सबसे जुदा यह बेवफा की जात होनी चाहिए
चाँद पर इनकी अलग बस्ती बसानी चाहिए |
बातें सभी वैसी रहीं किरदार ही बदले गये
आज बच्चों को सुनाने फिर कहानी चाहिए |
कत्ल की गयीं हसरतें शमशान जैसा मैं हुआ
अधमरे अश्कों की लाशें रोज़ जलनी चाहिए |
चूस कर रस उड़ गयी तितली बड़ी चालाक है
भँवरा कमल में क़ैद उसकी मौत होनी चाहिए |
बस अंधेरा यार है मुझको उजालों ने डसा
अब जल्द ही इस ज़िंदगी की शाम ढलनी चाहिए |
चातक सुनो तकदीर में है रूप-स्वाती-जल नहीं
अब अश्क अपना कर प्रतिज्ञा तोड़ देनी चाहिए |
चाँद आख़िर मर गया तारे इकट्ठे हो रहे
अंबर में उसकी कब्र प्यारी आज बननी चाहिए |
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15 कविताप्रेमियों का कहना है :
चातक सुनो तकदीर में है रूप-स्वाती-जल नहीं
अब अश्क अपना कर प्रतिज्ञा तोड़ देनी चाहिए |
आपकी इन पंक्तियो से मुझे कोटर और कुटीर कहानी याद आ गयी
विपुल,
शेर बहुत गहरे लिखने का यत्न किया गया है और बहुत हद तक तुम सफल भी हुए हो किंतु गलत शब्द चयन अर्थ में बारीक खराश उत्पन्न कर रहे हैं। मुझे हर एक शेर पसंद आया बल्कि हर एक शेर के भीतर के गहरे निहितार्थ से तुम्हारी विचार क्षमता को ले कर प्रसन्नता हुई किंतु साथ ही प्रत्येक शेर तुम्हारा समय माँग रहा है कि तुम्हारा कथ्य और पैने हो कर प्रस्तुत हो सके।
रचना अच्छी है।
*** राजीव रंजन प्रसाद
बहुत बढ़िया बधाई
होनी, कहानी, जलनी, ढलनी ये सब काफ़िये ग़लत हैं क्या ये ग़ज़ल सुबीर जी ने चेक की है,भाव पक्ष ठीक है.ये ग़ज़ल सुबीर जी को जरुर दिखाएं.वो बहर और काफ़िये पर राय देंगे.
bahar maine check nahi ki.. lekin kaphiye me sudhar ki zaroorat hai aut bhav/ khayalat to bahut hi khoobsurat hain....
pratigya word thoda khalta hai..koi samanarthi shabd chniye..
ek baat kahana chahta hun.. zanha achcha lagta hai wahin comments karna achcha lagta hai.. so dont take otherwise..keep it up.. you are on the right track..bhav paksh bahut strong hai..
mujhe gazal ki bilkul bhi knowledge nahi .hind-yugm par jab se aai hoo(lagbhag ek maah pahle)to gazal ke baare me itna kuch dekh kar sire se saara padh daala ,jitna maine samjha ,usi base par yah laga ki kafiya milta-julta nahi hai ,aur poora lay nahi banta ,haa uska bhaav bahut achcha hai.
मुझे भी कुछ जँचा नहीं। सुबीर जी को दिखाएं कि यह सही है या नहीं...
विपुल भाई,मुझे बाहर और काफिये का बहुत ज्ञान नहीं है,सिर्फ़ गजल का भाव सही अच्छा होना चाहिए,जो की है,एक चीज मुझे खटकी की कहीं कहीं कुछ अटपटे शब्द आ गए जो की नहीं होने चाहिए,क्योंकि एक दो जगह शेर की लय टूट सी जाती है जो की किसी भी गजलगो के लिए अच्छा नहीं है,खैर,बेहतर प्रयास के लिए शुभकामना
आलोक सिंह "साहिल"
काफिये घायल हैं इसमे, लड़खडाती है बहर
मैं कहूँगा तुमसे, पढ़ लो तुम गजल का व्याकरण
वाह! क्या लिखा है आप ने बहुत अच्छा लगा.बधाई.
विपुल
आपका प्रयास अच्छा है,लेकिन गजल के नियम कायदों को अपने वरिष्ठों से सीखें तो आप एक अच्छे गजलकार बन सकते हैं.
किसलय, जबलपुर
आप सभी की टिप्पणियों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ! मैं सुबीर जी का एक नालायक विद्यार्थी हूँ.. | अभी कुछ दिन पहले उनके सारे पाठ पढ़े |
उसकी बाद यह ग़ज़ल लिखने की कोशिश की ! यह मेरी दूसरी ग़ज़ल है और इसके पहले मैने कभी इस क्षेत्र में प्रयास नही किया | चूँकि अभी पंकज जी ने बहर के बारे में कुछ ज़्यादा नही बताया तो मुझे भी नही पता | क्षमा चाहूँगा !
और काफ़िए के बारे में मैने कोशिश के थी कि ठीक हों.. मैने सोचा था कि इस ग़ज़ल में "नी" काफिया है और "चाहिए" रदीफ़ | क्योंकि मत ले के दोनों मिसरों में तो यही दोनों कॉमन रखे गये हैं | और इस हिसाब से देखा जाए तो सारे काफियों के अंत में :नी" आ रहा है | बस यही सोच कर मैने इनका प्रयोग किया | मैने जैसा सोचा वह बता रहा हूँ.. बाकी सही-सही बात तो आदरणीय पंकज जी ही बता पाएँगे !
चातक सुनो तकदीर में है रूप-स्वाती-जल नहीं
अब अश्क अपना कर प्रतिज्ञा तोड़ देनी चाहिए |
-भाव अच्छे है और कहीं -कहीं तीखे भी-
*ग़ज़ल कितनी बन पाई है--यह तो वरिष्ठ जानकर ही बात सकते हैं.
"चातक सुनो तकदीर में है रूप-स्वाती-जल नहीं
अब अश्क अपना कर प्रतिज्ञा तोड़ देनी चाहिए|"
ye line to mast thi bhai
kaun kehta hai8 ki tu gazal me thoda
kachcha hai.
Gazal pad ke laga mano koi bahut hi utkrasht rachna padi ho.
GR8 impression yaar
KEEP IT UP
my best wishes to u
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