेगा|
है कौन यहाँ जो करता नही गुनाह
फ़िर भी हर किसी को खुदा सा देखा
बहुत ही सुंदर व्यक्रोक्ति है यहाँ|
गुम है बचपन भीख की कटोरी में
यह दस्तूर भी जग का निराला देखा
दस्तूर के बदले मुकद्दर शब्दप्रयोग कर के लिखते तो ज्यादा अच्छा था|
मुस्कान की सीमा पर क़ैद है आंसू
सब सपनों को क्यों अधूरा सा देखा
सब सपनों को कि जगह कुछ सपनों को लिखना ज्यादा असर लाता| फिर भी भाव मन को छू लेते है|
ज़िंदगी हमने क्या क्या न देखा
हर रूप में सब को तन्हा देखा
आपने चार चाँद लगा दीये|
Aadab Mohtrma
Bahut Khoob utara hai jindagi ke dard ko apni lekhni ke madhyam se aap ne
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)