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Monday, March 10, 2008

मौत


मौत-१

मौत आखिरी सच है!
झूठ है...सफेद झूठ
ज़िन्दगी भी...मौत भी!
एक ज़िन्दगी में ही
मिलती हैं....कई मौत
और कई मौत के बाद भी
चलती रहती है ज़िन्दगी।
किस-किस की कहूँ?
हर किसी की ज़िन्दगी से
जुड़ा है...यह सच !

मौत सच है...
..पर आखिरी नहीं
शु्रू से लेकर...
खत्म होने तक
बार-बार आने वाला सच।

कई बार
एक मौत में
कई मौतें छिपी होती हैं...
कई बार एक मौत में
कई मौतों का
एहसास होता है
फिर जीता है..आदमी
फिर भी चलती है – ज़िन्दगी।

मौत-२

बुधुवा...जी तो रहा है
पिता के मौत के बाद भी
लेकिन...एक मौत तो
उसी दिन मर गया था
जिस दिन उठी थी
उसके बाप की लाश।
जूझता है
तब से हर दिन
हार जाने के लिए
फिर भी
जी रहा है
हर रोज
कई-कई बार
मरने के बाद।

मुनिया तो
कई बार मरते हुए ही
जवान हुई
फिर उस दिन तो
एक ही बार में
सैकड़ों मौत मरी
जिस दिन सरे-आम
बलात्कार की शिकार हुई।

....और उसका बापू
वहीं खड़ा था
बेबस
पता नहीं ज़िन्दा रहा
या वह भी मरा था
उतनी ही बार।
...लेकिन हैरत है
दोनों ही जी रहे हैं
अब भी
उस हादसे के बाद।

अलग-अलग तरीके से
सब मरते हैं...
...कई-कई बार
बड़ा हो या छोटा
सब जीते हैं
मरने के साथ।

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19 कविताप्रेमियों का कहना है :

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

बहुत ही जबर्दस्त प्रस्तुति है अभीषेक जी। एक अलग अंदाज़ में कविता के दो हिस्सों के माध्यम से। सही कहते हैं आपः

अलग-अलग तरीके से
सब मरते हैं...
...कई-कई बार
बड़ा हो या छोटा
सब जीते हैं
मरने के साथ।

Kavi Kulwant का कहना है कि -

अच्छे भाव

SURINDER RATTI का कहना है कि -

एक ज़िन्दगी में ही
मिलती हैं....कई मौत
और कई मौत के बाद भी
चलती रहती है ज़िन्दगी।
अभिषेक जी ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी..... सुरिंदर रत्ती

seema gupta का कहना है कि -

मौत सच है...
..पर आखिरी नहीं
शु्रू से लेकर...
खत्म होने तक
बार-बार आने वाला सच।
" एक सच जिदंगी और एक सच मौत , बहुत सुंदर प्रस्तुती "

anju का कहना है कि -

अभिषेक जी
आपकी कविता के कई भाव निकल्त्ते है
कहानियाँ जुड़ी है इससे
कविता अच्छी है
अलग-अलग तरीके से
सब मरते हैं...
...कई-कई बार
बड़ा हो या छोटा
सब जीते हैं
मरने के साथ।

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

अच्छी भाव हैं | लिखा भी अच्छा है |
लेकिन बात पुरानी सी जान पडी |
-- अवनीश तिवारी

seema sachdeva का कहना है कि -

बुढ़वा ,मुनिया और बलात्कार जैसी सामाजिक बुराई और पीड़ा को आपने बहुत ही मार्मिक ढंग से कम शब्दों मी बयान कर दिया है ,हार्दिक शुभकामनाए .....सीमा सचदेव

Rama का कहना है कि -

डा. रमा द्विवेदी said...
समाज की ज्वलन्त समस्या का बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया है आपने....कम शब्दों में गहरी बात कहना ही कविता है...ये पन्क्तियां आंख नम कर गईं.....लिखते रहिए...शुभकामनाओं सहित..


