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Saturday, April 26, 2008

चाँद-3


नाज़ुक से अश्क
कठोर धरातल
टकराहट...
सपनों की सिसकियाँ
सुबकती चाहत!

बिखरे आँसू,टूटे कण
जैसे हारे हुए सैनिक
सुनसान रण...

चाँद की परछाईं ,
अश्कों का क़ैदखाना
हंसता चाँद बंदी है
बंदी चाँद!

अश्कों की नमी
ठंड लगी
वफ़ा का कंबल नदारद
एक दिन,दो दिन
दो साल,चार साल
जीवन भर?
अब क़ैदखाना नहीं
अश्कों का ताबूत!
टूटी साँस..
उम्मीद का कफ़न
चाँद की लिपटी लाश!
और फिर जनाज़ा...
स्याह रात से भोर तक!

भोर..
ज़िम्मेदारियों का सूरज
तीखी किरणें,
झूठा प्रकाश
उड़ते अश्क
चाँद आज़ाद !

चाँद...
ईमानदार कैदी
दिन भर मुक्त
और रात?
ठंड,ठिठुरन
मौत
और फिर जनाज़ा
स्याह रात से भोर तक !

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13 कविताप्रेमियों का कहना है :

Unknown का कहना है कि -

Vipulji.......
so nice sir.......
I've no word to explain for your Great and lovely poetry, realy too good, and again congratulation for your great feelings and nice poetry..................................................-Nitin Sharma

Unknown का कहना है कि -

विपुल जी............ बहुत ही सुन्दर रचना है..........
"चांद....... ईमानदार कैदी" शब्दों का प्रयोग बहुत कमाल का है,
आपकी यही लेखन शैली का तरीका आपको औरों से अलग बनाता है,
एक सुन्दर रचना कि लिये आप पुनः बधाई के पात्र है............ शुभेच्छा........
....................................................................-नितिन शर्मा

Anonymous का कहना है कि -

बहुत ही खूबसूरत बधाई

Unknown का कहना है कि -

विपुल जी, मुझे आप की कविता बहुत पसंद आई विशेषतः यह पंक्ति चाँद इमानदार कैदी ,दिन भर मुक्त और रात ? ठंड , ठिठुरन मौत और फिर जनाजा श्याह रात से भोर तक

masoomshayer का कहना है कि -

tum bahut achha likhte ho
Anil

Unknown का कहना है कि -

विपुल जी ...........
बुधिया श्रृंख्ला आपकी बहुत ही लोकप्रिय रही .........और अब चाँद में भी आपने बहुत अच्छा प्रयास किया ............
इस रचना के लिए बहुत बहुत बधाई ...............

Anonymous का कहना है कि -

सपनों की सिसकियाँ
सुबकती चाहत!
...............
और फिर जनाज़ा
स्याह रात से भोर तक !
shuraat se ant tak bahut khoob

Sajeev का कहना है कि -

बहुत सुंदर विपुल, लेकिन किरदार में इस बार चाँद के रूप में भी कहीं बुधिया तो नही... पर कविता में कहीं कोई कमी नही.... बेहतरीन ...

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

चाँद कविता में जबरदस्ती घुस आया है। पहले विषय चुन कर कविता लिखने पर अक्सर ऐसा होता है। यदि कविता का अपना प्रवाह बने रहने देते और चाँद का प्रवेश केवल तभी होता, जब उसकी जरूरत होती, तो कविता सच में बहुत अच्छी बनती।
वैसे कम शब्दों में बहुत कुछ कहा है और एक नया स्टाइल देखने को मिला तुम्हारी कविता में।
लगे रहो।

विपुल का कहना है कि -

गौरव जी,
आपकी टिप्पणी का इंतज़ार रहता है मुझे| वास्तव में मैं जिस बात को सोच कर कविता लिखता हूँ आप उस से एक अलग ही पक्ष प्रस्तुत करते हैं|
इसी बहाने अपने कविता को एक आलोचक की दृष्टि से भी मैं देख पाता हूँ|
आपने कहा "चाँद कविता में जबरदस्ती घुस आया है।" आप इस कविता से चाँद को निकाल दीजिए ... एक-दो बिंबों के अलावा कुछ नही रह जाएगा कविता में !
कविता शुरू हुई ही थी चाँद के लिए| चाँद- "एक ईमानदार कैदी" इसी विचार को लेकर मैने चाँद के इर्द-गिर्द ही कविता बुनी| ऊपर के दो पैरा मैने कविता में बहुत बाद में जोड़े!वह भी इसीलिए कि "सुनसान रण" वाला विचार मेरे मन में आया | अन्यथा आप मेरी शैली से सर्वथा भिन्न आकार में बहुत ही छोटी कविता पढ़ते!
खैर..सभी का अपना अपना नज़रिया होता है| आपको जो लगा आपने लिख दिया|आगे से भी आपसे ऐसी ही टिप्पणी की आशा रहेगी!

सीमा सचदेव का कहना है कि -

अश्कों की नमी
ठंड लगी
वफ़ा का कंबल नदारद
एक दिन,दो दिन
दो साल,चार साल
जीवन भर?
अब क़ैदखाना नहीं
अश्कों का ताबूत!
टूटी साँस..
उम्मीद का कफ़न
चाँद की लिपटी लाश!
और फिर जनाज़ा...
स्याह रात से भोर तक!

पंक्तियाँ अच्छी लगी ......सीमा

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

ह्म्म्म्म्म्म वंडरफुल कैदी न.-3 मेरा मतलव चाँद-3,

बढिया कोशिश लिखते रहें आप सोलहवीं कला तक शीघ्र पहुँचने वाले हैं.

शुभकामनायें

Anonymous का कहना है कि -

विपुल जी,सुंदर रचना.बधाई स्वीकार करें
आलोक सिंह "साहिल"

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