कहानी में हमारी ज़िंदगी की रंग आ जाता
हमारा नाम तेरे नाम के गर संग आ जाता
अजब आदत हुआ करती हमेशा देख इन्सान की
जिसे वो प्यार करता है उसी से तंग आ जाता
रहे हम बीच फूलों के बना कर झूट को साथी
करी चाहत जभी सच की तभी सर संग* आ जाता
*संग = पत्थर
अकेले ही चले बस थम दमन हम शराफत का
नहीं तो साथ चलने का सभी के ढंग आ जाता
ज़माने की सुनो तो खूब करता प्यार वो हमसे
सुनो दिल की कभी तो देख करने जंग आ जाता
बिताते ज़िंदगी नीरज अगर सच में गुलाबों सी
लगाने का गले से खार को भी ढंग आ जाता
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17 कविताप्रेमियों का कहना है :
aap ne bahut achaa likha hai
अकेले ही चले बस थम दमन हम शराफत का
नहीं तो साथ चलने का सभी के ढंग आ जाता
नीरज जी अच्छी बात कह गए आप अपने गजल के माध्यम से,बधाई
आलोक सिंह "साहिल"
नीरज जी,
गज़ल अच्छी है। बस काफिये के दुहराव से बचे।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
नीरज जी,
हर शेर अपने कथ्य को संप्रेषित करने में पूर्णत: सक्षम है।
अजब आदत हुआ करती हमेशा देख इन्सान की
जिसे वो प्यार करता है उसी से तंग आ जाता
ज़माने की सुनो तो खूब करता प्यार वो हमसे
सुनो दिल की कभी तो देख करने जंग आ जाता
बधाई स्वीकारें।
*** राजीव रंजन प्रसाद
काफिये के दुहराव से बचा जा सकता था , वैसे भाव सुंदर है और कथ्य भी ! बढिया ग़ज़ल , बधाईयाँ!
ग़ज़ल तो सुंदर है |
बहुत दिन बाद मिले है आप ?
लिखते रहिये |
अवनीश तिवारी
अकेले ही चले बस थम दमन हम शराफत का
नहीं तो साथ चलने का सभी के ढंग आ जाता
बहुत अच्छी लगी आपकी यह गजल भी नीरज जी ..बहुत खूब लिखा है आपने
बहुत अच्छी लगी आपकी ग़ज़ल
गजल अच्छी है मगर व्याकर्णिक रुटियां बहुत सी हैं
पहली लाईन... जिंदगी की = जिन्दगी का
तीसरी लाईन .. हमेशा देख = हमेशा देखा
चोटी लाईन ... बना कर झूट = झूठ
थम दमन = थाम दामन
यदि शब्दों को थोडा और व्यवस्थित किया जाये तो एक नायाव गजल बन सकती है
प्रवाह में कमी है और कुछ शब्द जबरन घुसे लगते हैं... माफ़ी चाहता हूँ...
नीरज जी अच्छी ग़ज़ल लिखी है आपने, बहुत बहुत बधाई
पूजा अनिल
नीरज जी,
काफी दिनो बाद दर्शन हुए आपके.. अच्छा लिखा है, मोहिन्दर जी की बात पर ध्यान करें, थोडे से श्रम से और भी सुन्दर लगने लगेगा लगेगा..
बधाई
डा. रमा द्विवेदीsaid...
नीरज जी ग़ज़ल अच्छी है...बधाई..
वर्तनी की त्रुटियाँ अक्सर यहाँ देखने को मिलती हैं...टंकण के उपरान्त एक बार पढ़ लेना ही ठीक होता है...कई बार अर्थ का अनर्थ हो जाता है...मैं सब लोगों से अग्रिम क्षमा चाहूँगी और निवेदन करूँगी वर्तनी की गलतियों से बचें...मोहिन्दर जी की बात से मैं भी सहमत हूँ।
jमोहिंदर जी
नमस्कार
सबसे पहले तो ग़ज़ल इतनी ध्यान से पढने का तहे दिल से शुक्रिया. आप ने जिन त्रुटियों की और ध्यान आकर्षित किया है उसके बारे निवेदन है की:
१. "जिंदगी का " शब्द उचित नहीं है, मिसरे में कहा गया है की हमारी "ज़िंदगी की" कहानी में रंग आ जाता अब अगर यहाँ ज़िंदगी का लिखेंगे तो ग़लत होगा.
२. "हमेशा देख" शब्द दूसरे को इंगित कर के कहा गया है "हमेशा देखा" लिखना स्वयं की बात हो जाती है. आप प्रथम पुरूष की बात कर रहे हैं जबकि मिसरे में द्वितीये पुरूष से बात की गयी है.
३.बाकि की दोनों बातें आप की सही है लेकिन ये त्रुटी व्याकरण की नहीं टाईप की है.
उम्मीद है आप मुझसे सहमत होंगे.
ऐसे ही स्नेह बनाये रखें.
नीरज
वाह गज़ब है,बहुत खूब
नीरज जी! माफ़ी चाहूँगा मगर पहले शेर के पहले मिसरे में आपने जो कहना चाहा है, वाक्य-विन्यास के चलते उसे समझने में भ्रम होता है. इस तरह की बातें शेर के प्रभाव को कम करतीं हैं. इसके अलावा कुछ जगह लय भी अवरुद्ध होती है. थोड़ा और समय दें तो ग़ज़ल और भी बेहतर बन सकती है.
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