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Friday, May 02, 2008

उजाले तक


सनक गई सकून मिला अन्धेरे से उजाले तक
दावा नहीं दया पहुंची जीगर के छाले तक

लेपटोप पंहुच गये गांव में बस्ती में
मोबाइल हथेली में सब्जी दूध वाले तक

हेरी पोटर देख-देख सर्पीली तेज हवा चली
फैल गया दंश लहू में गोरे तक, काले तक

झेलते रहे भिड़न्त इस दुनियां के खेल में
तो गेंद देखो आ पहुंची दुश्मन के पाले तक

खूब नहाई लतिका भीग कर बारीश में
बेहया लाज बह गई नदी तक नाले तक

फंफूदी भरी थी मन में; साफ हुआ किस तरह !
झटक के झाडू पहुंचा मकड़ी के जाले तक

दरवाजे पे गमगीन हुये गोता हमने यूं खाया
कि चाबी पंहुच ही गई लटकते ताले तक

-हरिहर झा

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13 कविताप्रेमियों का कहना है :

Sajeev का कहना है कि -

सनक गई सकून मिला अन्धेरे से उजाले तक
दावा नहीं दया पहुंची जीगर के छाले तक
वाह हरिहर जी कमाल की ग़ज़ल लिखी है इस बार, एक एक शेर एक अलग दास्तान कहता है....
खूब नहाई लतिका भीग कर बारीश में
बेहया लाज बह गई नदी तक नाले तक

फंफूदी भरी थी मन में; साफ हुआ किस तरह !
झटक के झाडू पहुंचा मकड़ी के जाले तक
खूब ...

सीमा सचदेव का कहना है कि -

अंधेरे से उजाले तक का सफर तय करती आपकी ग़ज़ल अच्छी लगी .......सीमा सचदेव

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

एक नयी तरह की बेहतरीन गजल...
बहुत बढिया साब!

बधाई

pallavi trivedi का कहना है कि -

फंफूदी भरी थी मन में; साफ हुआ किस तरह !
झटक के झाडू पहुंचा मकड़ी के जाले तक

बहुत अच्छी रचना.....नए ढंग की!

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

सुंदर बनाया है |

अवनीश तिवारी

विपुल का कहना है कि -

वैसे तो पूरी रचना ही अच्छी है पर आपकी इस बात पर बरबस ही मुँह से वाह निकल पड़ी!


'खूब नहाई लतिका भीग कर बारीश में
बेहया लाज बह गई नदी तक नाले तक"

रंजू भाटिया का कहना है कि -

फंफूदी भरी थी मन में; साफ हुआ किस तरह !
झटक के झाडू पहुंचा मकड़ी के जाले तक

वाह!!हरिहर जी बहुत ही बेहतरीन बात कही आपने बहुत अच्छी लगी यह रचना आपकी

mehek का कहना है कि -

खूब नहाई लतिका भीग कर बारीश में
बेहया लाज बह गई नदी तक नाले तक
बहुत खूब.

सतपाल ख़याल का कहना है कि -

Ek nayee koshish...

Anonymous का कहना है कि -

बहुत अच्छा लिखा है हरीहर जी ने .........अच्छी कोशीश है .........मगर एक जुटता की कमी लगी मुझे कविता में ........या कुछ गहरा अर्थ हो जो में जान ना पाई ........प्रेम a

Unknown का कहना है कि -

बहुत ही सुंदर रचना
किस किस शेर की तारीफ की जाय
हर एक शेर लाजवाब है
खास कर ये
"लेपटोप पंहुच गये गांव में बस्ती में
मोबाइल हथेली में सब्जी दूध वाले तक"

"खूब नहाई लतिका भीग कर बारीश में
बेहया लाज बह गई नदी तक नाले तक"

Harihar का कहना है कि -

अर्चना जी
जैसा कि गजल-गुरूजी ने बताया था,कि गजल में एक थीम होना आवश्यक तत्व नहीं है पर फिर भी
मैंने आशावाद को मूल-स्वर दिया है पर
हर शेर में ऐसा होना आवश्यक नहीं है

Pooja Anil का कहना है कि -

हरिहर जी ,

आज के दौर में तेजी से रंग बदलती जिंदगी की झलक आपकी इस ग़ज़ल में साफ साफ दिखाई देती है , सभी शेर प्रभावित करते हैं, बहुत खूब .
शुभकामनाएँ

^^पूजा अनिल

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