हम साथ-साथ चले
उमंग और उत्साह से भरे
एक ही डगर पर
आँखों में………
एक ही स्वप्न सजाए
उत्साह से लबालब
एक ही संकल्प
और …………..
एक ही डगर
एक दूसरे पर पूर्ण विश्वास
बढ़ते रहे ले हाथों में हाथ
पर……
हालात की आँधी का
एक तीव्र वेग आया
और….
उसके सबल प्रहार से
सब तितर-बितर हो गया
आशा का सम्बल
जाने कब टूटा
विश्वास की डोरी
कमजोर सी पड़ गई
और……….
सदा साथ चलने वाले
अलग-अलग राह पर मुड़ गए
हैरान हैं राहें
बेचैन निगाहें
हृदय है तार-तार
देखती हैं मुड़कर…
व्याकुल बार- बार
उमंग और उत्साह से भरे
एक ही डगर पर
आँखों में………
एक ही स्वप्न सजाए
उत्साह से लबालब
एक ही संकल्प
और …………..
एक ही डगर
एक दूसरे पर पूर्ण विश्वास
बढ़ते रहे ले हाथों में हाथ
पर……
हालात की आँधी का
एक तीव्र वेग आया
और….
उसके सबल प्रहार से
सब तितर-बितर हो गया
आशा का सम्बल
जाने कब टूटा
विश्वास की डोरी
कमजोर सी पड़ गई
और……….
सदा साथ चलने वाले
अलग-अलग राह पर मुड़ गए
हैरान हैं राहें
बेचैन निगाहें
हृदय है तार-तार
देखती हैं मुड़कर…
व्याकुल बार- बार
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
शोभा जी, आप की रचना ठिक है साथ ही संदेश भी दे रही है कि एकता में बहुत ताकत होती है परन्तु , वही एकता टूटने पर वह ताकत बेजान हो जाती है
bahut khub shobha ji,maja aa gaya,
alok singh "sahil"
शोभा जी!!
बहुत ही सुंदर भाव है...
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आशा का सम्बल
जाने कब टूटा
विश्वास की डोरी
कमजोर सी पड़ गई
और……….
सदा साथ चलने वाले
अलग-अलग राह पर मुड़ गए
हैरान हैं राहें
बेचैन निगाहें
हृदय है तार-तार
देखती हैं मुड़कर…
व्याकुल बार- बार
कभी ज़िंदगी में ये मोड़ भी आते है,बहुत सुंदर कविता भाव पूर्ण .
well said shobha ji,...riste banana aasan hai nibhana muskil....todhna aasan hai jodna muskil....
बहुत अच्छी लगी आपकी यह रचना शोभा जी !!
सही कहा -हैरान हैं राहें
बेचैन निगाहें
हृदय है तार-तार
देखती हैं मुड़कर…
व्याकुल बार- बार
-इंतज़ार कभी खत्म नहीं होता -एक आस बांधे रखती है.
सही कहा आपने शोभा जी ,हालत कब बदल जाएं और धोखा दे जाएं पता ही नही चलता |हम सब हालत के हाथ की कठपुतली ही टू है .....सीमा
मैं यह सोच कर उसके दर से उठा था, कि रोक लेगी, मना लेगी .. मुझको... मगर उसने रोका..ना वापस बुलाया...ना आबाज ही दी .. ना मुझको बिठाया... मैं आहिस्ता आहिस्ता बढता ही आया.... यहां तक कि उससे जुदा हो गया हूं.....
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