एक
रोता तो दिल भी है
पर अश्क सिर्फ़ आँखों में...
शायद दिल की आग इसे जीने नहीं देती...
दो
सच नहीं मिला
मुझको किताबों में...
ठीक कहते हो,
युवापीढ़ी बदतमीज है....
तीन
सुनती नहीं है
मजहबो-दीवार की बातें
इस बदचलन हवा के जरा कान तो पकड़ो...
चार
जो कुछ सुना,
सच दिखाई पड़ता है?
क्या आजतक तुम्हारे चश्मे का नंबर नहीं बदला??
पाँच
कभी जिद की थी उसने
सुनने को मेरी दास्ताँ
सावन अब बेलगाम रोता है...
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
रोता तो दिल भी है
पर अश्क सिर्फ़ आँखों में...
शायद दिल की आग इसे जीने नहीं देती...
" वाह , बहुत सुंदर, "
Regards
बहुत प्यारी क्षणिकायें
विशेष भायीं :
रोता तो दिल भी है
पर अश्क सिर्फ़ आँखों में...
शायद दिल की आग इसे जीने नहीं देती...
कभी जिद की थी उसने
सुनने को मेरी दास्ताँ
सावन अब बेलगाम रोता है...
बहुत बहुत बधाई
अच्छी लगी आपकी यह क्षणिकाएँ" ..विशेष रूप से यह बहुत पसन्द आई ...
रोता तो दिल भी है
पर अश्क सिर्फ़ आँखों में...
शायद दिल की आग इसे जीने नहीं देती..
कभी जिद की थी उसने
सुनने को मेरी दास्ताँ
सावन अब बेलगाम रोता है...
युवापीढ़ी की भावनाओ को चंद अल्फ़ाज़ मे कह दिय वाह रवि जी क्या बात है
सच नहीं मिला
मुझको किताबों में...
ठीक कहते हो,
युवापीढ़ी बदतमीज है....
आपके ये अल्फ़ाज़ भी दिल पर छाप छोडते है
कभी जिद की थी उसने
सुनने को मेरी दास्ताँ
सावन अब बेलगाम रोता है...ज़ भी दिल पर छाप छोडते है
ravikant ji...bahut khoob..
sawan ab belagam rota hai...waah..
बहुत खूब रविकांत जी
वैसे तो आपकी पाँचों क्षणिकाएँ पसंद है किंतु मुझे तीसरी जादा पसंद आई
सुनती नहीं है
मजहबो-दीवार की बातें
इस बदचलन हवा के जरा कान तो पकड़ो
जो कुछ सुना,
सच दिखाई पड़ता है?
क्या आजतक तुम्हारे चश्मे का नंबर नहीं बदला??
-- पता नही क्यों यह नही जमा ? :(
कभी जिद की थी उसने
सुनने को मेरी दास्ताँ
सावन अब बेलगाम रोता है...
-- बहुत सुंदर
अवनीश तिवारी
सीमा जी, राघव जी, रंजना जी,बरबाद साहब, मीनू जी, अंजू जी एवं अवनीश जी, आप सबका शुक्रिया।
अवनीश जी,
जो कुछ सुना,
सच दिखाई पड़ता है?
क्या आजतक तुम्हारे चश्मे का नंबर नहीं बदला??
-- पता नही क्यों यह नही जमा ? :(
यहाँ मैं कहना चाहता हुँ कि अगर कथ्य ही नही जम रहा तो क्षमाप्रार्थी हुँ और यदि कथ्य का भाव स्पष्ट नही हो रहा हो तो इसे ऐसे देखें-कुछ लोग ऐसे होते हैं जो सिर्फ़ भीड़ के साथ बहना जानते हैं। भीड़ की हाँ में हाँ मिलाते हैं,अपने विवेक का जरा भी उपयोग नही करते। समय बितते जाता है पर उनकी मान्यताएँ नही बदलतीं। इसी संदर्भ में ईशारा किया है।
रोता तो दिल भी है
पर अश्क सिर्फ़ आँखों में...
शायद दिल की आग इसे जीने नहीं देती...बहुत सुंदर
अच्छा लिखा है विशेषकर निम्नवत पंक्तियाँ
सुनती नहीं है
मजहबो-दीवार की बातें
इस बदचलन हवा के जरा कान तो पकड़ो...
सच नहीं मिला
मुझको किताबों में...
ठीक कहते हो,
युवापीढ़ी बदतमीज है....
सुनती नहीं है
मजहबो-दीवार की बातें
इस बदचलन हवा के जरा कान तो पकड़ो...
रवि कान्त जी, बहुत अच्छे....करारे तेवर ...
रवि जी ,
भावार्थ के लिए धन्यवाद |
अवनीश तिवारी
रवि जी
अच्छी क्षणिकाएँ लिखी हैं apne
कभी जिद की थी उसने
सुनने को मेरी दास्ताँ
सावन अब बेलगाम रोता है...
badhayi
**कभी जिद की थी उसने
सुनने को मेरी दास्ताँ
सावन अब बेलगाम रोता है...
--वाह! खूब !
*सुनती नहीं है
मजहबो-दीवार की बातें
इस बदचलन हवा के जरा कान तो पकड़ो...
*बहुत सही लिखा है!
सच नहीं मिला
मुझको किताबों में...
ठीक कहते हो,
युवापीढ़ी बदतमीज है....
कभी जिद की थी उसने
सुनने को मेरी दास्ताँ
सावन अब बेलगाम रोता है...
रविकांत जी,
उपरोक्त क्षणिकाएँ मुझे विशेष पसंद आईं। बाकी भी खूबसूरत हैं।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
ro lene dijiye saawan ko ...pandeyji...barasne k baad hi aasma saaf nazar ata hai...
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