मुनिया तो
कई बार मरते हुए ही
जवान हुई
फिर उस दिन तो
एक ही बार में
सैकड़ों मौत मरी
जिस दिन सरे-आम
बलात्कार की शिकार हुई।

....और उसका बापू
वहीं खड़ा था
बेबस
पता नहीं ज़िन्दा रहा
या वह भी मरा था
उतनी ही बार।
...लेकिन हैरत है
दोनों ही जी रहे हैं
अब भी
उस हादसे के बाद।

अलग-अलग तरीके से
सब मरते हैं...
...कई-कई बार
बड़ा हो या छोटा
सब जीते हैं
मरने के साथ।

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

वाह ! बहुत सार्थक रचना,

ज़िन्दगी और मौत को परिभाषित करती

Rama का कहना है कि -

डा. रमा द्विवेदी said...

बहुत अच्छी रचना है..काफी प्रभावकारी व्यंग्य है...बाकीसब लोगों ने कह ही दिया है....मुबारकबाद सहित..

विपुल का कहना है कि -

अच्छा लिखा है अभिषेक जी... पर शायद और बेहतर लिखा जा सकता था | कुछ दोहराव सा लगा..फिर भी अच्छी रचना.. यह पंक्तियाँ अच्छी लगीं ..

मौत सच है...
..पर आखिरी नहीं
शु्रू से लेकर...
खत्म होने तक
बार-बार आने वाला सच।

mehek का कहना है कि -

एक ज़िन्दगी में ही
मिलती हैं....कई मौत
और कई मौत के बाद भी
चलती रहती है ज़िन्दगी।
बहुत सुंदर

Anonymous का कहना है कि -

पाटनी जी बहुत बेहतरीन,मौत.....!
अजीबोगरीब सच,कितना अजीब है सुनी सुने कहनियाँ,मौत अन्तिम सत्य है जबकि सच ये है की आज रोज रोज बार बार मरना होता है
आलोक सिंह "साहिल"

SahityaShilpi का कहना है कि -

अभिषेक जी! कथ्य से पूरी तरह सहमत होते हुये भी कविता कुछ विशेष पसंद नहीं आयी. काव्यात्मकता की कमी पूरी रचना में महसूस होती है. पढ़ते हुये कई जगह लगता है जैसे कोई लेख पढ़ रहे हों. आशा है कि आप इस शिकायत को अन्यथा न लेंगे.

Sajeev का कहना है कि -

अभिषेक कविता का पहला हिस्सा तो बस जैसे भूमिका है..... पर दूसरे हिस्से में तुम अपनी बात कहने में सफल हुए हो, जीते जी मरते रोज और मर कर भी जीते रोज, यही तो हम सब के साथ होता है, पर कविता का विषय व्यापक है... और बेहतर लिख पाओगे

RAVI KANT का कहना है कि -

अभिषेक जी, कविता का दुउसरा भाग कथ्य को पूरी तरह संप्रेषित कर रहा है ऐसे में पहला हिस्सा प्रासंगिक नहीं लगता।

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

अभिषेक जी,
यह बात बहुत गहरी लगी।
अलग-अलग तरीके से
सब मरते हैं...
...कई-कई बार

लेकिन मेरे विचार से यही बातें और कम शब्दों में कही जाती तो ज्यादा असरदार रचना बनती।
बाकी सब अच्छा है।

विश्व दीपक का कहना है कि -

अभिषेक जी,
रचना के दो हिस्से आपसे में जुड़े हुए-से लगते हैं। दो बार पढने के बाद भी मैं समझ नहीं पाया कि मौत-२ लिखने की क्या जरूरत थी, जबकि सारी बातें तो मौत-१ में हीं कही जा चुकी थीं।
रचना अच्छी लगी। पहली बार युग्म पर किसी ने मौत और जिंदगी की सच्चाई बताई है।

बधाई स्वीकारें।

-विश्व दीपक ’तन्हा’

mona का कहना है कि -

Again an excellent poem. Please accept my deep appreciation for such a beautiful writing.
अलग-अलग तरीके से
सब मरते हैं...
...कई-कई बार
बड़ा हो या छोटा
सब जीते हैं
मरने के साथ।......kitni sahe baat hai.

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